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Last Modified: गुरुवार, 4 दिसंबर 2014 (12:54 IST)

मोदी राज में चमकेगा 'रावण का गांव'!

मोदी राज में चमकेगा 'रावण का गांव'! - mahabharat_ramayan_ncr_tourist
- नरेंद्र कौशिक 
 
दिल्ली और आगरा को जोड़ने वाली सड़क ताज एक्प्रेसवे पर डंकापुर गांव के लोग हिंदू मिथक 'महाभारत' के एक किरदार द्रोण के चलते टूरिज्म के नक्शे पर आने को बेताब हैं। इसी तरह के सपने नजदीक ही मौजूद बिसरख गांव भी देख रहा है। इस गांव वालों का कहना हैं कि रावण इनके गांव का था। केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री महेश शर्मा की चली तो ऐसा हो ही जाएगा। शर्मा स्थानीय सांसद हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट

माना जाता है कि डंकापुर में स्थित पुराना मंदिर पांडव और कौरव भाईयों के गुरु द्रोणाचार्य का है और उसके पास ही एक तालाब भी है। ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इन दोनों ही संरचनाओं को संरक्षित स्मारक का दर्जा दे दिया है।
 
द्रोण का डंकापुर : मिथकों के अनुसार द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को डंकापुर में ही युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया था और द्रोण के इनकार के बाद भील बालक एकलव्य ने धनुर्विद्या भी अपने बल पर यहीं सीखी थी।
आगरा सर्किल के सुप्रीटेंडिंग ऑर्कियोलॉजिस्ट एनके पाठक ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की है कि दसवीं और 11वीं सदी के इन स्मारकों के जीर्णोद्धार के लिए काम किया जा रहा है। इस मंदिर के कई हिस्से द्रोणाचार्य, उनके बेटे अश्वत्थामा, कृष्ण, एकलव्य और अन्य पौराणिक पात्रों को ख़ास तौर पर समर्पित किए गए हैं।
 
रावण जन्मभूमि : डंकापुर की तरह ही पश्चिमी ग्रेटर नोएडा का बिसरख गांव पौराणिक पात्र रावण से अपने संबंधों पर इतरा रहा है। कहा जाता है कि मिथकों में लंकाधीश रावण इसी गांव में श्रृषि विश्ररवा और उनकी पत्नी केकैसी से पैदा हुए थे।
 
विश्ररवा ने यहां शिव का एक मंदिर बनवाया था जो अब बिसरख धाम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गांव के बाहर है।
शिव लिंग : पौराणिक मान्यता है कि श्रृषि विश्ररवा को दक्षिणा में लंका का राज्य मिला था। बिसरख धाम के दिन तब से फिर गए। इस मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद आठ कोनों वाले भूरे रंग के शिव लिंग के बारे में कहा जाता है कि श्रषि विश्ररवा ने इसे खुद ही स्थापित किया था।
 
गांव वाले कहते हैं कि शिवलिंग के दस फीट लंबा है। हांलाकि बाहर केवल दो फ़ीट आठ फीट ही दिखाई देता है बाकी उनके हिसाब से जमीन के नीचे धंसा हुआ है।

 
रावण से रिश्ते के बिसरख के गांववालों के दावे को समर्थन देने के लिए एएसआई के पास कोई सबूत नहीं है। लेकिन इसके बावजूद बिसरख के लोगों का यकीन बरकरार है और वे इस मिथक के प्रसार में लगे भी रहते हैं। यहां के लोग अपनी गाड़ियों के पिछले शीशे पर रावण का नाम लिखते हैं।
 
आज तक बिसरख के लोगों ने रावण के सम्मान में दशहरा नहीं मनाया। अतीत में रावण दहन के दौरान एक लड़के की मौत हो जाने से लोगों ने इस रिवाज को छोड़ ही दिया है। यहां तक कि बिसरख के लोग रामलीला का मंचन भी नहीं करते हैं।
जमीन की मांग : गांव वाले रावण का मंदिर भी बनाना चाहते हैं। पिछले साल बिसरख के ग्राम प्रधान अजय भाटी ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को चिट्ठी लिखकर मंदिर के लिए ज़मीन देने की मांग की थी।
पर्यटन मंत्री का कहना है कि उनकी इच्छा द्रोण के मंदिर, रावण के गांव को घरेलू सैलानियों से जोड़ने की है।
 
महेश शर्मा की योजना अपने निर्वाचन क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय टूरिस्ट सर्किट बनाने की है जिसे वे दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर और नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल, बोटनिकल गार्डेन, शहीद स्मारक से जोड़ना चाहते हैं।