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Last Updated : बुधवार, 21 मार्च 2018 (11:27 IST)

'कड़कनाथ' के लिए लड़ रहे हैं छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश

'कड़कनाथ' के लिए लड़ रहे हैं छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश - kadaknath cock
- आलोक प्रकाश पुतुल (रायपुर से)
 
दुनिया भर में मुर्गों की लड़ाई के बारे में आपने ज़रूर देखा-पढ़ा होगा। लेकिन एक ख़ास क़िस्म के मुर्गे को लेकर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश आमने-सामने आ गए हैं। दोनों ने इस मुर्गे पर अपना दावा पेश किया है। इस मुर्गे का नाम है कड़कनाथ!
 
असल में इन दोनों ही राज्यों में कड़कनाथ या कालीमासी नामक मुर्गे की एक ख़ास प्रजाति पाई जाती है। काले रंग के मुर्गे की इस प्रजाति का ख़ून और मांस तक काला ही होता है। देश में पाए जाने वाले दूसरे मुर्गों की तुलना में इसका आकार और वजन तो बड़ा होता ही है, इस मुर्गे में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व भी दूसरे मुर्गों की तुलना में कहीं अधिक होते हैं।
 
अपने स्वादिष्ट मांस के लिए चर्चित कड़कनाथ में दूसरे मुर्गों की तुलना में प्रोटीन की मात्रा 20 प्रतिशत की तुलना में 25 प्रतिशत तक होती है। इसी तरह कड़कनाथ में वसा की मात्रा अधिकतम 1.03 प्रतिशत तक होती है, जो सामान्य मुर्गे में 13 से 25 प्रतिशत तक होता है। दूसरे मुर्गे की तुलना में कड़कनाथ में कोलेस्ट्राल भी कम होता है।
 
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भी कड़कनाथ की प्रजाति मिलती है और मध्यप्रदेश के झाबुआ, धार और बड़वानी में भी। दोनों ही राज्यों में बरसों से कड़कनाथ की प्रजाति को पालने का चलन है।
 
कड़कनाथ की भारी मांग
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में तो पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में कड़कनाथ को सरकार ने भी प्रोत्साहित किया है क्योंकि राज्य और राज्य से बाहर कड़कनाथ की भारी मांग है। आम तौर पर 80 से 120 रुपए किलो बिकने वाले दूसरे मुर्गों की तुलना में कड़कनाथ का बाज़ार भाव 500 से 750 रुपए प्रति किलोग्राम है।
 
इसी कड़कनाथ के 'जियोग्राफ़िकल इंडिकेशंस टैग' यानी भौगोलिक संकेतक का दावा करते हुए दोनों राज्यों ने चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय में अपना आवेदन पेश किया है।
जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग का मतलब ये है कि अधिकृत उपयोगकर्ता के अलावा कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार इस उत्पाद के मशहूर नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकती। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइज़ेशन के अनुसार जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन ये बताता है कि वह उत्पाद एक ख़ास क्षेत्र से ताल्लुक़ रखता है और उसकी विशेषताएं क्या हैं। साथ ही उत्पाद का आरंभिक स्रोत भी जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन से तय होता है।
 
झाबुआ कड़कनाथ ब्लैक चिकन मीट के लिए मध्यप्रदेश की ओर से 2012 में ही चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय में अपना आवेदन पेश करने वाली झाबुआ की गैर-सरकारी संस्था ग्रामीण विकास ट्रस्ट की फौज़िया करीम कहती हैं, "हम मान कर चल रहे हैं कि इस महीने के अंत तक हमें कड़कनाथ का जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग मिल जाएगा। इस मुर्गे पर छत्तीसगढ़ का दावा निर्रथक है।"
 
छत्तीसगढ़ का दावा
ग्रामीण विकास ट्रस्ट को कड़कनाथ का जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग दिए जाने के लिए मध्यप्रदेश की सरकार ने भी भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय को कड़कनाथ के पक्ष में कई शोध और दस्तावेज़ सौंपे हैं।
 
लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सरकार के साथ मिल कर कड़कनाथ का व्यापार करने वाली ग्लोबल बिजनेस इनक्यूबेटर प्राइवेट लिमिटेड ने पिछले महीने ही दंतेवाड़ा ज़िला प्रशासन और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के साथ मिल कर कड़कनाथ पर छत्तीसगढ़ का दावा पेश करते हुये जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग के लिये आवेदन किया है।
 
इस कंपनी ग्लोबल बिजनेस इनक्यूबेटर प्राइवेट लिमिटेड का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। कंपनी के निदेशक श्रीनिवास गोगीनेनी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "हमने पूरे तथ्यों के साथ अपना दावा पेश किया है कि कड़कनाथ मूलतः छत्तीसगढ़ की प्रजाति है। हमें पूरी उम्मीद है कि इस मामले में हमें ही जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग मिलेगा। आज ही हम अपने क़ानूनी सलाहकारों से आगे की रणनीति के लिये बैठक करने जा रहे हैं।"
 
लेकिन, गोगीनेनी के दावे के उलट मध्यप्रदेश के अधिकारी आश्वस्त हैं कि कड़कनाथ पर उनका दावा ज़रूर सही साबित होगा। मध्य प्रदेश पशुपालन विभाग के अतिरिक्त उप संचालक डॉ। भगवान मंघनानी मान कर चल रहे हैं कि इस महीने तक कोई न कोई फ़ैसला ज़रूर हो जायेगा।
 
ज़ाहिर है, अगर मध्यप्रदेश को कड़कनाथ का जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग मिल जाता है तो फिर छत्तीसगढ़ में कड़कनाथ की बांग मुश्किल में पड़ सकती है।
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