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Written By WD

जब युद्ध ने तेजपुर के तेज को मद्धम कर दिया

रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

जब युद्ध ने तेजपुर के तेज को मद्धम कर दिया -
BBC
1962 के भारत-चीन युद्ध पर सबसे सटीक सुर्खी द लंदन इकॉनामिस्ट ने लगाई थी- जब कोहरा छंटा तो चीनी हर जगह मौजूद थे। 18 नवंबर आते-आते सेला बिना लड़ाई के चीनियों के हाथ पड़ चुका था।

अफवाहें तो यहां तक थीं कि चौथी कोर को गुवाहाटी जाने के लिए कह दिया गया था। सैनिकों के काफ़िले पश्चिम की तरफ बढ़ रहे थे। तेजपुर को खाली करने के लिए कह दिया गया था और ननमती तेलशोधक कारखाने को उड़ाए जाने की बात चल रही थी।


तेजपुर के उपायुक्त का कहीं अता-पता नहीं था। वे डरकर भाग चुके थे। असम सरकार ने राणा केडीएन सिंह से कहा था कि वे लड़खड़ाते हुए प्रशासन की बागडोर संभालें। तेज़पुर के असैनिक नागरिकों को नाव से पश्चिमी किनारे पर ले जाया जा रहा था।

अधिकतर परिवार एक-दो सूटकेसों और छोटे ट्रंकों में जितना सामान भर सकते थे, भरकर भोमारागुड़ी घाट की तरफ बढ़ रहे थे ताकि वे ब्रह्मपुत्र नदी पार कर दक्षिणी असम की ओर बढ़ सकें।

कुछ परिवार तो कड़कड़ाती ठंड में खुले में रात बिता रहे थे ताकि दूसरे दिन तड़के सुबह ही उनका नंबर आ जाए।

तेजपुर से कूच : रह्मपुत्र के उत्तरी किनारे पर रहने वाले ज्यादातर अंग्रेज़ चाय बागान मालिकों ने अपनी संपत्ति अपने मातहतों और क्लर्कों के हवाले कर दी थी। अपने पालतू जानवरों को वह या तो बांट रहे थे या उन्हें गोली मार रहे थे।

उनका एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह कलकत्ता पहुंचा जाए। इस पूरे कूच में नावों के अलावा कारों, बसों, साइकलों और बैलगाड़ियों तक का सहारा लिया जा रहा था। कुछ लोग तो पैदल ही अपने घरों से निकल पड़े थे।

राणा लाउड स्पीकर से उद्‍घोषणा कर रहे थे कि वे शाम छ: बजे दक्षिणी किनारे जाने वाली आखिरी फेरी पर सवार होंगे और बचे हुए लोगों के लिए नदी पार करने का यह आखिरी मौका होगा। तेज़पुर एक भुतहा नगर दिखाई दे रहा था।

स्टेट बैंक ने अपने यहां रखी सारी करेंसी में आग लगा दी थी और अधजले नोटों के टुकड़े हवा में उड़ रहे थे। सिक्कों को पास के तालाब में फेंक दिया गया था।

मानसिक रोगी छोड़े गए : प्रशासन ने मानसिक अस्पताल के ताले खोल दिए थे और 20-30 विक्षिप्त लोग शहर में यहां-वहां घूम रहे थे। उन सरकारी कागजातों में भी आग लगाई जा रही थी जिन्हें चीनी किसी भी हालत में पढ़ नहीं सकते थे।

देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू असम के लोगों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे थे। उत्तर-पूर्व में रहने वाले लोग नेहरू के उस भाषण का ज़िक्र करते हुए अभी तक कहते हैं कि भारत सरकार ने तो उन्हें तभी विदाई दे दी थी।

19 नवंबर की सुबह तेज़पुर में एक पत्ता तक नहीं खड़क रहा था... लगता था जैसे सब कुछ एक जगह पर रुक गया था! सौभाग्य से चीनी तेज़पुर से 50 किलोमीटर पहले ही रुक गए थे।

युद्ध विराम : 19 नवंबर की आधी रात चीनी रेडियो ने घोषणा की कि उसने तुरंत प्रभाव से एकपक्षीय युद्ध विराम कर दिया है, बशर्ते भारतीय सेना भी उसका पालन करे।

आकाशवाणी का 20 नवंबर की सुबह का बुलेटिन अब भी सीमाओं पर भारतीय सैनिकों के वीरता से लड़ने के समाचार सुना रहा था। किसी ने भी थक कर सोए हुए प्रधानमंत्री को जगाकर चीन की इस नई पेशकश के बारे में बताने की जुर्रत नहीं की थी।

यह एक विडंबना थी कि चाहे वह जवान हो या जनरल, यह जानने के लिए पीकिंग रेडियो का सहारा ले रहा था कि उसके अपने युद्ध के मैदान में क्या हो रहा था।

21 नवंबर तक तेजपुर में ज़िंदगी धीरे-धीरे सामान्य हो चली थी। गृह मंत्री लालबहादुर शास्त्री लोगों का ढांढस बढ़ाने वहां पहुंचे थे। दो दिन बाद इंदिरा गांधी ने भी वहां का दौरा किया था और जिला प्रशासन के लोग वापस वहां पहुंचना शुरू हो गए थे।