गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By समय ताम्रकर

चारफुटिया छोकरे खूबसूरत फिल्म है : सोहा अली खान

चारफुटिया छोकरे खूबसूरत फिल्म है : सोहा अली खान -
निर्माता सुनील खोसला और विभा दत्ता खोसला की फिल्म 'चारफुटिया छोकरे' को राज चड्ढा के सहयोग से वेव सिनेमा-पॉन्टी चड्ढा व मैक्सर मूवीस प्रस्तुत कर रहे हैं। इस फिल्म का लेखन और निर्देशन मनीष हरिशंकर ने किया है। 'चारफुटिया छोकरे' स्त्री की आंतरिक शक्ति की कहानी है। यह कहानी है उन बच्चों की जिन्हें गुनाहों में ढकेलकर वहां के गुंडों द्वारा उनका शोषण किया जाता है और एनजीओ चलाने वाली एनआरआई लड़की इन बच्चों को गुनाहों की अंधेरी दुनिया से निकालने का प्रयास करती है। क्या वो उन्हें बालशोषण से बचा पाएगी? फिल्म 'चारफुटिया छोकरे' में सोहा अली खान, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सीमा विश्वास, जाकिर हुसैन, मुकेश तिवारी, लेख टंडन और बाल कलाकार हर्ष मायर (फिल्म 'आय एम कलाम' के बाल कलाकार), शंकर मंडल और आदित्य जैसवाल जैसे कई कलाकार हैं। पेश है सोहा अली खान से बातचीत...
 
फिल्म 'चारफुटिया छोकरे' के बारे में बताइए?
'चारफुटिया छोकरे' हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने और जिंदगी में कभी हार न मानने के लिए प्रेरित करती है। नेहा एक एनआरई लड़की है, जो भारत में अपने माता-पिता के गांव में एक स्कूल बनाने का सपना लेकर आती है। अपनी इस योजना के प्रति आश्वस्त और विश्वास से भरी नेहा गांव में उसके लिए इंतजार कर रही परेशानियों, कठिनाइयों और खतरों से पूरी तरह से अनजान है। यह फिल्म नारी शक्ति को उजागर करती है। नारी और बच्चे भारत का भविष्य हैं। यह बहुत ही खूबसूरत फिल्म है जिसे हर बच्चा और बड़ा देख सकते हैं जिसमें समाज में बच्चों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ वो सभी मुसीबतों से लड़ती है।
 
इस किरदार को करने से पहले आपने किसी प्रकार की तैयारी की थी?
जी नहीं, कुछ तैयारी करने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरी किरदार नेहा और मुझमें बहुत समानताएं हैं। निजी जीवन में भी मैं बच्चों की शिक्षा से जुड़ी हुई हूं। मुझे नहीं पता था कि देश में बच्चों से हत्या करवाना सिखाकर उन्हें दरिंदा बनाया जाता है, लेकिन अब मैं सब कुछ समझ चुकी हूं। फिल्म ही एक सही माध्यम है जिससे हम अपराध के अलग-अलग रूप को समाज में उजागर कर सकते हैं। फिल्म 'रंग दे बसंती' ने भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने के लिए जिस प्रकार नवयुवकों को प्रेरित किया, उसी प्रकार 'चारफुटिया छोकरे' भी औरतों और बच्चों को अपराध के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देगी।
फिल्म की शूटिंग का आपका अनुभव कैसा रहा?
अनुभव बहुत ही शानदार रहा। ऐसा लगा कि नेहा का किरदार जैसे सिर्फ मेरे लिए ही लिखा हुआ था। मैं इससे बेहतर किरदार की आशा नहीं कर सकती थी। जिस तरह से इसकी कहानी लिखी गई है और इसे जिस खूबसूरत ढंग से पेश किया गया है, उससे दर्शक जुड़ जाएंगे। 
 
इस फिल्म में आपने रवीन्द्रनाथ टैगोर की पंक्तियों को पढ़ा है। आपने उनकी कविता 'विद्या की पारसमणी' को क्यों नहीं गाया?
मैं सबसे पहले बताना चाहूंगी कि मैं कोई गायक नहीं हूं, मैं एक कलाकार हूं। रवीन्द्रनाथ टैगोर की लिखी गई पंक्तियों को पढ़ना मेरे लिए किसी गौरव से कम नहीं है। उनके लिखे हुए विचार हमारे लिए एक ऐन्थम जैसे हैं। इस फिल्म में टैगोरजी का लिखा हुआ 'विद्या की पारसमणी' गाना भी है। वैसे पहले मैं इसे पढ़ने वाली थी, मगर समय की कमी होने के कारण इस प्रार्थना को विभा दत्त खोसला ने गाया। मगर मैं टैगोर की कुछ पंक्तियां पढ़ना चाहती थी और जब उन्होंने मुझे ये पंक्तियां सुनाईं तो मैं पढ़ने के लिए तुरंत तैयार हो गई।
 
आपने जैसा बताया कि यह एक गंभीर फिल्म है, तो फिर फिल्म का शीर्षक इस तरह का क्यों?
फिल्म का आधार नारी शक्ति है, मगर जब उसे पता चलता है कि बच्चे मुसीबत में हैं, तब उसकी शक्ति निकलकर आती है। इन बच्चों को पैसे का लालच देकर उनसे हत्या करवाई जाती है। जैसा कि बच्चों की लंबाई 4 फुट है इसलिए फिल्म का नाम 'चारफुटिया छोकरे' है।
 
निर्माताओं के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?
सुनील और विभा खोसला बिलकुल नए भी नहीं हैं। इसके पहले वे मराठी की ब्लॉक बस्टर फिल्म 'गजर' बना चुके हैं। इस फिल्म ने मराठी के सारे अवॉर्ड जीते थे इसलिए उन्हें अपने काम का पूरा अनुभव है।
 
क्या ये फिल्म बच्चों की है?
नहीं! ये फिल्म बच्चों को लेकर है और वे फिल्म का अंतरंग हिस्सा हैं, पर ये एक पारिवारिक‍ फिल्म है। फिल्म की कहानी इस बात पर जोर देती है कि हमें बच्चों से उनका बचपन छीनने का कोई हक नहीं है। ये बहुत दु:ख व शर्म की बात है कई गांवों व छोटे शहरों में बच्चों के हाथ में किताबें और खिलौने देने की बजाए उन्हें बंदूक और गुनाह करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
 
इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत क्या है?
इसकी कहानी, कलाकार और इसका संगीत।
 
आपके कुणाल के साथ कैसे संबंध है?
बहुत ही खूबसूरत। मैं उन्हें 5-6 सालों से जानती हूं। हालांकि मैं उनसे उम्र में कुछ बड़ी हूं, पर फिल्म जगत में वे मेरे सीनियर हैं इसलिए मैं हमेश उनसे राय लेती हूं।
 
आपकी आने वाली फिल्में?
एक फिल्म का नाम है 'अक्टूबर 31', जो‍ कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए दंगों के ऊपर है, वहीं दूसरी है राहुल बोस के साथ रोमांटिक कॉमेडी 'जीने दो'।