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Last Updated : मंगलवार, 16 दिसंबर 2014 (12:34 IST)

एक आलू जलाएगा 40 दिन तक आपका बल्ब!

एक आलू जलाएगा 40 दिन तक आपका बल्ब! - Potatoes battery
- जोनाथन कालान स्वतंत्र पत्रकार

क्या बल्ब जलाने और घरों को रोशन करने के लिए बिजली ग्रिड की जगह आलू का इस्तेमाल संभव है? शोधकर्ता राबिनोविच और उनके सहयोगी पिछले कुछ सालों से लोगों को यही करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।


ये सस्ती धातु की प्लेट्स, तारों और एलईडी बल्ब को जोड़कर किया जाता है और उनका दावा है कि ये तकनीक दुनियाभर के छोटे कस्बों और गांवों को रोशन कर देगी।

पढ़ें विशेष रिपोर्ट : यरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के राबिनोविच का दावा है, 'एक आलू चालीस दिनों तक एलईडी बल्ब को जला सकता है।'

राबिनोविच इसके लिए कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहे हैं। ये सिद्धांत हाईस्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता है और बैटरी इसी पर काम करती है। इसके लिए जरूरत होती है दो धातुओं की- पहला एनोड, जो निगेटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कि जिंक, और दूसरा कैथोड- जो पॉजीटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कॉपर यानी तांबा।

आलू के भीतर मौजूद एसिड जिंक और तांबे के साथ रासायनिक क्रिया करता है और जब इलेक्ट्रॉन एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की तरफ जाते हैं तो ऊर्जा पैदा होती है।

इसकी खोज वर्ष 1780 में लुइगी गेल्वनी ने की थी जब उन्होंने मेंढ़क की मांसपेशियों को झटके से खींचने के लिए दो धातुओं को मेंढ़क के पैरों में बांधा था। लेकिन आप इसी प्रभाव को पाने के लिए इन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच कई पदार्थ रख सकते हैं।

एलेक्जेंडर वोल्टा ने नमक के पानी में भीगे हुए कागज का इस्तेमाल किया था। अन्य शोधों में धातु की दो प्लेट्स और मिट्टी के एक ढेर या पानी की बाल्टी से 'अर्थ बैटरियां' बनाई गईं थीं।

आलू पर शोध : वर्ष 2010 में, राबिनोविच ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एलेक्स गोल्डबर्ग और बोरिस रुबिंस्की के साथ इस दिशा में एक और कोशिश करने की ठानी।

गोल्डबर्ग बताते हैं, 'हमने 20 अलग-अलग तरह के आलू देखे और उनके आतंरिक प्रतिरोध की जांच की। इससे हमें यह समझने में मदद मिली कि गरम होने से कितनी ऊर्जा नष्ट हुई।'

आलू को आठ मिनट उबालने से आलू के अंदर कार्बनिक ऊतक टूटने लगे, प्रतिरोध कम हुआ और इलेक्ट्रॉन्स ज्यादा मूवमेंट करने लगे- इससे अधिक ऊर्जा बनी।

आलू को चार-पांच टुकड़ों में काटकर इन्हें तांबे और जिंक की प्लेट के बीच रखा गया। इससे ऊर्जा 10 गुना बढ़ गई यानी बिजली बनाने की लागत में कमी आई।

राबिनोविच कहते हैं, 'इसकी वोल्टेज कम है, लेकिन ऐसी बैटरी बनाई जा सकती है जो मोबाइल या लैपटॉप को चार्ज कर सके।'

एक आलू उबालने से पैदा हुई बिजली की लागत 9 डॉलर प्रति किलोवाट घंटा आई, जो डी-सेल बैटरी से लगभग 50 गुना सस्ती थी। विकासशील देशों में जहां केरोसिन (मिट्टी के तेल) का इस्तेमाल अधिक होता है, वहां भी यह छह गुना सस्ती थी।

भारतीय नेता आलू बैटरी से बेखबर?
वर्ष 2010 में दुनिया में 32.4 करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ। यह दुनिया के 130 देशों में उगाया जाता है और स्टार्च का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है।

आलू सस्ते हैं, इन्हें आसानी से स्टोर किया जा सकता है और लंबे समय तक रखा जा सकता है। दुनिया में 120 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं और एक आलू उनका घर रोशन कर सकता है।

राबिनोविच कहते हैं, 'हमने सोचा था कि संगठन इसमें दिलचस्पी दिखाएंगे। हमने सोचा था कि भारत के राजनेता हमें हाथों-हाथ लेंगे।' फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल पहले हुए इस शोध की तरफ दुनियाभर की सरकारों, कंपनियों या संगठनों का ध्यान नहीं गया।

राबिनोविच कहते हैं, 'सीधा सा जवाब है, वे शायद इसके बारे में जानते ही नहीं हैं।'

मामला जटिल? : लेकिन वजह शायद इतनी सीधी नहीं है, मामला कुछ जटिल है। पहली वजह है यह मुद्दा 'बिजली के लिए खाद्यान्न' से जुड़ा है। संयुक्त राष्ट्र के कृषि और खाद्य संगठन का कहना है कि गन्ने या जैव ईंधन से ऊर्जा बनाने से बचना चाहिए।

पहली आवश्यकता इस बात को देखने की है कि क्या खाने के लिए पर्याप्त आलू हैं? कीनिया जैसे देश में लोगों के लिए मक्का के बाद आलू सबसे प्रमुख भोजन है। वहां छोटे किसानों ने इस साल एक करोड़ टन आलू उगाए।

विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से 10-20 प्रतिशत स्टोर न किए जाने या अन्य वजहों से नष्ट हुए और वो तो जरूर ऊर्जा पैदा करने के काम में लगाए जा सकते थे।

केले के छिलके : शायद यही वजह है कि श्रीलंका की केलानिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने केले के तने से यह प्रयोग करने की ठानी है। भौतिक विज्ञानी केडी जयसूर्या और उनकी टीम का कहना है कि केले के तने के हिस्सों को उबालने से एक एलईडी 500 घंटे तक चल सकता है।

हालांकि ऊर्जा का असली स्रोत आलू या केले का तना नहीं है। ऊर्जा तो जिंक के घिसने से पैदा होती है। इसका मतलब कुछ देर बाद जिंक दोबारा लगाना होगा। लेकिन जिंक सस्ता है और जिंक इलेक्ट्रोड लगभग पांच महीने तक चलता है और इसकी कीमत एक लीटर केरोसीन के बराबर आती है।

कम से कम श्रीलंका में तो एक लीटर केरोसीन एक परिवार दो रात में ही इस्तेमाल कर लेता है। अगर जिंक उपलब्ध नहीं है तो मैग्नीशियम और लोहे को भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।