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Last Modified: गुरुवार, 22 जनवरी 2015 (12:21 IST)

'पंडित और मुसलमान एक ही बाग के फूल हैं'

'पंडित और मुसलमान एक ही बाग के फूल हैं' - pundits_of_kashmir_valley
- माजिद जहांगीर कश्मीर से

कश्मीर घाटी में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के साथ ही कश्मीर में रहने वाले लाखों पंडित कश्मीर छोड़ कर चले गए और भारत के दूसरे शहरों में पनाह ली। बीते सालों में कुछ पंडित परिवार कश्मीर में वापस अपने घरों को लौटे हैं।


घाटी के जिला अनंतनाग के मटन इलाके में पंडित सुभाष अपने परिवार समेत वापस आ चुके हैं जो अपनी पत्नी और अपने दो छोटे बच्चों के साथ अपने कच्चे मकान में रहते हैं' पढ़ें लेख विस्तार से...

पंडित सुभाष एक बैंक कर्मचारी हैं, कश्मीर से बाहर बिताए अपने 20 सालों को याद करते हुए वे कहते हैं, 'कश्मीर से जाने के बाद हमें कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रहने के लिए अपना घर नहीं था जिसकी कमी महसूस होती थी।'

पंडित सुभाष इस बात से खुश नहीं हैं कि उन्हें अपनी शादी का जश्न कश्मीर से बाहर मनाना पड़ा। उनका कहना है, 'कश्मीर में शादी का उत्सव कुछ अलग ही होता है। मुझे अपनी शादी जम्मू में करनी पड़ी जहां ऐसा कुछ नहीं था।

मातृभूमि वापस : कश्मीर घाटी वापस लौटने पर सुभाष बहुत ज्यादा खुश हैं। इस खुशी का कारण अपनी मिट्टी की खुशबू और मुसलमानों के साथ उनका पारंपरिक रहन-सहन।

पंडित सुभाष की पत्नी ईशा उस समय आठवीं क्लास की छात्र थीं जब उनका परिवार कश्मीर छोड़कर बाहर चला गया था। ईशा भी अब बहुत खुश हैं कि वो अपनी मातृभूमि वापस लौट आई हैं।

कश्मीर वापस : ईशा कहती हैं, 'कम से कम यहां हम अपने घर में रह रहे हैं। जम्मू की जिन्दगी तो नर्क थी, एक ही कमरे में सोना, खाना, मेहमानों को बिठाना और न जाने क्या-क्या सहना पड़ता था। अब हम कश्मीर में वापस आ कर खुश हैं। यहां के मुसलमान पड़ोसी भी हमारा ख्याल रखते हैं।'

पंडित सुभाष के पड़ोसी मोहम्मद अब्बास भी खुश हैं कि उनके पंडित पड़ोसी वापस आ गए हैं। वह कहते हैं, 'हम तो चाहते हैं कि सब आएं और अपने घरों में रहें। कश्मीर के पंडित और मुसलमान एक ही बाग के फूल हैं जो साथ-साथ अच्छे लगते हैं।'

सरकारी पैकेज : कश्मीर में ऐसे भी कुछ पंडित वापस आ गए हैं जो साल 2010 में भारत सरकार के एक पैकेज के तहत कश्मीर आएं हैं। इस पैकेज के तहत वापस आए पंडितों को सरकारी नौकरी के अलावा रहने के लिए फ्लैट दिए गए लेकिन सरकार की तरफ से दी गई रिहाइश से ये लोग खुश नहीं हैं।

37 वर्षीय पंडित रंजन भी भारत सरकार के इसी पैकेज के तहत कश्मीर लौटे थे लेकिन सरकार की ओर से दिए गए घर से वह खुश नहीं हैं।

कश्मीर से बाहर : रंजन कहते हैं, 'मैं तो खुश हूं कि मैं वापस कश्मीर आ गया लेकिन अपने परिवार को कहां रखूं। सरकार ने जो रिहाइश दी है, उसमें चार लोगों का परिवार नहीं रह सकता। पहले कश्मीर से बाहर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं और अब भारत सरकार ने कहीं का नहीं छोड़ा। भारत सरकार को अपना वादा पूरा करना चाहिए।

रंजन के मुताबिक कश्मीर से बाहर उनके परिवार को अलग-अलग होकर रहना पड़ा क्योंकि उन्हें ऐसा मकान नहीं मिला जिसमें उनका पूरा परिवार एक साथ रह सके।

घाटी में वापस आ रहे कश्मीरी पंडितों की एक शिकायत सालों की उपेक्षा के कारण खंडहर जैसे हो चुके मंदिरों को लेकर भी है। कश्मीर में हिन्दू मंदिरों की हालत ठीक करने की मांग पंडित भी कर रहे हैं और मुसलमान भी।