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Written By WD

अब देश का मुसलमान नरेन्द्र मोदी से 'दो-दो हाथ' करेगा: महमूद मदनी

- इकबाल अहमद (दिल्ली)

अब देश का मुसलमान नरेन्द्र मोदी से ''दो-दो हाथ'' करेगा: महमूद मदनी -
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों के एक समूह से बातचीत के बाद कुछ हद तक इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव (2014) में मुसलमानों के चुनावी मुद्दे क्या हो सकते हैं।
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कानून की पढ़ाई करने वाले छात्र शहाब अहमद कहते हैं कि मीडिया ने मुसलमानों की एक खास छवि बना दी है कि मुसलमान हमेशा सुरक्षा और इसी तरह के मुद्दों पर बात करते हैं। उनके अनुसार मुसलमान और ासकर मुस्लिम छात्रों के और भी मुद्दे हैं।

शहाब कहते हैं, 'हमारे मुद्दे और भी हैं। नौकरी, शिक्षा और राष्ट्रीय राजनीति के जो भी अहम मुद्दे हैं, हम भी उनमें शामिल रहना चाहते हैं। लेकिन हो ये रहा है कि मीडिया के जरिए हमारी एक खास छवि बना दी गई है जिसके कारण राजनीतिक पार्टियां भी केवल उन्हीं मुद्दों पर बात करती हैं।'

शहाब के ही साथ लॉ की पढ़ाई कर रहे फव्वाज शाहीन कहते हैं, 'जो मुद्दे पूरे राष्ट्र के हैं, वही मुद्दे मुसलमानों के भी हैं। भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, राष्ट्रीय संपत्ति और संपदा की लूट दूसरे देशवासियों की तरह मुसलमानों को भी परेशान करती है। लेकिन जैसे ही चुनाव करीब आते हैं, हालात कुछ ऐसे बन जाते हैं कि मुसलमानों के लिए अपनी सुरक्षा ही सबसे बड़ा मुद्दा बन जाता है।'

दोराहे पर मुसलमान? : इंजीनियरिंग के छात्र अमीन अहमद कहते हैं, 'हमारे मुद्दे तो बहुत सारे हैं। हम भी चाहते हैं कि हम नगमे गाएं, भ्रष्टाचार के बारे में हम भी अपनी राय रखना चाहते हैं। लेकिन जब तक हमारे अंदर जो डर का माहौल है, उसे दूर नहीं किया जाएगा, तब तक हमसे किसी और मुद्दे के बारे में उम्मीद रखना ही गलत है।'
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इस गर्मागरम बहस को लगभग समाप्त करते हुए लॉ की छात्रा अनम रईस खान कहती हैं, 'जान है तो जहान है।'

सवाल ये है कि अनम या उन जैसे कुछ दूसरे मुस्लिम ऐसा क्यों कह रहे हैं?

इसका जवाब देते हुए देवबंद में किताबों के प्रकाशक और विक्रेता नदीमुल वाजिदी कहते हैं, 'मुसलमान इस समय दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ तो मुसलमान मोदी से, बीजेपी से डरे हुए हैं। दूसरी तरफ ये हुकूमतें हैं जो अब तक मुसलमानों के लिए कुछ नहीं कर सकीं।'

दर असल जब से भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है, तब से मुस्लिम समुदाय में ये बहस जोरों पर है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो क्या होगा।

एक तरफ मुस्लिम समाज कांग्रेस और दूसरी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के कार्यकाल से निराश है तो दूसरी तरफ मोदी के उम्मीदवार बनाए जाने से चिंतित है।

मोदी का नाम आते ही मुसलमानों को 2002 में हुए गुजरात दंगों की याद आ जाती है जिसमें लगभग 1200 लोग मारे गए थे और मारे जाने वालों में ज्यादातर मुसलमान थे। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मुसलमानों की जानमाल की रक्षा नाकर पाने का आरोप है।

हालांकि कानूनी तौर पर मोदी के खिलाफ अभी तक कोई केस नहीं है, दंगों से जुड़े किसी भी मामले में उनके खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं है।

मुसलमान बताशा नहीं, मोदी से डरने की जरूरत नहीं....


