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Last Modified: गुरुवार, 2 जून 2016 (11:09 IST)

बेटी ने खुदकुशी कर बाप का 'पैसा बचाया'

बेटी ने खुदकुशी कर बाप का 'पैसा बचाया' - marathwada drought suicide
- संजय रमाकांत तिवारी (भिसे वाघोली, लातूर)
 
लातूर के भिसे वाघोली गांव की कांता भिसे के पास एक ही काम है, काम ढूंढना। मगर सूखा है तो काम कहां से मिलेगा। वे रोज़ घर से निकलती हैं और दोपहर बाद लौट आती हैं, ख़ाली हाथ। पति कलेक्शन एजेंट हैं और हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद उनके हाथ महीने में सिर्फ़ एक हज़ार रुपए आते हैं। मगर इससे घर नहीं चलता।
कांता के दो बच्चे हैं, हाईस्कूल में पढ़ रहा बेटा और बेटी। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। दूसरी बेटी मोहिनी ने 70 फीसदी अंक लेकर पिछले साल 12वीं पास की थी, पर उसे आगे पढ़ाने के लिए दूसरे गांव भेजने की हिम्मत और आर्थिक शक्ति कांता में नहीं थी।
 
लिहाजा उसकी शादी की कोशिश शुरू हुईं, मगर पढ़ाई में दिलचस्पी रखने वाली मोहिनी ने अचानक इस साल 16 जनवरी को दुपट्टे से फांसी लगाई और मर गईं।
 
कांता जब भी बेटी के आख़िरी खत को देखती हैं तो उनके आंसू निकल आते हैं। मोहिनी ने मराठी में अपना सुसाइड नोट लिखा था। इसे पढ़ने से पता चलता है कि सूखा झेल रहे इलाकों में लड़कियां क्या सोचती हैं। सुसाइड नोट में मोहिनी ने अपने पिता से गुहार लगाई है कि वो शराब न पिएं और उसकी मौत के बाद 13वीं या श्राद्ध जैसे कर्मकांडों पर रुपए जाया न करें।
 
वो लिखती है कि, 'यह सब आत्मा की शांति के लिए करते हैं लेकिन मैं अपनी खुशी से यह कदम उठा रही हूं। खुशी होगी कि मैंने दहेज और शादी पर आपके जो रुपए खर्च हो जाते, उन्हें बचाया है। आखिर कब तक लड़की वाले लड़के वालों के आगे झुकते रहेंगे?'
कांता बताती हैं, 'जो रिश्ते आए थे सब दो से चार लाख रुपए के बीच दहेज मांग रहे थे। हम दोनों पति-पत्नी तनाव में थे। मैंने पति से कहा भी कि हमारे पास जो एक एकड़ खेत है, उसे बेच डालेंगे। जब मैं यह कह रही थी, तब मोहिनी सामने के कमरे में टीवी देख रही थी। उसने मेरी बात शायद सुनी होगी। इसलिए उसने ऐसा किया। उसने लिखा था कि मेरे भाई की ज़मीन छिन जाएगी। उसके पास कोई प्रॉपर्टी नहीं बचेगी। इसलिए उसने ऐसा कर डाला।'
 
मोहिनी के जाने के बाद क्या बदला है ज़िंदगी में?
 
कांता कहती हैं, 'कुछ नहीं। अब तो बारिश भी नहीं है और काम का भी सवाल है। किसी ने कोई काम दिया, तो हम दोनों कर सकते हैं, लेकिन काम नहीं है। इसलिए हम लोगों से उधार लेकर काम चला रहे हैं। जिसने उधार वापस मांगा, तो दूसरे से लेकर पहला चुकाते हैं। बैंक अगर हमें बेटी की शादी के लिए एक लाख भी कर्ज़ दे देता, तो हम जैसे-तैसे शादी निपटा सकते थे, लेकिन एक एकड़ ज़मीन होने के बावजूद बैंक ने हमें सिर्फ़ 20 हजार कर्ज़ देने की पेशकश की थी।'
मोहिनी के गांव भिसे वाघोली में एक साल में तीन खुदकुशी हो चुकी हैं। गातेगांव में भी हाल ही में ऐसी घटना हो चुकी हैं। 28 अप्रैल को 65 साल के महाकांत माली ने आम के पेड़ पर लटककर खुद को फांसी लगा ली। वजह थी घर बनाने के लिए लिया दो लाख का कर्ज़।
 
60 साल की विधवा कमल पर यह रकम लौटाने की जिम्मेदारी है। सोसायटी का 23 हजार का कर्ज़ा भी है। चार एकड़ की खेती को संभालना और तीन बेटों की जिम्मेदारी। बड़ा बेटा सेकेंड ईयर से पढ़ाई छोड़कर रोजगार ढूंढ रहा है। दो छोटे भाई पढ़ाई के साथ पड़ोस के खेत में काम करते हैं, जहां दोनों को 300-300 रुपए मिल जाते हैं।
 
लातूर से लगे बीड़ जिले के वारवा गांव में इस साल फरवरी में 25 लड़कियों ने ग्रुप बनाया और फैसला लिया कि वो सूखा होने की वजह से इस साल शादी नहीं करेंगी। लगातार सूखे की वजह से किसानों का घरेलू बजट तबाह हो चुका है। ऐसे में शादी का मतलब है दहेज। जिसे जुटाने का मतलब है नया कर्ज़ या जमीन का टुकड़ा या गहने को बेचना।
मोहिनी के पिता पांडुरंग भिसे कहते हैं कि यहां कोई काम नहीं है। रोजगार गारंटी योजना का भी काम नहीं। जो मिलते हैं, वो इतने मुश्किल हैं कि आम किसान कर नहीं पाते, मसलन पत्थर तोड़कर 40 फीट या सौ फीट कुआं खोदना या सड़क के बड़े काम। ठेकेदार बड़ी मशीनों से ये पूरे कर लेते हैं और बाद में लोगों से जॉब बुक ले जाकर एंट्री कर दी जाती है।
 
महाराष्ट्र के शेतकरी संगठन के मुखिया सत्तार पटेल इससे सहमत हैं। उनका कहना था कि जो काम मजदूर नहीं कर सकते, वो काम इस योजना में नहीं डाले जाने चाहिए पर यही हो रहा है।
 
लिहाजा विदर्भ के बाद अब मराठवाड़ा भी किसान खुदकुशियों के लिए जाना जा रहा है। हर जिले से ऐसी खबरें आ रही हैं। पति के जाने के बाद विधवा को घर, खेत और कर्ज़ का बोझ तीनों की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है।
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