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Last Modified: मंगलवार, 21 अप्रैल 2015 (11:12 IST)

क्या भारत से ऊंट खत्म हो जाएंगे?

क्या भारत से ऊंट खत्म हो जाएंगे? - rajasthan_camel_population
- कपिल भट्ट (जयपुर से)
 
ऊंटों को राजस्थान की जीवनरेखा माना जाता रहा है लेकिन ऊंटों की तेजी से कम होती आबादी के कारण ये जीवनरेखा हर दिन पहले से छोटी होती जा रही है। साल 2012 में भारत की 19वीं पशुगणना की गई जिसमें 2007 की तुलना में ऊंटों की आबादी में 22.48 प्रतिशत की गिरावट आई है। अब देश में क़रीब चार लाख ऊंट ही रह गए हैं। देश में ऊंटों की कुल आबादी के 81.37 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं।
2012 की पशुगणना में राजस्थान में ऊंटों की संख्या 3.25 लाख रह गई है। हालांकि लोकहित पशुपालक संस्थान के अध्यक्ष हनवंत सिंह राठौड़ मानते हैं कि राज्य में अब दो लाख से भी कम ऊंट बचे हैं। सरकारी आंकड़ों की भी मानें तो राज्य में पिछे 15 सालों में ऊंटों की संख्या करीब आधी हो गई है।
 
खत्म हो सकते हैं? : ऊंटों की संख्या में आई इस तेज गिरावट को देखते हुए यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या एक दिन भारत से ऊंट समाप्त हो जाएंगे? ऊंटों के संवर्द्धन और संरक्षण की दृष्टि से केंद्र सरकार ने बीकानेर में 1984 में नैशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल की स्थापना की थी।
 
संस्थान के निदेशक डॉ. नितिन वसंत पाटिल मानते हैं कि ऊंटों की संख्या में आई इस गिरावट का कारण है दैनिक जीवन में इनकी उपयोगिता अब बहुत कम रह गई है। खेती और यातायात के क्षेत्र में हुए मशीनीकरण ने ऊंट को हाशिए पर धकेल दिया है। वहीं ऊंट पालने वाली राईका आदि जातियां आर्थिक दिक्कतों के कारण ऊंट पालन का पेशा छोड़ रही हैं। तेजी से कम होते चारागाहों की वजह से ऊंट पालन एक महंगा व्यवसाय हो गया है।
राजस्थान से होने वाली ऊंटों की तस्करी भी उनकी संख्या कम होने के पीछे एक प्रमुख कारण है। 'पीपुल्स फॉर एनीमल्स' राजस्थान के अध्यक्ष बाबूलाल जाजू बताते हैं, 'तस्करी का यह जाल राजस्थान के थार रेगिस्तान से शुरू होकर उत्तर प्रदेश से बांग्लादेश होता हुआ खाड़ी देशों तक फैला हुआ है। ऊंट का मांस, उसकी हडिडयां, खाल और बाल तक की मांग रहती है।'
 
सरकारी उपाय : राजस्थान सरकार ने ऊंटों की तेजी से कम होती संख्या को देखते हुए हाल ही में एक कानून बनाकर ऊंट को मारने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया है। सरकार ने इसे राज्य पशु का दर्जा भी दिया है।
राजस्थान के पशुपालन मंत्री प्रभुलाल सैनी कहते हैं, 'इस कानून का उद्देश्य ऊंटों का संरक्षण और संवर्धन करना है।' लेकिन ऊंटों के संरक्षण के काम में लगे लोग सरकार के नए कानूनों को ही कटघरे में खड़ा करते हुए इन्हें ऊंट विरोधी बता रहे हैं।
 
हनवंत सिंह राठौड़ कहते हैं, 'अब तो ऊंट को नकेल डालना भी क़ानून के खिलाफ हो गया है। राज्य के करीब सात हजार ऊंट पालक परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो गया है।'
 
राज्य पशु बनने के बाद : राठौड़ दावा करते हैं कि जब से सरकार ने ऊंट को राज्य पशु घोषित किया है तब से राजस्थान में करीब एक लाख ऊंट कम हो गए हैं। बहरहाल, नैशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल और लोकहित पशुपालक संस्थान जैसे संस्थान ऊंटनी के दूध एवं इससे बनने वाले उत्पादों को आम लोगों में लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हुए हैं।
 
ऊंटनी के दूध से आइसक्रीम, सुगन्धित दूध एवं दही जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं ताकि ऊंटों की उपयोगिता बनी रहे। लेकिन क्या ये उपाय रेगिस्तान के जहाज को बचाने के लिए काफी होंगे?