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Written By BBC Hindi

पंजाब के 'मिनी श्रीलंका' को है पुल का इंतजार

- अजय शर्मा (मंड से लौटकर)

Mand_Electionspl2014 | पंजाब के ''मिनी श्रीलंका'' को है पुल का इंतजार
'कोई भी शख्स टापू नहीं, खुद में पूरा। हर शख्स है एक महाद्वीप, पूरे का हिस्सा...’ जॉन डन ने जब ये लाइनें लिखी थीं, तो उन्हें शायद टापू मंड का पता नहीं था।
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मंड वो जगह है जिसे मीडिया पंजाब का मिनी श्रीलंका कहता है। पता तो शायद पंजाब के बड़े हिस्से को भी न हो क्योंकि जालंधर से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर होने के बावजूद इसका बाकी दुनिया से कोई सीधा रिश्ता नहीं है, एक पॉन्टून पुल को छोड़कर।

वह भी जून में हटा लिया जाता है और अक्टूबर में तब लगता है, जब बाढ़ का पानी नीचे उतर आता है।

पंजाब सरकार का मंड से बहुत पुराना रिश्ता है, चरमपंथ के दिनों का, जब खालिस्तान कमांडो फोर्स और बब्बर खालसा इंटरनेशनल की इस पनाहगाह को उखाड़ फेंकने के लिए पंजाब के पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने यहां अभियान चलाया था, और शायद इसीलिए बाक़ी पंजाब मंड से रिश्ता रखना भी नहीं चाहता।

पिछले साल जब बाढ़ आई और निंदर सिंह का घर डूबने लगा तो उसकी चीखें भी किसी ने न सुनीं। बहन की शादी सिर्फ तीन दिन दूर थी। बड़े अरमानों से घर बनाया था। निंदर और उनके पिता जोगिंदर सिंह खुद कश्ती पर ढो-ढोकर 70 हजार ईंटें और 15 हजार टाइलें लाए थे।

खेती से जो मिला था, वह मकान में लग चुका था। अब वह भी डूब रहा था, उसकी आंखों के सामने।

बहन की शादी से तीन दिन पहले..
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'बाप-दादों की जमीन थी। आज से 40 साल पहले मेरे दादा ने ली थी। उसके बाद मेरे पिता यहीं रहे। पिता को लगा कि मैंने जमीन आबाद की थी। अब हम सुख की रोटी खाएंगे। जिस दिन यह हुआ, उस दिन वह सुल्तानपुर लोदी से आए थे। यहां आकर बाढ़ में घर को पानी में समाते देखा, तो उनका मन खराब हो गया। उन्होंने हमें कुछ नहीं बताया और..."

डबडबाई आंखों से निंदर मुझे जब यह बता रहे थे, तो हम टापू मंड में उनके गांव रामपुर गौरा की उसी जगह खड़े थे, जहां कभी उनका दो कनाल में बना घर हुआ करता था। जिस दिन बाढ़ में निंदर का घर डूबा, उनकी बहन के ब्याह में सिर्फ तीन दिन बचे थे। पिता जोगिंदर सिंह ने उसी दिन खुदकुशी कर ली।

निंदर बताते हैं, 'शादी थी इसलिए हमने पुलिस को भी नहीं बताया क्योंकि तीन दिन रह गए थे। चुन्नी चढ़ाकर बहन की शादी कर दी।'

निंदर का घर और सारा सामान पानी में समा चुका था। उफनती हुई ब्यास नदी से जूझते हुए निंदर किसी तरह पास के जिले तरनतारन पहुंचे और वहां अपने एक रिश्तेदार के घर में शरण ली।

‘वोट न अकालियों को, न कांग्रेस को’ : निंदर ने उस जगह इशारा किया जहां उनका घर ब्यास नदी की गोद में डूबा हुआ है। निंदर में अब इतनी हिम्मत नहीं कि वह दोबारा यहां घर बनाएं।

मंड टापू पर निंदर सिंह समेत करीब 3000 वोटर हैं, मगर बहुत कम ऐसे खुशनसीब हैं, जिन्हें वोट डालने के लिए आठ से नौ किलोमीटर का सफर न तय करना पड़े। निंदर को भी लखबरयां गांव तक का सफर तय करके वोट डालने जाना होगा।

निंदर को पता है कि वोट क्या होता है, और निंदर को यह भी पता है कि पार्टियों को वोट क्यों नहीं देना चाहिए।

वो कहते हैं, 'हम इस बार न तो अकाली दल को वोट देंगे और न कांग्रेस को। अगर जरूरत पड़ी तो आम आदमी पार्टी को अपना वोट देंगे या फिर किसी को नहीं (नोटा) का बटन दबा देंगे।' पिछले साल जब बाढ़ आई थी तो मंड पर खड़ी फसल चार से पांच फीट तक पानी में थी। हालात इतने ख़राब थे कि कई घर ब्यास ने निगल लिए थे।

मुश्किलें इस कदर थीं कि तीन किसानों ने इनसे जूझने के बजाय खुद को खत्म करना बेहतर समझा। इन्हीं में जसविंदर कौर के पति प्रीतम सिंह भी थे।

कुछ न बदला खुदकुशी से...


