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Last Modified: शनिवार, 25 अगस्त 2018 (14:21 IST)

'पाकिस्तान-सऊदी के प्यार' में क्या मोदी ने खड़ी की दीवार?

'पाकिस्तान-सऊदी के प्यार' में क्या मोदी ने खड़ी की दीवार? | narendra modi
- रजनीश कुमार
 
13 अगस्त को पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा कि उनका पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब होगा। वो सितंबर के शुरुआती हफ़्तों में सऊदी जाएंगे। ख़ान के सऊदी अरब जाने की घोषणा उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ की तरफ़ से जारी एक बयान में की गई है। इमरान ने इस बात की प्रशंसा की है कि विदेशी संबंधों में सऊदी अरब पाकिस्तान का सबसे भरोसेमंद दोस्त रहा है।
 
 
उन्होंने पाकिस्तान की विदेश नीति में सऊदी की सुरक्षा को सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया है। सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी इमरान ख़ान के मित्रतापूर्ण बयान पर सकारात्मक रुख़ दिखाया है। उन्होंने पाकिस्तान की आर्थिक क्षमता की तारीफ़ की और कहा कि सऊदी अरब, पाकिस्तान में निवेश बढ़ाएगा।
 
 
हाल के दिनों में पाकिस्तान और सऊदी के रिश्ते सवालों के घेरे में रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सऊदी अभी ईरान और क़तर को अपना प्रमुख शत्रु मान रहा है, जबकि इन दोनों देशों के साथ पाकिस्तान ने अपना आर्थिक सहयोग बढ़ाया है।
 
 
यमन में सऊदी की सैन्य कार्रवाई में शामिल होगा पाकिस्तान?
सऊदी ने यमन में अपने नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन में पाकिस्तान से भी सैनिक भेजने का आग्रह किया था, लेकिन पाकिस्तान ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया था। ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच इमरान ख़ान के पाकिस्तान दौरे पर इस मुद्दे को लेकर कोई अहम घोषणा हो सकती है।
 
 
रियाद दौरे में इमरान ख़ान के मन में सऊदी और भारत के गहराते संबंधों की बात भी होगी। इमरान कोशिश करेंगे कि पाकिस्तान और सऊदी के संबंधों में ऊर्जा भरी जाए और वो इस बात को जताने में कामयाब रहें कि सऊदी के शाही शासन का पाकिस्तान सबसे भरोसेमंद साथी है। हालांकि ये भी तथ्य है कि भारत ने 1979 में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ के हस्तक्षेप का समर्थन किया था और सऊदी अरब भी भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता में हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है।
 
 
लेकिन 1990 के दशक से भारत और सऊदी के बीच रिश्तों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है। 2014 में सत्ता में आने के बाद से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार सऊदी का दौरा कर चुके हैं। मोदी के दौरे का नतीजा यह हुआ कि सऊदी के तेल निर्यात का दायरा भारत के साथ बढ़ा और ज़्यादा संख्या में भारतीय काम की तलाश में सऊदी अरब गए।
 
 
वैसे ईरान मध्य-पूर्व में भारत का सबसे क़रीबी साझेदार रहा है। लेकिन अमेरिका के ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बाद भारत के लिए आर्थिक साझेदार के तौर पर सऊदी की प्रासंगिकता बढ़ रही है।
 
 
सऊदी से भारत का सबसे ज़्यादा तेल आयात
जुलाई महीने में सऊदी भारत का सबसे बड़ा तेल आयातक देश बन गया। इससे पहले नंबर वन पर इराक़ था। पिछले एक साल में ऐसा पहली बार हुआ है। भारत के तेल मंत्रालय ने हाल में देश की सभी बड़ी तेल कंपनियों को निर्देश दिया है कि ईरान से तेल आयात में कटौती के लिए तैयार रहें। सऊदी अरब भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अब अहम हो गया और आने वाले महीनों में उसकी भूमिका और बढ़ सकती है।
 
 
भारत और सऊदी के आर्थिक रिश्ते गहरे हुए हैं और पाकिस्तान को लगता है कि यह उसके लिए चिंताजनक है। पाकिस्तान के नीति-निर्माताओं को लगता है भारत पाकिस्तान-सऊदी के संबंधों की मजबूती को तोड़ देगा। पाकिस्तान की इस तरह की आशंका फ़रवरी महीने में तब और बढ़ गई जब उसे फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की संदिग्ध सूची में शामिल किए जाने पर सऊदी ने वीटो नहीं किया।
 
 
मध्य-पूर्व मामलों के विशेषज्ञ क़मर आगा कहते हैं कि सऊदी और पाकिस्तान के संबंध भारत की तरह केवल व्यापारिक नहीं है। वो कहते हैं, ''सऊदी की सेना बहुत कमज़ोर है। सऊदी आज तक एक मजबूत सेना नहीं खड़ा कर पाया। उसे हमेशा यह डर सताता रहा कि मजबूत सेना कहीं तख्तापलट न कर दे। ऐसे में वो हमेशा से अमेरिका और पाकिस्तान के सैन्य सहयोग पर निर्भर रहा है।''
 
 
आगा कहते हैं, ''अभी दिक़्क़त ये है कि पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर है। अमेरिका से संबंध ठीक नहीं हैं। चीन के बाद सऊदी एकमात्र उसका आसरा है। ऐसे में वो सऊदी के लिए कुछ भी कर सकता है। मुझे डर है कि यमन में वो सऊदी के नेतृत्व वाले सैन्य दख़ल में अपनी सेना को न भेज दे। पाकिस्तान ऐसा कर सकता है क्योंकि उसके पास कोई विकल्प नहीं है और उस पर सऊदी का दबाव भी है। मगर ऐसा करता है तो उसे ईरान का सामना करना होगा। ईरान से पाकिस्तान की लंबी सरहद लगी है। दूसरी तरफ़ चीन भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान ईरान से टकराए।''
 