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मुसलमान बताशा नहीं' : लेकिन जमीयतुल उलेमा-ए-हिंद के महासचिव महमूद मदनी कहते हैं कि मुसलमानों को मोदी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।

मदनी कहते हैं, 'कोई आए कोई जाए। मुसलमान कोई बताशा नहीं है कि पानी गिरेगा और बह जाएगा। क्या किसी के प्रधानमंत्री बन जाने से मुसलमान खत्म हो जाएगा। जब गुजरात का मुसलमान वहां उनसे दो-दो हाथ कर रहा है, मुल्क भी दो-दो हाथ करेगा। हम इससे डरने वाले नहीं हैं।'

मुसलमानों के लिए इस समय सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा क्या है और जमीयत इसके लिए क्या कर रही है, इस सवाल के जवाब में मदनी कहते हैं, 'कांग्रेस ने 2004 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि वो मुसलमानों को आरक्षण देगी और सांप्रदायिक हिंसा विरोधी कानून बनाएगी। लेकिन उसने दोनों वादे पूरे नहीं किए। इसलिए कांग्रेस से कोई नई मांग क्या की जाए।'

भारतीय जनता पार्टी मोदी को लेकर किसी भी समाज और खासकर मुसलमानों के दिलों में बैठी शंका को दरकिनार करती है।
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'सबको चाहिए मोदी' : पार्टी प्रवक्ता तरुण विजय का दावा हैं, 'मोदी भारत के इतिहास में एक असाधारण नायक बनकर उभरे हैं। जिस व्यक्ति का भाजपा की विचारधारा से दूर तक संबंध नहीं है, वो भी कहता है कि हिंदुस्तान की तकदीर बदलनी है तो नरेन्द्र मोदी चाहिए। सभी जातियों, संप्रदायों के लोग एक हिंदुस्तानी तिरंगे के नीचे ये बात कह रहे हैं।'

लेकिन मुसलमान अब तक बीजेपी से अधिक संख्या में क्यों नहीं जुड़ पाया, इस सवाल के जवाब में तरुण विजय कहते हैं, 'हम समाज के ऐसे प्रत्येक वर्ग को जो थोड़ा कम जुड़ा होगा, उसके मन में कुछ आशंकाएं रहीं होंगी, उन आशंकाओं को निर्मूल करते हुए जोड़ने का प्रयास करेंगे। लेकिन हम केवल मुसलमानों पर ध्यान केंद्रित करें, हम ऐसा नहीं सोचते हैं।'

महमूद मदनी और तरुण विजय चाहे जो कहें लेकिन ज्यादातर मुसलमानों का मानना है कि उनके सामने मोदी की एक खास छवि है जिसे आसानी से भुलाई नहीं जा सकता।

देवबंद के एक जाने माने सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हसीब सिद्दीकी कहते हैं कि 'मोदी हिंदुओं को पाकिस्तान का नाम लेकर डराना चाहते हैं और कांग्रेस बीजेपी का नाम लेकर मुसलमानों को डराना चाहती है।'

मोदी से वो सीधा सवाल करते हुए कहते हैं, 'मोदी ये बताएं कि उनके चुनावी पिटारे में मुसलमानों के लिए क्या है। वो स्टेज से इसका ऐलान करें कि हम मुसलमानों को ये देंगे, ताकि बात तो साफ हो। तुम वोट लेना चाहते हो और टोपी वाले मुसलमानों को ढ़ूंढ भी रहे हो कि मुसलमान आपकी मदद करें। ये तब तक नहीं होगा जब तक आप सार्वजनिक नहीं करेंगे कि आपकी क्या नीति है।'

2014 में सत्ता की गंभीर दावेदारी करने वाली भाजपा आखिर मुसलमानों के बारे में क्या सोचती है और लगभग 15 फीसदी वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसके पास क्या है, इसका जवाब तो शायद तरुण विजय के पास भी नहीं है।

वो केवल इतना कहते हैं, 'कैसे हर हिंदुस्तानी के चेहरे पर खुशी और रौनक आए। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी चिंतित है। हम अगर एक ही फिरके को लेकर चलेंगे तो बाकी लोग कहेंगे कि क्या आप भी वही कांग्रेस की राह पर चल रहे हैं।'

अगले पन्ने पर मुसलमानों में मोदी का डर...


