गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By WD

सिंघम से बेहतर है सिंघम रिटर्न्स : अजय देवगन

अभिनेता अजय देवगन से खास बातचीत

सिंघम से बेहतर है सिंघम रिटर्न्स : अजय देवगन -
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'सिंघम' और 'सिंघम रिटर्न्स' में से किसे बेहतर फिल्म मानते हैं?
'सिंघम रिटर्न्स' में कहानी से लेकर एक्शन, स्क्रिप्ट, फिल्म का स्केल सब कुछ बड़ा और बेहतर नज़र आएगा। बाजीराव सिंघम के किरदार को निभाने के लिए मुझे अपना वज़न थोड़ा बढ़ाना पड़ा है। इस फिल्म का एक्शन बहुत रीयल है। अब लोग हवा में उड़ने वाला एक्शन देख ऊब चुके हैं।

क्या लोग एक बार फिर बाजराव सिंघम को देखना चाहेंगे?
बाजीराव सिंघम का किरदार ऐसा है जिसको लेकर आप जितनी फ्रेंचाइज़ी बनाना चाहें बना सकते हैं। एक पुलिस ऑफिसर तमाम तरह की समस्याओं से जूझ सकता है और 25 साल से लेकर 70 साल की उम्र में भी वह किसी न किसी समस्या के खिलाफ जंग जारी रख सकता है। हम शूटिंग के सिलसिले में नासिक के पास एक गांव गए। वहां के लोगों ने हमें एक पुलिस अफसर से मिलवाया और कहा कि हम इन्हे सिंघम कहते हैं, क्योंकि उन्होंनी एक एमएलए को गलत काम करते हुए पकड़ा था। कहने का मतलब यह है कि अब हर आदमी उस इंसान के साथ खड़ा नज़र आता है जो न्याय के लिए लड़ता है। बाजीराव सिंघम उन्हीं बहादुर अफसरों का प्रतीक है।

'सिंघम' किस तरह के दर्शकों को पसन्द आई थी?
सबसे ज्यादा बच्चों और औरतों को। बच्चों को शायद इसलिए क्योंकि उन्हें एक्शन देखने में मज़ा आता है, इसलिए हम अपनी फिल्मों में ज्यादा खून खराबा नहीं दिखाते हैं। औरतों को शायद इसलिए क्योंकि 'सिंघम' किसी के भी साथ हो रहे अन्याय के लिए लड़ता है।

बाजीराव सिंघम के पात्र को उभारने में निगेटिव किरदारों की क्या भूमिका है?
विलेन ही हीरो को हिरोइज्म देते हैं। यदि फिल्म देखते समय दर्शक के मन में यह बात आ जाए कि अब विलेन को हीरो ने एक मुक्का जड़ देना चाहिए तो बस वहीं से विलेन ने हीरो को हीरो बना दिया। बाजीराव सिंघम को बाजीराव सिंघम बनाने में प्रकाश राज और इस बार अमोल गुप्ते का बहुत बड़ा हाथ है।

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क्या 'सिंघम रिटर्न्स' में करीना ने भी एक्शन किया है?
एक्शन और ड्रामा में फर्क होता है। 'सिंघम रिटर्न्स' में करीना बहुत ही एग्रेसिव ड्रामा करती नज़र आएंगी। उसमें उनका रोल एक जागरुक नारी है जो जब भी कुछ गलत देखती है तो चुप नहीं बैठती है बल्कि अपना गुस्सा दिखाती है।

अब आप सिर्फ कमर्शियल एक्शन फिल्मों में ही नज़र आते हैं?
इसकी एकमात्र वजह यह है कि मैंने लम्बे समय से ऐसी स्क्रिप्ट नहीं सुनी जिसे सुनकर मेरा मन उसे करने लिए हामी भर पाए। यदि मुझे फिर से 'प्यार तो होना ही था' जैसी फिल्म मिले तो मैं ज़रूर करना चाहुंगा। फिलहाल मेरे पास कमर्शियल फिल्मों के लार्जर देन लाइफ वाले किरदारों के ऑफर आ रहे हैं तो उन्हीं में से कुछ फिल्में कर रहा हूं। इसीलिए शायद मेरी इमेज वैसी बन गई है। पर अगर अच्छी स्क्रिप्ट मिले तो मैं आज भी समानांतर सिनेमा करना चाहूंगा।।

ओमपुरी का कहना है कि आज बॉलीवुड में फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए बन रही है। उनमें कोई सामाजिक सन्देश नहीं होता है। तो क्या कलात्मकता के साथ समझौता हो रहा है?
नहीं, कहीं कोई समझौता नहीं किया जा रहा है। दर्शकों का मनोरंजन करना कठिन होता है। इस तरह की फिल्में बड़ी मेहनत से बनाई जाती हैं। फिल्में सन्देश देने के लिए नहीं मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं। इसलिए हमारी कोशिश लोगों का मनोरंजन करने के साथ सन्देश देने की भी होती है।

'सिंघम रिटर्न्स' 15 अगस्त को रिलीज़ हो रही है। क्या इसमें कोई राष्ट्रीय सन्देश है?
फिल्म तो मनोरंजन के लिए बनाई गई है, पर फिल्म में एक पुलिस अफसर भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी और अन्याय के खिलाफ लड़ता है तो उसमें संदेश होना तो निहित है।