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Written By डॉ. मनोहर भंडारी

बॉलीवुड की एक ही बयार

बॉलीवुड की एक ही बयार -
बॉलीवुड में ऐसी परम्परा हमेशा से चली आ रही है कि किसी एक निर्देशक ने भूत पर फिल्म बनाई तो पूरा बॉलीवुड ही भुतहा होने लगता है। वहीं अगर कॉमेडी की बयार चली तो पूरा बॉलीवुड दर्शकों को हँसाने के लिए उतावला होने लगता है। कहने का अर्थ है कि परिस्थिति के अनुसार विषयों को गढ़ने की बजाय सुर में सुर मिलाने की कोशिश बॉलीवुड की परम्परा रही है।

ज्यादा पीछे न जाते हुए इसी साल की फिल्मों पर नजर डालें तो बात और भी स्पष्ट होती है। जब निखिल आडवाणी ने 'सलाम-ए-इश्क' में बारह कलाकारों और छः कहानियों के साथ फिल्म गढ़ने की कोशिश की तो सारी फिल्म इंडस्ड्री इसी फॉर्मूले के पीछे भागने लगी। रीमा कागती ने भी 'हनीमून ट्रैवल्स प्रायवेट लि.' में ढेर सारी जोड़ियों के साथ फिल्म बना डाली। नतीजा यह रहा कि दोनों ही फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर फ्लॉगई।

अभी हाल ही में रामगोपाल वर्मा की निःशब्द आई। बेमेल प्यार को आधार बनाकर फिल्म का ताना-बाना बुना गया। ऐसा नहीं है कि इस विषय पर बॉलीवुड में फिल्में नहीं बनी हैं, लेकिन जैसे ही रामगोपाल वर्मा ने इस विषय को हाथ लगाया तो लोगों की सोई स्मृतियाँ जाग उठीं और अब कुछ ऐसे ही विषय को लेकर फिल्म आ रही है 'चीनी कम'। एक बार फिर इस फिल्म में अमिताभ मुख्य किरदार में हैं।

एक विषय के पीछे बॉलीवुड के पिल पड़ने की यह आदत नई नहीं है। इसके पहले भी इस तरह की परम्परा का निर्वाहन होता रहा है। आपको याद हो कि सन्‌ 2000 में एक ने भगत सिंह बनाई तो पूरा बॉलीवुड ही बसंती रंग में रंगने लगा। फिर क्या था, दर्शकों को बोनस में चार-चार भगत सिंह एक साथ मिल गए। कोई 'लीजेंड ऑफ भगत सिंह' तो कोई 'भगत सिंह' के नाम से उनका गुणगान कर रहा था। ऐसा तो नहीं है कि भगत सिंह की देशभक्ति आज की बात है, फिर अचानक से सबके मन में देशभक्ति का जागृत होना जहाँ अचम्भित करता है, वहीं दर्शकों को निराश भी।

दर्शकों की यह इच्छा रहती है कि उन्हें साल में अलग-अलग विषयों पर बनी फिल्में देखने का मौका मिले। इससे जहाँ मनोरंजन में इजाफा होता है, वहीं विविधता भी आती है। साल भर एक ही तरह की फिल्में प्रदर्शित होने के कारण ही सारी फिल्मों का हश्र भी लगभग एक जैसा ही होता है। दर्शक यह निर्णय लेने में खुद को असमर्थ पाते हैं कि आखिर एक ही विषय की दस फिल्मों को कैसे अलग-अलग रेटिंग दी जाए। विषयों का संकट तो नहीं है, लेकिन नकल से बुरी तरह ग्रस्त हमारा बॉलीवुड न केवल विदेशी फिल्मों की नकल करता है, वरन एक-दूसरे की नकल करने से भी नहीं चूकते हैं। खैर, इसका परिणाम भी बॉलीवुड को ही भोगना पड़ता है। साल भर में न जाने कितनी ही फिल्में ऐसे ही आती-जाती हैं। कई फिल्मों के आने की खबर तक दर्शकों को नहीं लग पाती।

हाल ही में जब इंडस्ट्री में रीमेक की बयार चली तो सभी उसी दिशा में बहने लगे। बहुत कम ही फिल्म ऐसी बची होंगी, जिसका रीमेक करने की कोशिश इस साल नहीं की गई।

अगर इसी तरह एक ही बयार बॉलीवुड में बहती रही तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब लोग कहानी किसी और की और कलाकार किसी और फिल्म का याद रखेंगे। यानी दुल्हन भागेगी 'दिलवाले दुल्हनियाँ..' की और लोग उसे 'कभी खुशी कभी गम' में ढूँढते नजर आएँगे।