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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 28 अगस्त 2014 (12:50 IST)

मैला ढोना आध्यात्मिक अनुभव: नरेंद्र मोदी

- अंकुर जैन (अहमदाबाद से)

मैला ढोना आध्यात्मिक अनुभव: नरेंद्र मोदी -
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त को लाल किले से अपने संबोधन में घर-घर शौचालय बनाने की जोर-शोर से बात की, लेकिन उन्होंने मैला ढोने के इस अमानवीय पेशे में लगे लोगों के बारे में कुछ नहीं कहा।

हालांकि सात साल पहले एक किताब में मोदी ने इस काम को आध्यात्मिक अनुभव बताया था। उन्होंने इसे 'संस्कार' कहा था और इसे सिर्फ पेशा मानने से इनकार किया था।

किताब पर बवाल मचने के बाद गुजरात सरकार ने इसे रातों-रात वापस ले लिया था। आखिर ऐसा क्या लिखा था इस किताब में?

पढ़ें अंकुर जैन की पूरी रिपोर्ट...

गुजरात के कई हजार सफाई कर्मचारी शायद यही मानते हैं कि साल 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने अपनी किताब 'कर्मयोग' में जो विचार व्यक्त किए थे, अब शायद बदल गए हों।

साथ ही उन्हें डर इस बात का है कि मोदी के विचार यदि नहीं बदले हैं तो उनके बच्चे और आने वाली पीढ़ियां भी लोगों का मैला ही साफ करते रहेंगे।

बवाल के बाद वापिस : अक्टूबर 2007 में नरेंद्र मोदी की किताब 'कर्मयोग' की लगभग 4,000 प्रतियां छपी थीं, लेकिन राज्य में चुनाव आचार संहिता के कारण किताब बांटी नहीं गई। लेकिन चुनाव बाद सरकार ने अचानक सभी प्रतियां वापस ले लीं।
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टाइम्स ऑ इंडिया के पूर्व राजनीतिक संपादक राजीव शाह बताते हैं, 'मुझे गुजरात सरकार के एक आला अफसर से किताब की प्रति पहले ही मिल गई थी। जब मैंने उसमें देखा कि मोदी ने दलित और जातिगत ढांचे को लेकर कई आपत्तिजनक बातें लिखी हैं तो मैंने इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा। इसके बाद बवाल मचा और उसे सरकार ने वापस ले लिया।'

गुजरात सरकार में श्रममंत्री और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के प्रभारी दिलीप ठाकोर कहते हैं, 'जिस साल किताब छपी थी तब मैं सरकार में नहीं था। मुझे अब इतने साल बाद याद भी नहीं कि मैंने वह किताब पढ़ी थी या नहीं या क्या उसमें कुछ आपत्तिजनक लिखा था या नहीं।'

मोदी की कलम से : अपनी किताब 'कर्मयोग' के पृष्ठ नंबर 48 पर नरेंद्र मोदी लिखते हैं, 'आध्यात्मिकता के अलग-अलग अर्थ होते हैं। शमशान में काम करने वाले के लिए आध्यात्मिकता उसका रोज का काम है- मृत देह आएगी, मृत देह जलाएगा। जो शौचालय में काम करता है उसकी आध्यात्मिकता क्या? कभी उस वाल्मीकि समाज के आदमी, जो मैला साफ करता है, गंदगी दूर करता है, उसकी आध्यात्मिकता का अनुभव किया है?

इसी पन्ने पर वे आगे लिखते हैं, 'उसने सिर्फ पेट भरने के लिए यह काम स्वीकारा हो मैं यह नहीं मानता, क्योंकि तब वह लंबे समय तक नहीं कर पाता। पीढ़ी दर पीढ़ी तो नहीं ही कर पाता। एक जमाने में किसी को ये संस्कार हुए होंगे कि संपूर्ण समाज और देवता की साफ-सफाई की जिम्मेदारी मेरी है और उसी के लिए यह काम मुझे करना है।'

मोदी लिखते हैं, 'इसी कारण सदियों से समाज को स्वच्छ रखना, उसके भीतर की आध्यात्मिकता होगी। ऐसा तो नहीं होगा कि उसके पूर्वजों को और कोई नौकरी या धंधा नहीं मिला होगा।'