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Last Modified: शनिवार, 16 जनवरी 2016 (11:51 IST)

'मैं गिड़गिड़ाती रही लेकिन उसने एक नहीं सुनी'

'मैं गिड़गिड़ाती रही लेकिन उसने एक नहीं सुनी' - yazidi woman
नादिया मुराद को ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथियों ने अग़वा कर लिया था। कई महीनों की यौन प्रताड़ना झेलने के बाद वह किसी तरह उनके चंगुल से भागने में सफल रहीं। और अब दुनिया को यजीदियों पर हो रहे जुल्म की कहानियां सुना रही हैं।
बीबीसी रेडियो के खास कार्यक्रम आउटलुक के मैथ्यू बैनिस्टर को नादिया ने सुनाई अपनी आपबीती। पढ़िए नादिया की आपबीती उन्हीं की जुबानी। कथित इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के आने से पहले मैं अपनी मां और भाई बहनों के साथ उत्तरी इराक के शिंजा के पास कोचू गांव में रहती थी। हमारे गांव में अधिकतर लोग खेती पर निर्भर हैं। मैं तब छठी कक्षा में पढ़ती थी।
 
हमारे गांव में कोई 1700 लोग रहते थे और सभी लोग शांतिपूर्वक रहते थे। हमें किसी तरह की कोई चेतावनी नहीं मिली थी कि आईएस शिंजा या हमारे गांव पर हमला करने जा रहा है।
 
3 अगस्त 2014 की बात है, जब आईएस ने यजीदी पर हमला किया। कुछ लोग माउंट शिंजा पर भाग गए, लेकिन हमारा गांव बहुत दूर था। हम भागकर कहीं नहीं जा सकते थे। हमें 3 से 15 अगस्त तक बंधक बनाए रखा गया।
 
खबरें आने लगी थीं कि उन्होंने तीन हजार से ज्यादा लोगों का कत्ल कर दिया है और लगभग 5,000 महिलाओं और बच्चों को अपने कब्जे में ले लिया है। तब तक हमें हकीकत का अहसास हो चुका था। इस दौरान चरमपंथी आए और हमारे हथियार कब्जे में ले लिए। हम कुछ नहीं कर सकते थे। हम पूरी तरह घिर चुके थे। हमें चेतावनी दी गई कि हम दो दिन के अंदर अपना धर्म बदल लें।
 
15 अगस्त को मैं अपने परिवार के साथ थी। हम बहुत डरे हुए थे क्योंकि हमारे सामने जो घटा था, उसे लेकर हम भयभीत थे। उस दिन आईएस के लगभग 1000 लड़ाके गांव में घुसे। वे हमें स्कूल में ले गए। स्कूल दो मंजिला था।
पहली मंजिल पर उन्होंने पुरुषों को रखा और दूसरी मंजिल पर महिलाओं और बच्चों को। उन्होंने हमारा सब कुछ छीन लिया। मोबाइल, पर्स, पैसा, जेवर सब कुछ। मर्दों के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया। इसके बाद उनका नेता जोर से चिल्लाया, जो भी इस्लाम धर्म कबूल करना चाहते हैं, कमरा छोड़कर चले जाएं।
 
हम जानते थे कि जो कमरा छोड़कर जाएंगे वो भी मारे जाएंगे। क्योंकि वो नहीं मानते कि यजीदी से इस्लाम कबूलने वाले असली मुसलमान हैं। वो मानते हैं कि यजीदी को इस्लाम कबूल करना चाहिए और फिर मर जाना चाहिए। महिला होने के नाते हमें यकीन था कि वे हमें नहीं मारेंगे और हमें जिंदा रखेंगे और हमारा इस्तेमाल कुछ और चीजों के लिए करेंगे।
 
जब वो मर्दों को स्कूल से बाहर ले जा रहे थे तो सही-सही तो पता नहीं कि किसके साथ क्या हो रहा था, लेकिन हमें गोलियां चलने की आवाजें आ रही थी। हमें नहीं पता कि कौन मारा जा रहा था। मेरे भाई और दूसरे लोग मारे जा रहे थे।
 
वे नहीं देख रहे थे कि कौन बच्चा है कौन जवान और कौन बूढ़ा। कुछ दूरी से हम देख सकते थे कि वो लोगों को गांव से बाहर ले जा रहे थे। लड़ाकों ने एक व्यक्ति से एक लड़का छीन लिया, उसे बचाने के लिए नहीं। बाद में उन्होंने उसे स्कूल में छोड़ दिया। उसने हमें बताया कि लड़ाकों ने किसी को नहीं छोड़ा और सभी को मार दिया।
 
