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Written By समय ताम्रकर
Last Modified: बुधवार, 8 अप्रैल 2015 (18:26 IST)

...तो 'पीके' का कलेक्शन एक हजार करोड़ रुपये होता

...तो 'पीके' का कलेक्शन एक हजार करोड़ रुपये होता - PK, Box Office
पीके को हिंदी फिल्म इतिहास की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक माना जाता है। कामयाबी का पैमाना फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर किए गए कलेक्शन के आधार पर तय किया जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि फुटफॉल (सिनेमाघर आने वाले दर्शकों की संख्या) के आधार पर फिल्म की कामयाबी तय की जानी चाहिए। संभव है कि शोले या मुगल-ए-आजम को ज्यादा लोगों ने देखा हो, लेकिन उस समय टिकट दर बहुत कम थी, इसलिए दो दौर की फिल्मों की तुलना कलेक्शन के आधार पर करना गलत है। 
 
खैर, पीके ने भारत से लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये का कलेक्शन किया और इसे लगभग साढ़े तीन करोड़ लोगों ने देखा। यानी प्रति टिकट सौ रुपये का औसत आता है। भारत की जनसंख्या को लगभग सवा सौ करोड़ हम मान लेते हैं। पीके सर्वाधिक कामयाब फिल्म रही है और इसे सवा सौ करोड़ में से मात्र साढ़े तीन करोड़ लोगों ने टिकट खरीद कर देखा। यानी सिर्फ 2.8 प्रतिशत लोगों ने फिल्म देखी और इसे सबसे कामयाब फिल्म बना दिया। स्पष्ट है कि सिनेमाघर में फिल्म देखने का चलन कितना कम है। यदि दस प्रतिशत लोग फिल्म देखने सिनेमाघर जाएं तो कलेक्शन का आंकड़ा एक हजार करोड़ रुपये तक जा सकता है, जिसकी कल्पना भी बॉलीवुड के लोग नहीं करते हैं।
दरअसल सिनेमाघरों की अनुपलब्धता भी इसका एक कारण है। दक्षिण भारत के चार राज्यों में सिनेमाघरों की संख्या शेष भारत के सिनेमाघरों से ज्यादा है। वहां फिल्में बहुत अच्छा व्यवसाय करती है। हिंदी फिल्में मुख्यत: मध्य तथा उत्तर भारत में ज्यादातर देखी जाती है जहां सिनेमाघरों की संख्या बहुत कम है।  
 
सिनेमाघर खोलने में लोगों की ज्यादा रूचि भी नहीं है क्योंकि सरकार कोई खास मदद नहीं करती है और टैक्स खूब लेती है। जो भी सिनेमाघर हैं उनमें से ज्यादातर खस्ताहाल है। सुविधाघर से लेकर कुर्सियों तक की हालत खराब है। सिनेमाघर मालिक चाह कर भी इसे सुधार नहीं सकते हैं क्योंकि वे पहले से ही घाटे में हैं। सरकार और फिल्म इंडस्ट्री यदि मिल कर सोचे तो सिनेमा के जरिये खासा धन कमाया जा सकता है, लेकिन विभिन्न कारणों से ऐसा नहीं हो पा रहा है। 
 
अवैध तरीके से फिल्में देखी जा रही हैं और इस पर कोई रोक नहीं है। शुक्रवार की सुबह रिलीज हुई फिल्म शाम को लोग अपने मोबाइल पर देख लेते हैं। पीके को यदि टिकट खरीद कर साढ़े तीन करोड़ लोगों ने देखा है तो अवैध रूप से चार गुना लोगों ने इसे देखा होगा। यदि पायरेसी पर रोक लग जाती तो पीके का कलेक्शन हजार करोड़ रुपये के पार हो चुका होता। सरकार को मनोरंजन कर के रूप में ढेर सारा पैसा मिलता, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। फिल्म जगत में एकजुटता नहीं है तो सरकार फिल्म उद्योग को गंभीरता से नहीं लेती। 
 
यदि सिनेमाघरों खोलने की सरकार ठीक से योजना बनाए। सिनेमाघर मालिक उनका रख-रखाव अच्छे से करें। टिकट दर कम हो तो दर्शकों की संख्या बढ़ेगी और कलेक्शन कही ज्यादा होगा। फिल्म इंडस्ट्री को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि क्यों फिल्म देखने वाले दर्शकों का प्रतिशत इतना नगण्य है? क्या वे दर्शकों की रूचि के अनुरूप फिल्में नहीं बना पा रहा हैं? क्या ऊंचे दर की टिकट खरीद पाने में दर्शक सक्षम नहीं है? क्या फिल्में स्तरीय नहीं है? क्या कारण है कि बॉलीवुड के एक सुपरस्टार को देखने के लिए शहर उमड़ पड़ता है, लेकिन उसकी फिल्म के टिकट खरीदने वाले पांच प्रतिशत भी नहीं होते हैं। बहुत सोच-विचार की जरूरत है।