 
सऊदी के लिए कुछ भी करने को तैयार पाकिस्तान?
हालांकि सऊदी ने पाकिस्तान के साथ सहयोग का प्रदर्शन एक बार फिर से किया है। जेद्दा स्थित इस्लामिक डिवेलपमेंट बैंक (आईडीबी) ने पाकिस्तान को चार अरब डॉलर का क़र्ज़ देने का आश्वासन दिया है। आईडीबी का यह क़र्ज़ पाकिस्तान के भुगतान संकट के लिए काफ़ी अहम है। पाकिस्तान को लगता है कि सऊदी के साथ उसके ऐतिहासिक रिश्तों को भारत खोखला करने की कोशिश कर रहा है।
 
 
पाकिस्तान को सऊदी के साथ के अपने रिश्तों को लेकर एक मजबूत अवधारणा से भी लड़ना पड़ रहा है। ऐसी मजबूत अवधारणा बनी हुई है सऊदी और भारत का रिश्ता पारस्परिक फ़ायदे वाला है जबकि पाकिस्तान के साथ रिश्ता आर्थिक बोझ की तरह है। पाकिस्तान के लिए इस अवधारणा को धूमिल करना इतना आसान नहीं है। इमरान ख़ान इस दौरे में सऊदी को बताने की कोशिश करेंगे कि पाकिस्तान भी आर्थिक रूप से काफ़ी अहम देश है।
 
 
पाकिस्तान मोहम्मद बिन सलमान के 2030 की रणनीति का बढ़-चढ़कर समर्थन कर रहा है। इस रणनीति के तहत सलमान सऊदी की निर्भरता तेल निर्यात पर कम करना चाहते हैं। इमरान ख़ान इस बात को रेखांकित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सऊदी में रह रहे 27 लाख पाकिस्तानी उसकी अर्थव्यवस्था के लिए कितने अहम हैं और दोनों देशों के मधुर संबंधों में भी इनकी भूमिका है।
 
 
पाकिस्तान ने भारत को देखते हुए हाल के दिनों में सऊदी में यह जताने की कोशिश की है कि वो उसका सबसे बड़ा वफ़ादार है। इमरान ख़ान के आगामी दौरे को लेकर पिछले कुछ हफ़्तों में पाकिस्तान के अधिकारियों ने सकारात्मक माहौल भी बनाने की कोशिश की है।

 
इसी के तहत पाकिस्तान ने सऊदी के कनाडा से व्यापार समझौते ख़त्म करने का भी समर्थन किया है। हाल के दिनों में सऊदी के क्राउन प्रिंस का यह सबसे विवादित फ़ैसला रहा है। नौ अगस्त को पाकिस्तान ने सऊदी से कनाडा के राजदूत के निकाले जाने और व्यापार समझौते तोड़ने का समर्थन किया था।
 
 
पाकिस्तान की सरकार ने सऊदी के क़दम का बचाव करते हुए कहा था कि कनाडा ने सऊदी में मानवाधिकार कार्यकर्ता समर बदावी की गिरफ़्तारी की आलोचना कर किसी के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप न करने की नीति का उल्लंघन किया है।
 
 
इसके छह दिन बाद पाकिस्तान ने मोहम्मद बिन सलमान के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की भी तारीफ़ की थी। हालांकि दुनिया भर के मानवाधिकार पर्यवेक्षक सऊदी में भ्रष्टाचार के नाम पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की आलोचना कर रहे हैं। पाकिस्तान ने अपने इस रुख़ से सऊदी को ख़ुश करने की कोशिश की है क्योंकि सऊदी ने क़तर पर जब नाकेबंदी लगाई तो पाकिस्तान ने इसका खुलकर समर्थन नहीं किया था।
 
 
1967 से ही पाकिस्तान की सेना सऊदी से ख़ुफ़िया सहयोग करती आ रही है। सऊदी अरब के पूर्व ख़ुफ़िया प्रमुख प्रिंस तुर्की बिन सुल्तान अल साऊद के प्रसिद्ध कथन का ज़िक्र आज भी किया जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि सऊदी-पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग संभवतः दुनिया के दो देशों का सबसे क़रीब का संबंध है।
 
 
असमंजस में पाकिस्तान
क़मर आगा कहते हैं, ''पाकिस्तान अभी बहुत ही असमंजस की स्थिति में है। वो करे तो क्या करे। ज़ाहिर है भारत और सऊदी क़रीब आए हैं और यह पाकिस्तान को परेशान करने वाला है। अमेरिका ने सऊदी अरब से कहा है कि वो ये सुनिश्चित करे कि उसके पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान चीन के प्रोजेक्ट के लिए नहीं करे। अमेरिका ने अपनी तरफ़ से मिलने वाली सारी मदद रोक ही दी है। ऐसे में पाकिस्तान क्या इतना मजबूर हो जाएगा कि वो क़तर और ईरान को पूरी तरह ख़ारिज कर सऊदी के नेतृत्व वाले यमन में जारी सैन्य कार्रवाई में शामिल हो जाए? मुझे लगता है कि वो इतना मजबूर हो गया है।''
 
 
हालांकि पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी क़तर के साथ सहयोग की आलोचना करने से बचने के लिए कहते रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने क़तर पर नाकेबंदी को लेकर सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात का साथ देने पर आलोचना की थी। कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान को प्रधानमंत्री बनाने में पाकिस्तान की सेना की बड़ी भूमिका रही है ऐसे में ख़ान सऊदी के साथ संबंधों को पटरी पर लाकर अपनी सेना का भी भरोसा जीतने में कामयाब रहेंगे।
 
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