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Last Modified: बुधवार, 5 नवंबर 2014 (11:12 IST)

कश्मीर को मोदी कैसे जीतेंगे?

कश्मीर को मोदी कैसे जीतेंगे? - Narendra Modi Mission Kashmir
- शकील अख्तर बीबीसी उर्दू संवाददाता (दिल्ली)

जब पूरा भारत 23 अक्टूबर को रोशनी का त्योहार दिवाली मना रहा था उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कश्मीर के विनाशकारी बाढ़ पीड़ितों को ये एहसास दिलाने के लिए कि सरकार उनके साथ है, वे श्रीनगर में मौजूद थे।


यह पहला मौका नहीं था जब मोदी ने इस तरह का प्रतीकात्मक संदेश दिया है। 13 साल पहले जब गुजरात में विनाशकारी भूकंप आया था उस समय भी मोदी दिवाली के मौके पर भुज के क्षतिग्रस्त शहर के निवासियों के साथ थे।

मोदी के श्रीनगर दौरे को अगर अलगाववादियों ने 'सांस्कृतिक हमला' करार दिया तो वहीं विपक्षी कांग्रेस ने इसे राजनीतिक अवसरवाद कहा है। कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह कदम भारत के नियंत्रण वाले जम्मू और कश्मीर राज्य में जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उठाया है।

कश्मीर की राजनीति : यह उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी पिछले छह महीने में चार बार कश्मीर का दौरा कर चुके हैं। शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने इतनी कम अवधि में इतनी बार घाटी का दौरा किया है।

दिल्ली की गद्दी हासिल करने के बाद कश्मीर में जीत हासिल करना मोदी का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और वैचारिक एजेंडा है। भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) कश्मीर की राजनीति में अभी तक कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखती थी। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी पिछले कई सालों से राज्य की राजनीति पर हावी रही हैं।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर नजर रखने वाले चुनावी पंडितों के अनुसार राज्य में कांग्रेस और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह की नेशनल कांफ्रेंस के ख़िलाफ़ जनता में मायूसी का माहौल है और आने वाले विधानसभा चुनाव में उनका वही हश्र हो सकता है जो केंद्र में कांग्रेस का हुआ है।

सत्ता की रणनीति : राज्य के मौजूदा सियासी हालात के मद्देनजर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की हार की सूरत में महबूबा मुफ्‍ती की पीडीपी सत्ता में आती, लेकिन इस बार शायद ऐसा न हो। प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर में सत्ता में आने की रणनीति तैयार की है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जम्मू की दो सीटों और लद्दाख की एकमात्र सीट पर जीत हासिल की थी।

पार्टी ने पहली बार 87 सदस्यीय विधानसभा में जम्मू और लद्दाख क्षेत्र की 41 सीटों में से 27 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी। भाजपा ने कश्मीर के लिए 'मिशन 44' का लक्ष्य रखा है।

कश्मीरी पंडित : लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी की 46 सीटों में किसी पर भी भाजपा को सफलता नहीं मिल सकी थी लेकिन विधानसभा चुनावों के लिए इस बार पार्टी ने मुस्लिम बहुमत वाली घाटी के कम से कम 10 सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रखा है।

घाटी में भाजपा की रणनीति की धुरी दो पहलुओं पर केंद्रित है। पहला यह कि वह कश्मीर से बेदखल होने वाले कश्मीरी पंडितों को बड़े पैमाने पर वोट देने के लिए प्रेरित कर रही है। परंपरागत रूप से कश्मीरी पंडित भाजपा समर्थक रहे हैं। दूसरा यह कि अगर अलगाववादी चुनाव के बहिष्कार की अपील करते हैं तो यह उसके पक्ष में जाता है।

राजनीतिक परिदृश्य : सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस इस बार अलग चुनाव लड़ रहे हैं। यह भी भाजपा के पक्ष में है। पिछले कुछ महीनों में राज्य के कई महत्वपूर्ण और प्रमुख मुसलमान भाजपा में शामिल हो गए है। इन सभी कारणों से सत्तारूढ़ गठबंधन से नाराज मतदाता और भाजपा का नया अनुभव पार्टी को सत्ता में ला सकता है।

अगर ऐसा हुआ तो जम्मू-कश्मीर की पूरी राजनीति का परिदृश्य बदल सकता है।