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कुछ न बदला खुदकुशी से : प्रीतम सिंह की बेवा जसविंदर कौर से मेरी मुलाकात मंड के गांव रामपुर गौरे में उनके घर पर हुई। घर पर लोगों की भीड़ थी। हमें देखकर जसविंदर को उम्मीद जगी थी कि शायद हमारे लिखने से उनके जीवन में छाया अंधेरा छंट जाएगा।

मंड टापू, कपूरथला, पंजाब, सुल्तानपुर लोदी

उस दिन को याद करते हुए वह बोलीं, 'पानी आया और खेतों में रेता पड़ गया। राखी वाले दिन वह डूबे थे, इसी पानी में। हमारे घर तक किश्ती आ गई थी।'

प्रीतम सिंह को लगा था कि जब सब कुछ बर्बाद हो ही चुका, तो उनके जीने का क्या फायदा। मगर उनके खुदकुशी करने से भी कुछ नहीं बदला। बाढ़ का पानी उतरा, चार कीले खेत बर्बाद हो चुके थे, आढ़तिए के कर्ज का बोझ परिवार पर पहले से था। जिंदा रहने के लिए उन्हें और कर्ज लेना पड़ा।

'बहुत मुश्किल से पैसा लगाकर रेता हटाया। फिर लड़कों ने गेहूं लगाई। 50-60 हजार रुपए लग गए।' इसके बाद तीनों बेटों ने मजदूरी का दामन थामा। यहां तक कि दोनों बेटियां भी दिहाड़ी कर रही हैं।

बाकी पंजाब की तरह मंड में भी बिजली मुफ्त है, पर सिर्फ कुछ घंटे ही मिलती है। नतीजा खेती में डीजल का बेतहाशा खर्च।

वो कहती हैं, 'खेती से हमारा काम ही चल जाए वही बहुत है, बेचकर कमाई करना तो दूर की बात है। पूरे साल में सिर्फ एक फसल मिलती है और वह भी तब, जब बाढ़ न आए।'

जसविंदर कौर को पता है कि अगर जिंदा रहना है तो दिहाड़ी पर ही जीना होगा। कर्ज़ ऐसा सच है जिसकी अनदेखी उनके लिए अब नामुमकिन है।

कुंवारों की भीड़ : मंड के लोगों की शादी-ब्याह भी काफी पेचीदा मामला है। इन गांवों की लड़कियों की शादी तो हो जाती है, पर यहां के लड़कों को कोई अपनी बेटी नहीं देना चाहता।

हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग परगट सिंह से हुई। जिनका कहना था कि यहां के हर गांव में आपको ऐसे लोग मिलेंगे जिनके रिश्ते नहीं हो पा रहे।

वे बताते हैं, 'मंड में ऐसे 70 से 80 लड़के होंगे, जिनके साथ शादी करने से सबने मना कर दिया है। कोई यहां रिश्ता नहीं करता, न करना चाहता है।'

बाढ़ आती है तो गर्भवती औरतों और उनके होने वाले बच्चों की जिंदगी भगवान भरोसे होती है। डिलीवरी के लिए उन्हें ले जाना मुश्किल होता है। इस वजह से कुछ बच्चों की मौत भी हो चुकी है। बीमार हो जाएं तो चारपाई पर डालकर ही ले जा सकते हैं, वो भी तब जब किश्ती मिल जाए। इसमें भी करीब तीन घंटे लग जाते हैं।

किसान परमजीत सिंह बताते हैं कि बाढ़ के दौरान बीमार कुछ किसानों की मौत भी हो चुकी है।

किसान संघर्ष कमेटी : अब मंड के बाशिंदों की नुमाइंदगी करने के लिए किसान संघर्ष कमेटी बन गई है। जिसके जिलाध्यक्ष परमजीत सिंह से बात करने पर लगा कि नेताओं से उनका विश्वास उठ चुका है।

उन्होंने बताया, 'हम तीन साल से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं सरकार के पास। हमारी जमीन बह रही है। हर बार हमें आश्वासन दे देते हैं कि हमने प्रपोजल बनाकर भेज दिया है। जब हम पता करते हैं तो कहते हैं डीसी के पास है। डीसी से पूछो तो वह कहते हैं कि सरकार को भेज दिया है। असलियत में हुआ कुछ नहीं है। किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।'

सांगरा गांव के रहने वाले कुलदीप सिंह ने हमें इलाक़े का दौरा कराया और फिर बोले, 'बाढ़ का स्थायी हल हो सकता है, लेकिन सरकार करती नहीं। तरनतारन की तरफ से 40 फीट ऊंची जमीन है। उनकी साइड पर अगर पत्थर लगा दें और ब्यास को मंड में नहर का रूप दे दें, तो पानी सीधा आगे चला जाएगा और हमारी फसल बच जाएगी।'

मंड टापू पर मौजूद गांव बाऊपुर जदीद के सरपंच गुरमीत सिंह ने हमसे कहा कि सरकार काफी समय से झूठे वादे कर रही है, मगर पक्का पुल नहीं बनवाती। अब चुनाव हैं, तो वोटों की खातिर यहां लोग आ रहे हैं। कांग्रेसियों और अकालियों का दौरा भी हो चुका है पर हमें इनका कोई फायदा नहीं।