गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. »
  3. बॉलीवुड
  4. »
  5. आलेख
Written By ND

देव आनंद अपने बारे में

चरेवैती-चरेवैती : चलते चलो, चलते चलो

देव आनंद अपने बारे में -
मैं एकाकी आदमी हूँ। मैं जानता हूँ कि आसपास के लोग मेरी बहुत इज्जत करते हैं, इसलिए जब कभी मैं उन्हें कोई फिल्म दिखाता हूँ, तो वे मुझे सच्चाई नहीं बताते। लेकिन मैं भी छुपी हुई प्रतिक्रिया सूँघने में माहिर हूँ। मेरे करियर ग्राफ में उतार-चढ़ाव का जो पैटर्न है, वह कोई अनोखी बात नहीं है। जलती-बुझती माँग और सट्टे की प्रवृत्ति से संचालित फिल्म उद्योग में ऐसा होना सामान्य बात है।

PR


महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं फिल्म निर्माण के अपने मिशन से कभी पीछे नहीं हटा। मैं जानता हूँ कि निराशा किसी भी रचनाशील व्यक्ति के लिए घातक होती है। जिन लोगों के पास गहन रचनात्मक संवेदनशीलता और ऊर्जा होती है, वे अतिसंवेदनशील होते हैं। कई मामलों में मैं भाग्यशाली रहा हूँ। मेरी फिल्म निर्माण कंपनी (नवकेतन) अच्छी चल रही है। स्टूडियो का काम भी अच्छा चल रहा है। मेरे ऐसे मित्र और शुभचिंतक हैं, जो मेरे लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।

मेरे, देश में और विदेश में भी बहुत-से प्रशंसक हैं। इसलिए मेरी फिल्म यात्रा जारी है। चरेवैती-चरेवैती...। हर समय कोई न कोई, कहीं न कहीं आपके अवचेतन को प्रभावित करता रहता है। आप मानें या न मानें, लेकिन यह सच है। सबसे पहले मुझ पर अपने पिता पिशोरीमल आनंद का प्रभाव पड़ा, जो वकील और कांग्रेस कार्यकर्ता होने के अलावा बहुत पढ़े-लिखे और विद्वान आदमी थे। कई देशी और विदेशी भाषाएँ जानते थे और जीवन में शिक्षा को धन से अधिक महत्व देते थे। उन्होंने मुझे सही जीवनमूल्यों की धरोहर दी। एक मौका ऐसा भी आया, जब बड़े भाई चेतन आनंद की प्रतिभा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे मुझसे ज्यादा पढ़े-लिखे और परिष्कृत अभिरूचि के आदमी थे।

कॉलेज के प्रोफेसरों और फिल्म क्षेत्र के वरिष्ठजनों ने भी मुझे काफी प्रभावित किया। मैंने अपने मस्तिष्क के द्वार सदैव खुले रखे। लोगों से मिलने-जुलने से मैंने कभी गुरेज नहीं किया, क्योंकि मैं जानता हूँ कि कई तरह के लोगों के मिलने से जीवन के कई रंगों की जानकारी हासिल होती है। सिर्फ किताबें पढ़कर उतना नहीं जाना जा सकता, जितना मिलनसारिता से जाना जा सकता है।

लोकप्रियता का मूल्य
मैं न्यू-कमर्स के साथ काम करना पसंद करता हूँ, क्योंकि मैं सितारों की बदमिजाजी बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं भी स्टार रहा हूँ और मैंने कभी नखरे नहीं दिखाए। जो एक्टर व्यावसायिक रूप से ईमानदार और समर्पित नहीं होता, वह प्रोड्यूनसर-डायरेक्टर ही नहीं, खुद को भी नुकसान पहुँचाता है। आज यह बात पहले से ज्यादा मायने रखती है, क्योंकि वे अपनी लोकप्रियता की कीमत वसूलते हैं। अब फिल्म बनाना और उसे सिनेमाघरों तक पहुँचाना आसान नहीं रह गया है।

मार्केट जरूरत से ज्यादा जागरूक हो गया है। वितरक स्टार-कास्ट देखकर फिल्में उठाते हैं। दस साल पहले या पचास साल पेले भी मार्केट स्टार-कास्ट की तरफ ध्यान देता था, लेकिन स्टार अपनी तरफ से फिल्मों के काम में कभी देरी नहीं करते थे, अलबत्ता फिल्म की सजीवता बढ़ाने की भरसक कोशिशें करते थे। अब इस व्यवसाय से ईमानदारी जा चुकी है। दस-पंद्रह साल पहले तक ऐसा नहीं था। आज वादे भी ठीक तरह से नहीं निभाए जाते लेकिन मैं यह सब सहज भाव से लेता हूँ और खुश रहता हूँ।

जीवन में परिवर्तन अपरिहार्य है और किसी को भी परिवर्तन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ता है। सामाजिक आकांक्षाएँ, मानदंड, माँगें, आदर्श, सदाचार सब बदलते रहते हैं। मुझे कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। मैं जो करना चाहता था, सारी जिंदगी वही करता रहा। यद्यपि मैंने समायोजन किए, लेकिन समझौते नहीं किए। मैं जानता हूँ कि मेरे प्रशंसक मेरा पीछा करते रहते हैं, मेरी शूटिंग देखने के लिए उमड़ते हैं। मुझसे मिलने आते हैं, बातें करते हैं।

मैं अपने किसी 'फैन' को निराश नहीं करना चाहता। मैं उनके लिए सुलभ हूँ। अपना टेलिफोन खुद उठाता हूँ और पत्रों के जवाब भी देता हूँ। उनसे मेरी क्रिया-प्रतिक्रिया का रिश्ता दिलचस्प है। एक्टर और डायरेक्टर के रूप में मेरा अस्तित्व इन्हीं चाहने वालों पर निर्भर है। मैं फिल्में बनाने के ‍अलावा अन्य कोई काम नहीं जानता। मैं जब तक फिल्में बना सकूँगा, बनाता रहूँगा।(वेबदुनिया)