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Last Modified: मंगलवार, 10 जनवरी 2017 (11:11 IST)

'ज़बरदस्ती किस करके भागना प्रैंक नहीं होता'

'ज़बरदस्ती किस करके भागना प्रैंक नहीं होता' - molestation
- भरत शर्मा
 
प्रैंक के नाम पर युवतियों और महिलाओं को जबरन किस कर भागने वाला 'क्रेज़ी सुमित' मुसीबत में है। दिल्ली पुलिस ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और तकनीकी जांच शुरू कर दी है। कई लोग इसे मज़ाक नहीं, बल्कि महिलाओं से छेड़छाड़ और अश्लीलता जैसे अपराध बता रहे हैं और प्रैंक करने वाले इसे 'प्रैंक' मानने को तैयार नहीं हैं।
रेड एफ़एम से जुड़े 'कड़क लौंडा' आशीष शर्मा रेडियो पर भी लोगों से मज़ाक करते हैं और दिल्ली की सड़कों पर कई लोगों को मज़ाकिया अंदाज़ में बेवकूफ़ बना चुके हैं। लेकिन आशीष का कहना है कि सुमित ने जो किया, वो प्रैंक नहीं है।
 
मज़ाक के नाम पर कुछ भी?
इस वीडियो को लेकर लोग सोशल मीडिया पर नाराज़गी जता रहे हैं। आशीष ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में कहा, ''प्रैंक क्या है और किसी को ठेस पहुंचाना क्या है, इसे लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। जो सुमित ने किया, वो प्रैंक नहीं है। प्रैंक देखने के बाद हंसी आती है। वो एक-तरफ़ा नहीं, दो-तरफ़ा होता है।''
 
उन्होंने कहा, ''इसका मतलब ये कि अगर मैंने किसी के साथ प्रैंक किया, तो वो घबराया, चौंका या गुस्सा हुआ। लेकिन जब उसे बताया जाए कि ये मज़ाक था, तो ख़ुद उसे भी हंसी आनी चाहिए। ऐसा नहीं कि देखने वाले हंसे और वो शर्मसार हो जाए।''
 
सुमित वर्मा यूट्यूब पर 'क्रेज़ी सुमित' चैनल चलाते हैं, जिसके डेढ़ लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं। सुमित का कहना है कि उन्होंने ये वीडियो 'मनोरंजन के लिए बनाया था और उनका मक़सद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था।'
 
सुमित की सफ़ाई नाकाफ़ी क्यों?
आशीष का कहना है, ''प्रैंक तब होता है, जब आप लौटकर उस शख़्स के पास जाते हैं और बताते हैं कि ये मज़ाक था। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। उल्टा इस वीडियो में दिख रहा है कि सुमित युवतियों के साथ मौजूद लोगों को धक्का देकर या आंखों में स्प्रे डालकर भाग रहा है। इसे प्रैंक नहीं कहा जा सकता।''
 
उन्होंने कहा, ''प्रैंक जिस पर किया जा रहा, उसे शारीरिक या मानसिक ठोस नहीं पहुंचनी चाहिए। मज़ाक करने पर कई बार लोग हमें गालियां देते हैं, लेकिन हम उन्हें गाली नहीं दे सकते। हाथापाई नहीं कर सकते। आपकी सीमा होती हैं। भाषा गलत नहीं हो सकती, फ़िज़िकल नहीं हो सकते।''
 
लेकिन अगर कोई ऐसा करे, तो पीड़ित क्या करे। ऐसे हादसे होने के वक़्त कानून की मदद ली जा सकती है, लेकिन कम ही ये रास्ता अख़्तियार करते हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह बदनामी का डर है।
जाने-माने साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल के मुताबिक प्रैंक या उसके नाम पर ऐसी गलत हरकत करने पर क्या सज़ा दी जाए, हमारे साइबर लॉ में इसे लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
 
दुग्गल ने बीबीसी से कहा, ''कानून कहता है कि अगर आपने किसी अश्लील सामग्री का इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन या ट्रांसमिशन किया है या इसमें मदद दी है, तो वो दंडनीय अपराध है, साइबर क्राइम है। तीन साल की सज़ा है और पांच लाख रुपए जुर्माना। और आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है।''
 
सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल
इंटरनेट और सोशल मीडिया को लोगों ने शोहरत का आसान तरीका समझ लिया है और उन्हें ये गलतफ़हमी भी है कि वो इस पर कुछ भी कर सकते हैं। दुग्गल ने कहा, ''आजकल लोगों को लगने लगा है कि वो इंटरनेट पर वो कुछ भी कर सकते हैं। वो भूल जाते हैं कि वो जब भी कोई सामग्री प्रकाशित करते हैं, ट्रांसमिट करते हैं या इसमें मदद करते हैं तो नतीजे भुगतने होते हैं।''
 
आशीष का मानना है कि सोशल मीडिया को शोहरत के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ''आजकल आपको हर दिन प्रैंक करने वाले नए लोग मिल जाएंगे। एक वक़्त पर लोग मुंबई जाते थे। कई साल स्ट्रगल करते थे। आजकल लोग सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं। और कुछ नहीं अपना वीडियो फ़ेसबुक पर डाल दीजिए। कई लोग यूट्यूब के ज़रिए ही मशहूर हो गए।''
 
लेकिन अगर प्रैंक की आड़ में ऐसी हरकत किसी के साथ हो जाए, तो वो क्या करे। कानून में इसके लिए प्रावधान हैं, लेकिन लोगों का जागरुक होने की ज़रूरत है और पुलिस को ज़्यादा संवेदनशील।
 
पीड़िता कहां जाए, क्या करे?
पवन दुग्गल के मुताबिक, ''अगर आप ऐसे किसी प्रैंक के पीड़ित हैं तो तुरंत इसकी जानकारी देनी चाहिए। आप स्थानीय थाने में जा सकते हैं। अगर कोई प्रैंक की आड़ में किस करके भाग गया तो आईपीसी की धारा 292 के तहत कार्रवाई होगी, जो अश्लीलता से निपटता है।''
 
दुग्गल ने कहा, ''और अगर प्रैंक करने वाला इसे वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डालता है, तो आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत भी कदम उठाए जा सकते हैं।''
 
पीड़ित की पहचान ज़ाहिर ना हो, क्या इसके इंतज़ाम किए जाते हैं, उन्होंने कहा, ''अगर आपको थाने जाने को लेकर हिचकिचाहट है, तो थाने की वेबसाइट जाकर ई-एफ़आईआर दर्ज करा सकते हैं। अगर पीड़ित लिखित आग्रह करता है कि उसकी पहचान छिपाई जाए, तो ऐसा होना चाहिए।''
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