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Last Updated : मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014 (13:01 IST)

एक हिंदू गांव का 'बड़ा भाई' मुसलमान गांव

एक हिंदू गांव का 'बड़ा भाई' मुसलमान गांव - UP Muslim ancestor
- नरेंद्र कौशिक बीबीसी

उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा का धूल धूसरित और कीचड़ से भरा गांव है तिल बेगमपुर। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा का ये गांव बुलंदशहर जिले में पड़ता है। गांव में भाटी राजपूत मुसलमानों का दबदबा है। ये लोग छोटा मोटा काम करके अपना गुजारा करते हैं। लेकिन इस गांव की एक खासियत है।


यहां के मुस्लिमों को अपने हिंदू अतीत पर काफी गर्व है। इतना ही नहीं ये गांव पारंपरिक तौर पर घोड़ी बछेड़ा गांव के बड़े भाई की भूमिका भी अदा करता रहा है। किवदंती है कि तिल गांव की स्थापना भाटी राजपूत राजा राव कासान सिंह ने की थी। वे जैसलमेर के राजा राव रणबीर सिंह के बेटे थे।

कासान सिंह ने दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन खिलजी से हार मानने के बाद इस्लाम स्वीकार किया था। ये घटना करीब 700 साल पहले हुई।

कासना से है रिश्ता : कासिम अली खान बनने से पहले कासान सिंह मौजूदा पश्चिमी उत्तरी प्रदेश के हिस्से पर शासन कर रहे थे। उनकी राजधानी थी कासना (ये नाम उनके नाम पर ही पड़ा)। कासना ग्रेटर नोएडा का ही हिस्सा है।

माना जाता है कि कासान सिंह ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया कि वे खिलजी की अदालत में फांसी से बच सकें और अपने छोटे भाई ज्वाला सिंह और नरोत्तम सिंह को इस्लाम अपनाने से बचा सकें। अपने भाई के एहसान का ख्‍याल रखते हुए ज्वाला सिंह और नरोत्तम सिंह ने जीवन भर अपने बड़े भाई को परिवार के सभी सुख-दुख में शामिल किया। ज्वाला ने ये प्रतिज्ञा भी ली कि उनकी आने वाली पीढ़ी इस सिलसिले को कायम रखेगी।

ग्रेटर नोएडा में ही तिल गांव से छह किलोमीटर की दूरी पर है घोड़ी बछेड़ा गांव। ज्वाला सिंह ने अपना महल इसी गांव में बनवाया था। ये गांव आज भी ज्वाला सिंह की प्रतिज्ञा को निभाता है।

वहीं दूसरी ओर नरोत्तम के वंशज (नरोत्तम के सास-सुसर ने बेटी की शादी के वक्त अपनी जाति अपनाने की शर्त रखी थी) पास के ही 27 गुज्जर गांवों में बसे हैं। इन लोगों ने इस चलन को अपनाना बंद कर दिया।

बहरहाल घोड़ी बछेड़ा गांव में जब भी कोई शादी या मौत होती है, तिल गांव के बड़े बुजुर्गों को पहले बुलाया जाता है। तिल के लोग भी घोड़ी गांव के लोगों के सुख दुख में शरीक होते हैं। हर मुसीबत के वक्त दोनों गांव वाले एक दूसरे के साथ खड़े रहे हैं।

 
धर्म से फर्क नहीं : एक वक्त ऐसा आया जब घोड़ी राजपूतों को मंदिर से सटी एक दीवार बनवानी थी। मंदिर से सटा इलाका मुस्लिम परिवारों का कब्रिस्तान था। ऐसे में तनातनी हो गई।

घोड़ी गांव में पंचायत हुई, जिसमें तिल गांव के मुसलमानों ने घोड़ी गांव के मुसलमानों को कब्रिस्तान की जगह छोड़ने को कहा, समस्या का हल निकाला। तिल की मस्जिद के इमाम नजमुल हसन दावा करते हैं, 'घोड़ी हमारा भाई है। धर्म से कोई फर्क नहीं पड़ता।'

उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग के सेवानिवृत ट्रैफिक अधीक्षक चौधरी नसीम सिंह कासान सिंह के इस्लाम बनने की दास्तां को किताब की शक्ल देना चाहते हैं।

उन्होंने बताया, '1310 में खिलजी से हारने के बाद रावल भाईयों को खिलजी की अदालत में इस्लाम अपनाने को कहा गया। फांसी से बचने के लिए बड़े भाई ने इस्लाम अपना लिया। छोटे भाईयों को माफी मिल गई।'

घोड़ी गांव के सूरज पाल सिंह बताते हैं, 'तिल हमारे बड़े भाई है, हम तब तक पगड़ी की रस्म नहीं अपनाते जब तक तिल गांव से हमारे लिए पगड़ी नहीं आ जाती।'

हिंदू चलन में परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य की मौत पर सबसे बड़े बेटे को पारिवारिक जिम्मेदारी सौंपी जाती है और रिश्तेदारों से पगड़ी ली जाती है।