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Last Modified: शुक्रवार, 28 अगस्त 2015 (12:39 IST)

सिर्फ 12 फीसद भारतीय हैं आरक्षण के खिलाफ

सिर्फ 12 फीसद भारतीय हैं आरक्षण के खिलाफ - reservation cast politics
- प्रोफेसर संजय कुमार (सीएसडीएस)
 
पिछले कुछ समय से आरक्षण की मांग करने वाली जातियां बढ़ गई है। विभिन्न जातीय समूह इसकी मांग करने लगे हैं। आरक्षण की मांग करने वाली रैलियों में जिस तरह की भारी भीड़ जुटती है। इससे साफ है कि आम लोगों में आरक्षण को लेकर व्यापक समर्थन है।
सीएसडीएस के साल 2014 के सर्वेक्षण में ये बात सामने आई थी कि भारत में ज्यादा जातीय समूह आरक्षण का समर्थन करते हैं। ये ध्यान देने की बात है कि खेती की स्थिति खराब होने से आरक्षण की मांग बढ़ती है क्योंकि आज भी पिछड़ी जातियों की एक बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है। पढ़ें विस्तार से...
 
पिछले कुछ समय में आरक्षण के लिए होने वाले सभी आंदोलनों में भारी भीड़ का जुटना, इस बात का सबूत है कि लोगों में आरक्षण की नीति को लेकर भारी समर्थन है। लेकिन आप ये कह सकते हैं कि ये भारी भीड़ केवल उन लोगों की है जो सोचते हैं कि आरक्षण से उन्हें फायदा मिलेगा।
 
आप ये भी सोच सकते हैं कि ये मांगें राजनीति से प्रेरित हैं। इन आंदोलनों के राजनीति से प्रेरित होने की बात में थोड़ी सच्चाई हो, लेकिन पूरा सच जानने की कोशिश होनी चाहिए।
 
आजादी के छह दशकों बाद भी भारत में आरक्षण की नीति को लेकर लगभग सभी जातीय समूहों में समर्थन है। पिछले कुछ दशकों से दलितों, अन्य पिछड़ी जातियों और आदिवासियों के लिए आरक्षण नीति के प्रति समर्थन में कोई कमी नहीं आई है।
 
अगर आप सोचते हैं कि आरक्षण की मांग करने वाले रैलियों में भारी भीड़ का जुटना आरक्षण की नीति के समर्थन का पक्का सबूत नहीं है तो इसका एक और उदाहरण भी है।
 
ऊंची जातियां भी चाहती हैं : साल 2014 में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज ने भारत के सभी वर्गों का एक सर्वेक्षण किया था जिसमें ये बात सामने आई कि अधिकांश भारतीय शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का समर्थन करते हैं।
सर्वे में शामिल केवल 12 फीसद भारतीय ही ऐसे थे, जिन्होंने आरक्षण का विरोध किया। कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने इस मुद्दे पर अपने विचार जाहिर नहीं किए। सर्वे से पता चला कि आरक्षण से फायदा उठाने वाली अन्य पिछड़ी जातियों के मुकाबले इससे वंचित रहने वाली उच्च जातियों के बीच इस नीति को लेकर कम समर्थन है।
 
यह मानना गलत है कि उच्च जातियां आरक्षण की मांग का विरोध करती हैं। कुछ दिन पहले राजस्थान में गूजरों ने, हरियाणा में जाटों ने और अब गुजरात में पाटीदार समाज आरक्षण की मांग कर रहा है।
 
इस तरह की मांगों के खिलाफ आमतौर पर एक ही तर्क दिया जाता है कि इन समुदायों या जातियों को आरक्षण की जरूरत नहीं क्योंकि ये न केवल शिक्षित और आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं बल्कि राजनीतिक रूप से भी मजबूत।
 
अक्सर इन जातियों के कुछ सफल लोगों का उदाहरण देकर पूरे समुदाय के बारे में ऐसी चालू टिप्पणियां की जाती हैं। हम ये भूल जाते हैं कि हर समुदाय में कुछ लोग बहुत धनी हो सकते हैं, लेकिन एक ही जाति समुदाय के लोगों के बीच भी आर्थिक सम्पन्नता के स्तर में भारी अंतर हो सकता है। समुदायों में भी कई परतें हैं
 
आर्थिक समृद्धि के संदर्भ में देखें तो इसमें ग्रामीण और शहरी अंतर दिखता है। एक ही जाति, समुदाय के शहर में रहने वाले लोगों, और गांवों में मौजूद लोगों में फर्क हो सकता है, शहरों में रहने वाले लोग आर्थिक क्षेत्र में आम तौर पर बेहतर हालात में होते हैं।
 
अगर हम अरक्षण की मांग को लेकर आंदोलनों में इकट्ठा होने वाली भीड़ का बारीकी से अध्ययन करें तो पाएंगे कि गांवों में रहने वाले लोगों के बीच आरक्षण को लेकर भारी समर्थन है। इसपर शायद ही किसी को आपत्ति हो कि अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ लोगों का आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक विकास हुआ है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
 
इन कुछ सम्पन्न लोगों को अन्य पिछड़ी जातियों के सफल लोगों के उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है। लेकिन अन्य पिछड़ी जातियों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी बड़ी आबादी की कड़वी सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए इसे इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
 
खेती संकट का दबाव : यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्य पिछड़ी जातियों में पेशेवरों की मौजूदगी के बावजूद एक बहुत बड़ी आबादी आजीविका के लिए अभी भी खेती पर निर्भर है।
 
खेती में संकट का मतलब इससे जुड़े सभी लोगों की जिंदगी में मुश्किलों का बढ़ जाना है। जब तक खेती में मुनाफा होता रहता है, अन्य पिछड़ी जातियों से जुड़े इन खेतिहरों को आर्थिक संकट का शायद ही सामना करना पड़ता है। ऐसे में वो आरक्षण की ज्यादा परवाह नहीं करते।
 
लेकिन खेती की तुलना में सरकारी नौकरियों में होने वाले ज्यादा आर्थिक लाभ को देखते हुए इनमें से अधिकतर अब खेती छोड़ सरकारी नौकरी चाहते हैं। इसीलिए पिछले कुछ समय से आरक्षण की मांग को लेकर होने वाले आंदोलनों में तेजी आई है।