गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. male rape in india
Written By
Last Modified: मंगलवार, 31 मार्च 2015 (12:50 IST)

जब एक मर्द का रेप हो जाए...

जब एक मर्द का रेप हो जाए... - male rape in india
- द्रोण शर्मा (मनोचिकित्सक)
 
भारत में कितने पुरुष बलात्कार का शिकार होते हैं, इस बारे में बहुत कम जानकारी है। चूंकि कानूनी रूप से इसकी मान्यता नहीं होती है और इसलिए औपचारिक रूप से इसकी शिकायत भी नहीं होती या इसका रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता।
यहां तक कि उन देशों में जहां इसे कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है, वहां भी इस तरह के अपराधों को लेकर औपचारिक अध्ययन 1980 के दशक में जाकर शुरू हो पाया।
 
अगर हम अमेरिका के आंकड़ों की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार वहां 19.3 प्रतिशत महिलाएं और 1.7 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं जो कभी न कभी बलात्कार का शिकार हुए। पढ़ें विस्तार से...
 
हालांकि एक साल में बलात्कार का शिकार होने वाले पुरुषों की संख्या पर विवाद है। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि पूरी दुनिया में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के साथ हुई बलात्कार की काफी कम घटनाएं सामने आ पाती हैं।
 
बलात्कार के शिकार पुरुषों के गुप्तांगों के अलावा अन्य शारीरिक चोटें ज्यादा लगती हैं और ऐसी घटनाओं में हथियारों के इस्तेमाल की अधिक संभावनाएं होती हैं। पुरुषों को भी बलात्कार की शिकार महिला पीड़ित की तरह ही मानसिक पीड़ा से होकर गुजरना पड़ता है।
 
एक बात साफ है कि पुरुष होने के बावजूद बलात्कार का शिकार होने की शर्म, अविश्वास और इससे जुड़ी शर्मिंदगियों का पुरुषों पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
 
शर्मिंदगी और मानसिक पीड़ा : बलात्कार के शिकार पुरुषों में भारी चिंता, बेचैनी, आक्रामकता, अवसाद और भुलाने के लिए अत्यधिक शराब और हानिकारक ड्रग्स लेने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। जैसा कि आत्महत्या जैसे मामलों में होता है, शर्मिंदगी को झेलने के बजाय, ऐसे मामलों में खुद को चोट पहुंचाने की प्रवृत्ति चिंताजनक रूप से बढ़ जाती है।
 
पुरुषों को केवल यौन हिंसा का ही सामना नहीं करना पड़ता है बल्कि इसके साथ ही इसे छिपाए रखने का भी संघर्ष करना पड़ता है। जिससे अपने तेजी से खत्म होते आत्मविश्वास और खुद की रक्षा में सक्षम समझे जाने वाले एक पुरुष के रूप में अपनी पहचान को किसी तरह बचाए रखा जा सके।
 
इसलिए भारी मानसिक अवसाद के बावजूद उन्हें शांत और नियंत्रित व्यवहार करते दिखने के लिए मजबूर होना पड़ता है। और यह सामाजिक रूप से अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है।
 
यौन हमला : बलात्कार और इससे संबंधित आत्म-नियंत्रण की कमी, एक पुरुष के रूप में अपनी रक्षा खुद करने की उनकी क्षमता पर संदेह पैदा करती है और इससे आत्मविश्वास भी जाता रहता है।
 
बलात्कार का शिकार एक सामान्य पुरुष खुद पर संदेह करने लगता है कि कहीं ‘बलात्कार ने उसे समलैंगिक पुरुष तो नहीं बना’ दिया है। यह संदेह खासकर तब और गहरा जाता है जब शिकार व्यक्ति यौन हमले के दौरान जरा सी भी काम भावना महसूस करने लगता है।
 
जागरूकता : हालांकि इस बात की जागरूकता की कमी है कि भयंकर दर्द, डर या बेचैनी के दौरान पुरुषों में एक किस्म की कामुकता पैदा होती है। बर्बर यौन हमले के बाद अस्तित्व को बचाए रखना किसी भी इंसान के लिए एक चुनौती है।
 
इसके अलावा बलात्कार के शिकार पुरुष के सामाजिक, लैंगिक और सेक्शुअल पहचान पर इस घटना के कई अनजान प्रभाव और जटिलता पैदा करते हैं। दुर्भाग्य से, ऐसा लगता है कि भारतीय कानून व्यवस्था पीड़ित को ही दोषी बनाने में एक कदम आगे चली जाती है!
 
यह व्यवस्था, बलात्कार की शिकार महिला पीड़ितों के मुकाबले, पुरुष पीड़तों को न्याय पाने का अधिकार नहीं देती। यह वाकई, एक कड़वी सच्चाई है कि आज के भारत में, बलात्कार के शिकार व्यक्ति को उसी कानून से हल तलाशना पड़ सकता है, जो समलैंगिक क्रियाकलाप को अपराध घोषित करता है।
 
भारतीय कानून : भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार, बलात्कार के शिकार एक पुरुष को इस बात को साबित करना पड़ सकता है कि दूसरे पुरुष ने उसके साथ संबंध बनाए थे। वह इसके बाद ही यह उम्मीद कर सकता है कि उस पर हमला करने वाले को सजा मिलेगी।
 
पीड़ित व्यक्ति इंसाफ के लिए जब धारा 377 का सहारा लेता है तो उसके सामने इसी कानून के जाल में फंसने का खतरा होता है, क्योंकि यह धारा एक ऐसे पुरुष को कोई राहत नहीं देती, जिसे बिना सहमति के समलैंगिक गतिविधि में शामिल होने पर मजबूर किया गया हो।
 
उसे कानून के कोप का भी भाजन पड़ना होगा और उसी तकलीफ से दोबारा गुजरना पड़ेगा! इस बलात्कार का शिकार हर स्थिति में खुद को दोराहे पर खड़ा पाता है! इस तरह पीड़ित दोनों में कोई भी विकल्प चुने, अंततः यह उसके खिलाफ ही जाता है।