जब उन्होंने लोगों को मार दिया तो वे हमें एक दूसरे गांव में ले गए। तब तक रात हो गई थी और उन्होंने हमें वहां स्कूल में रखा। उन्होंने हमें तीन ग्रुपों में बांट दिया था। पहले ग्रुप में युवा महिलाएं थी, दूसरे में बच्चे, तीसरे ग्रुप में बाकी महिलाएं। हर ग्रुप के लिए उनके पास अलग योजना थी। बच्चों को वो प्रशिक्षण शिविर में ले गए। जिन महिलाओं को उन्होंने शादी के लायक़ नहीं माना उन्हें कत्ल कर दिया, इनमें मेरी मां भी शामिल थी।
 
रात में वो हमें मोसुल ले गए। हमें दूसरे शहर में ले जाने वाले ये वही लोग थे जिन्होंने मेरे भाइयों और मेरी मां को कत्ल किया था। वो हमारा उत्पीड़न और बलात्कार कर रहे थे। मैं कुछ भी सोचने समझने की स्थिति में नहीं थी।
वे हमें मोसुल में इस्लामिक कोर्ट में ले गए। जहां उन्होंने हर महिला की तस्वीर ली। मैं वहां महिलाओं की हजारों तस्वीरें देख सकती थी। हर तस्वीर के साथ एक फोन नंबर होता था। ये फोन नंबर उस लड़ाके का होता था जो उसके लिए जिम्मेदार होता था।
 
तमाम जगह से आईएस लड़ाके इस्लामिक कोर्ट आते और तस्वीरों को देखकर अपने लिए लड़कियां चुनते। फिर पसंद करने वाला लड़ाका उस लड़ाके से मोलभाव करता जो उस लड़की को लेकर आया था। फिर वह चाहे उसे खरीदे, किराए पर दे या अपनी किसी जान-पहचान वाले को तोहफे में दे दे।
 
पहली रात जब उन्होंने हमें लड़ाकों के पास भेजा। बहुत मोटा लड़ाका था जो मुझे चाहता था, मैं उसे बिल्कुल नहीं चाहती थी। जब हम सेंटर पर गए तो मैं फर्श पर थी, मैंने उस व्यक्ति के पैर देखे। मैं उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी कि मैं उसके साथ नहीं जाना चाहती। मैं गिड़गिड़ाती रही, लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई।
 
एक हफ्ते बाद मैंने भागने की कोशिश की। वे मुझे कोर्ट मे ले गए और सजा के तौर पर छह सुरक्षा गार्डों ने मेरे साथ बलात्कार किया। तीन महीने तक मेरा यौन उत्पीड़न होता रहा। इस इलाके में चारों तरफ आईएस के लड़ाके ही फैले हैं। तो इन महीनों में मुझे भागने का मौका ही नहीं मिला।
 
एक बार मैं एक पुरुष के साथ थी। वो मेरे लिए कुछ कपड़े खरीदना चाहता था, क्योंकि उसका इरादा मुझे बेच देने का था। जब वो दुकान पर गया। मैं घर पर अकेली थी और मैं वहां से भाग निकली। मैं मोसुल की गलियों में भाग रही थी। मैंने एक मुस्लिम परिवार का दरवाजा खटखटाया और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने मेरी मदद की और कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुंचाने में मेरी मदद की।
 
शरणार्थी शिविर में किसी ने मेरी आपबीती नहीं पूछी। मैं दुनिया को बताना चाहती थी कि मेरे साथ क्या हुआ और वहां महिलाओं के साथ क्या हो रहा है। मेरे पास पासपोर्ट नहीं था, किसी देश की नागरिकता नहीं थी। मैं कई महीनों तक अपने दस्तावेज पाने के लिए इराक में रुकी रही।
 
उसी वक्त जर्मन सरकार ने वहां के 1000 लोगों की मदद करने का फैसला किया। मैं उन लोगों में से एक थी। फिर अपना इलाज कराने के दौरान एक संगठन ने मुझसे कहा कि मैं संयुक्त राष्ट्र में जाकर आपबीती सुनाऊं। मैं इन कहानियों को सुनाने के लिए दुनिया के किसी भी देश में जाने को तैयार हूं।