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'मोदी का डर' : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाली प्रोफेसर जोया हसन कहती हैं, 'मुसलमान यूपीए से बहुत खुश तो नहीं है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन जाए और ऐसे में बीजेपी की सरकार बनने की संभावना है। इसको देखते हुए मुसलमानों में एक डर तो है कि अगर बीजेपी की सरकार बन गई तो जैसा गुजरात में हुआ वो ही क्या और जगह भी होगा।'

दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती कहती हैं, 'जब मुसलमान वोट डालता है तो वो भी चीजों को उसी तरह से देखता है जैसे कि और शहरी देखता है। लेकिन इस बार खास बात ये है कि एक तरफ यूपीए सरकार के दस साल की एंटी इनकमबेंसी है और दूसरी तरफ भाजपा के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी हैं जिनकी एक खास छवि है मुस्लिम समुदाय में।'

सीमा चिश्ती के अनुसार ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि 'मुसलमान वोट डालने के लिए पहले से कोई तैयारी करता है, हां इतना जरूर है कि गरीब आदमी या फिर मुसलमान, जिसको भी अपने पिछड़ेपन का जरा सा भी एहसास होता है उसके लिए वोट एक बहुत ही खास हथियार होता है जिसका वो बहुत सोच समझकर इस्तेमाल करता है।'

पिछले कुछ वर्षों में क्लिक करें चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में भारत के कई शहरों से बहुत सारे मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी हो रही है।

कई मामलों में तो दस-दस साल के बाद उन गिरफ्तार युवाओं को अदालत ने बरी कर दिया। इसको लेकर मुसलमानों में एक खास तरह की नाराजगी है और कई मुसलमानों का मानना है कि पुलिस और खुफिया एजेंसियां खासकर बेगुनाह मुसलमानों को फंसाती हैं।
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इसी मुद्दे पर काम करने वाली एक संगठन जामिया टीचर्स सॉलिडेरिटी एसोसिएशन (जेटीएसए) ने साल 2012 में एक रिपोर्ट निकाली थी जिसमें 16 मामलों का जिक्र था। इन 16 मामलों में दिल्ली पुलिस ने जिन मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया था, वे सभी अदालत से बाइज्जत बरी हुए थे।

जेटीएसए ने इसी साल एक और रिपोर्ट जारी की है जिसके तहत पिछले दस वर्षों में मध्यप्रदेश में 77 मुस्लिम युवाओं को यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है और उनमें से कई दस-दस साल से जेल में हैं।

तो क्या ये भी इस बार चुनाव में एक मुद्दा हो सकता है?

सीमा चिश्ती के अनुसार इस बारे में जिस तरह से सार्वजनिक रूप से बहस हो रही है, वो एक सकारात्मक पहलू है। उनके अनुसार जिस तरह से अमेरिका में एक समय में काले लोगों के जेलों में बंद होने का मुद्दा था, उसी तरह से भारत में इस पर लोग अब आंकड़ों के साथ खुलकर बोल रहे हैं।

सीमा चिश्ती के अनुसार ये मुद्दा महत्वपूर्ण जरूर है लेकिन ये शायद इस बात को तय नहीं करेगा कि मुसलमान किसे वोट देंगे। लेकिन उर्दू दैनिक 'जदीद खबर' के संपादक मासूम मुरादाबादी के अनुसार ये एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। लिहाजा एक तरफ मुसलमानों की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार से निराशा तो दूसरी तरफ उसकी सुरक्षा का मुद्दा।

क्या और कैसे करेगा मुसलमान इस समस्या का समाधान?
इस पर चर्चा होगी इस श्रृंखला की अगली और अंतिम कड़ी में।