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Written By स्मृति आदित्य

मन्ना दा : आवाज का मीठा अमृत शेष है...

मन्ना डे का मुकाबला मन्ना डे से ही था

Manna Dey Expired | मन्ना दा : आवाज का मीठा अमृत शेष है...
मन्ना दा नहीं रहे। खबर उनके गंभीर स्वास्थ्य की थी लेकिन अब जबकि उनके जाने की पुष्ट‍ि हो चुकी है। कानों में घुल रहे हैं उनके हर तरह के हर रेंज के मधुर गीत। उनकी आवाज की तरह उनके व्यक्तित्व की सरलता-तरलता ही थी कि उन्होंने कभी किसी गीत को गाने से गुरेज नहीं किया और हर किस्म के गाने हर किसी के लिए गाए। आरंभ में उन्हें सहायक कलाकार, कॉमेडियन, चरित्र अभिनेता या बैकग्राउंड में चलने वाले गीत मिले लेकिन उनके व्यवहार की तरह उनका भाग्य भी सरल था कि उन गानों ने भी लोकप्रियता के चरम को छुआ। चाहे 'कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार) हो या ज़िंदगी कैसी है पहेली (आनंद)। हर गीत से उनकी अनूठी छवि का परिचय होता है।
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उन्हें कई आवाज का जादूई मिश्रण कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे चंचलता में किशोर से कम नहीं थे (इक चतुर नार करके सिंगार-पड़ोसन), रोमांटिक गानों में रफी के साथ थे,(ये रात भीगी-भीगी-श्री 420), शास्त्रीय गानों में उनके गाने बेमिसाल हैं (लागा चुनरी में दाग -दिल ही तो है) वहीं देशभक्ति के गानों में उनकी आवाज दिल गहराइयों में उतर कर सुप्त तार झनझनाती सी लगती है-ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)।

एक बार संगीतकार अनिल विश्वास ने किसी साक्षात्कार में कहा था कि 'मन्ना हर वह गीत गा सकते हैं जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाए हों। लेकिन इनमें कोई भी मन्ना के हर गीत को नहीं गा सकता।'

'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी..,'ना तो कारवां की तलाश है'... 'ओ मेरी जोहरा जबीं' और 'ए भाई जरा देख के चलो'...जैसे गीत गाकर उन्होंने उस समय प्रचलित इस तथ्य को झुठला दिया कि वे मात्र शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं।

महान गायक मोहम्मद रफी ने अपने प्रशंसकों से एक बार कहा था- 'आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को सुनता हूं।'

उनकी आवाज में साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला को सुनना एक अलौकिक अनुभव है।

वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने बांग्ला में उनकी आत्मकथा 'जिबोनेर जलासोघोरे' प्रकाशित की। इसी आत्मकथा को अंग्रेजी में पैंगुइन बुक्स ने 'Memories Alive' के नाम से छापा जब कि यही पुस्तक हिन्दी में इसी प्रकाशन से 'यादें जी उठी' नाम से आई। मराठी संस्करण साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया। मन्ना डे के जीवन पर आधारित एक अंग्रेजी डॉक्यूमेंट्री 'जिबोनेरे जलासोघोरे' 30 अप्रैल 2008 को कोलकाता में रिलीज़ हुई थी।

मन्ना दा का जाना निश्चित तौर पर संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। फिल्म 'सीमा' में गाए गीत 'तू प्यार का सागर है' का एक-एक शब्द जैसे उनके ही व्यक्तित्व के लिए गुंथा गया हो... सचमुच उनकी अमृतमयी आवाज की बूंद के प्यासे हम थे और रहेगें।

जीवन परिचय : मन्ना दा का पूरा नाम प्रबोध चन्द्र डे था। उनका जन्म 1 मई, 1920 को कोलकाता में हुआ। भारतीय ‍फिल्म संसार में उन्हें सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक के रूप में जाना जाता रहेगा। 1950 से 1970 के दशकों में उनकी गाए गीतों की प्रसिद्धि परवान पर थी। उनके गीतों की संख्या 3500 से भी अधिक है।

उन्हें 2007 के प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया। सन 2005 में भारत सरकार ने उन्हें कला के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया था। मन्ना दा के पिता की तमन्ना उन्हें वकील के रूप में देखने की थी लेकिन संगीत में गहन रूचि के चलते उन्होंने यह मुकाम पाया। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा चाचा 'के सी डे' से हासिल करने के बाद 'उस्ताद अब्दुल रहमान खान' और 'उस्ताद अमन अली खान' से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा।

मन्ना डे की शिक्षा : मन्ना डे ने 'स्कॉटिश चर्च कॉलिजियेट स्कूल' व 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' से पढ़ाई करने के बाद कोलकाता के 'विद्यासागर कॉलेज' से स्नातक की शिक्षा पूरी की। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें कुश्ती, मुक्केबाजी और फुटबॉल में भी गहरी दिलचस्पी रही।

मन्ना दा का वैवाहिक जीवन : संगीत के माध्यम से ही मन्ना डे जीवनसाथी 'सुलोचना कुमारन' से मिलें। 18 दिसंबर 1953 को मन्ना डे ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। उनकी दो बेटियां हैं। सुरोमा और सुमिता।

सुरीला करियर : 1940 के दशक में मन्ना दा भाग्य आजमाने मुंबई आ गए। वर्ष 1943 में फिल्म 'तमन्ना' में बतौर पार्श्व गायक उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। इससे पहले फिल्म 'रामराज्य' में कोरस के रूप में वे गा चुके थे। संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ उनकी खूब जमी। इस जोडी़ ने उनसे अलग-अलग शैली में गीत गवाए। मन्ना दा ने गायन के क्षेत्र में विविधता का ऐसा शिखर खड़ा किया है जिसका मुकाबला किसी गायक से नहीं हो सकता। मन्ना दा का मुकाबला मात्र मन्ना दा से ही था।