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Last Modified: बुधवार, 5 अगस्त 2015 (10:39 IST)

पाकिस्तानः 'वो दिन दूर नहीं जब एक भी हिंदू न बचे'

पाकिस्तानः 'वो दिन दूर नहीं जब एक भी हिंदू न बचे' - Pakistani Hindu
- नुखबत मलिक (इस्लामाबाद)
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अक्सर यह शिकायत रही है कि उनके धर्म स्थलों को पाकिस्तान सरकार की ओर से सुरक्षा नहीं है। ऐसी कई शिकायतें रिकॉर्ड होने और धार्मिक स्थलों को नुक़सान पहुंचाए जाने की कई घटनाओं के सामने आने के बावजूद अब तक कोई सुनवाई नहीं है।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान में बसे नब्बे प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं और अब उनके पूजा स्थल और प्राचीन मंदिर भी तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं।
 
ऐसा ही एक मामला, पिछले बीस साल से चल रहा है और अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर कोई अमल नहीं हुआ। बात है, पाकिस्तान के प्रांत खैबर पख्तूनक्वा जिले में कर्क के एक छोटे से गांव टेरी में स्थित एक समाधि की।
 
यहां किसी जमाने में, कृष्ण द्वार नामक एक मंदिर भी मौजूद था। मगर अब इसके नामो निशान कहीं नहीं हैं। समाधि मौजूद है, लेकिन इसके चारों ओर एक मकान बन चुका है और यहां तक कि वहां तक पहुचंने के सारे रास्ते बंद हैं।
 
मकान में रहने वाले मुफ्ती इफ्तिखारुद्दीन का दावा है कि 1961 में पाकिस्तान सरकार ने एक योजना (1975) लागू की थी, जिससे तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में स्थानीय प्रमुख लोगों को ऐसी ग्रामीण संपत्ति मुफ्त में दी गईं, जिनकी कीमत दस हजार रुपए से कम थी।
इसी योजना के तहत उन्हें भी जगह का मालिकाना अधिकार मिल गया और 1998 में उन्होंने इस मकान का निर्माण किया। हिंदुओं के नेता परम हंसजी महाराज का 1929 में निधन हो गया था। उन्हें श्रद्धांजलि देने दुनिया भर से कई हिंदू पाकिस्तान के क्षेत्र टेरी में स्थित उनकी इस समाधि पर आया करते थे।
 
1998 में यह मामला तब सामने आया जब कुछ हिंदू यहां पहुंचे तो पता चला कि समाधि को तोड़ने की कोशिश की गई।

समाधि कहां ले जाएं? : इसके बाद बात पाकिस्तान हिन्दू परिषद तक पहुंची और परिषद ने इस मामले का बीड़ा उठाया। परिषद के अध्यक्ष और नेशनल असेंबली के सदस्य डॉक्टर रमेश वांकोआनी ने बताया कि पिछले बीस साल के दौरान वे सभी राजनीतिक लोगों से प्रांतीय और संघीय स्तर पर बात कर चुके हैं मगर किसी ने नहीं सुना, अंततः उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2015 में सभी परिस्थितियों को देखते हुए, खैबर पख्तूनख्वा की प्रांतीय सरकार को आदेश दिया कि वह इस समाधि में होने वाले तोड़फोड़ को रोके और हिंदुओं को उनकी जगह वापस दिलाए। मगर आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ।
 
डॉक्टर रमेश कहते हैं, 'तीर्थ स्थल तो ऐतिहासिक होते हैं, यह कोई मंदिर तो है नहीं कि कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होने के नाम पर मैं इसे कहीं और स्थानांतरित कर दूं, यह तो समाधि है। एक ऐसी हस्ती का मंदिर जिसके करोड़ों श्रद्धालु हैं।'
 
मगर टेरी में यही अकेली समाधि या मंदिर नहीं है, जो बंद है। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के मुताबिक, इस समय देश भर में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे 1,400 से अधिक पवित्र स्थान हैं जिन तक उनकी पहुंच नहीं है। या फिर उन्हें समाप्त कर वहां दुकानें, खाद्य गोदाम, पशु बाड़ों में बदला जा रहा है।
 
मंदिर तो है, पर रास्ता नहीं : ऐसा ही एक मंदिर, रावलपिंडी के एक व्यस्त बाजार में मौजूद है जिसे यमुना देवी मंदिर कहा जाता है और यह 1929 में बनाया गया था। चारों ओर छोटी दुकानों में धंसा यह मंदिर केवल अपने एक बचे हुए मीनार के कारण अब भी सांसें ले रहा है। उसके अंदर प्रवेश से पहले छतों से बातें करती ऊंची कतारों में चावल, दाल और चीनी से भरी बोरियों से होकर गुजरना पड़ता है।
 
वक्फ विभाग के अध्यक्ष सिद्दीकुलफारुख का कहना है कि, 'जो योजना 1975 की है, मैं उसके बारे में जानता हूं और इससे पहले क्या था, उसकी जानकारी मुझे नहीं है। संसद के बने इस योजना के तहत, इबादतगाह कोई भी हो, वह किराए पर नहीं दिया जा सकता, लेकिन इससे सटी भूमि को किराए पर दिया जा सकता है।'
 
विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार की अनदेखी और गलत नीतियों के कारण देश में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हैं, जिन्हें पिछड़े होने के कारण हमेशा नजरअंदाज किया जाता रहा है।
 
सरकारी उदासीनता : उपमहाद्वीप के बंटवारे के समय, पश्चिमी पाकिस्तान या मौजूदा पाकिस्तान में, 15 प्रतिशत हिंदू रहते थे। 1998 में देश में की गई अंतिम जनगणना के अनुसार, उनकी संख्या मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई और देश छोड़ने की एक बड़ी वजह असुरक्षा थी।
 
शोधकर्ता रीमा अब्बासी के अनुसार, 'पिछले कुछ वर्षों में लाहौर जैसी जगह पर एक हजार से अधिक मंदिर खत्म कर दिए गए हैं। पंजाब में ऐसे लोगों को भी देखा है जो नाम बदल कर रहने को मजबूर हैं।'
 
वो कहती हैं, 'इन सभी बातों की बड़ी वजह कब्जा माफिया तो हैं, मगर साथ ही बेघरों के लिए सुरक्षा की कमी भी है, जो आतंकवाद के कारण अपना घर-बार छोड़कर पाकिस्तान के अन्य ऐसे क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं, जहां उनके धर्म स्थल करीब हैं।'
 
उनके मुताबिक, 'मगर उन्हें वहां से डरा-धमका कर निकाल दिया जाता है ताकि वहां पहले से रह रहे लोगों को कोई कठिनाई न हो।'
 
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पाकिस्तान से पलायन कर गई हिंदुओं की नब्बे प्रतिशत आबादी का कारण बढ़ती असहिष्णुता और सरकार की उदासीनता है।
 
पाकिस्तान के वक्फ विभाग में पुजारी की नौकरी करने वाले जयराम के अनुसार, '1971 के बाद देश में हिंदू संस्कृति ही समाप्त हो गई। कहीं भी अब शास्त्रों को नहीं पढ़ाया जाता, संस्कृत नहीं पढ़ाई जाती, यहां तक कि सिंध सरकार से एक बिल पास करवाने की कोशिश हुई कि सिंध में पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया जाए, हिंदू बच्चों के लिए एक हिंदी शिक्षक दिया जाए, मगर वह विधेयक पारित नहीं हुआ। तो यदि इस प्रकार का कानून नहीं बन सकता तो वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं रहेगा।'