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Last Modified: शनिवार, 18 जुलाई 2015 (12:18 IST)

टीवी से अच्छा है इंटरनेट?

टीवी से अच्छा है इंटरनेट? - Internet and TV
- सुमिरन प्रीत कौर 
'मेक इन इंडिया' के बाद 'डिजिटल इंडिया' मोदी सरकार का अगला महत्वाकांक्षी अभियान है। इस अभियान का मकसद देश के ढाई लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़ना और सरकारी योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाना है।
इस अभियान के तहत क्या हो रहा है? मंसूबे कैसे पूरे होंगे? अचड़नें क्या हैं? एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं? डिजिटल इंडिया अभियान के हर पहलू की बारीकी से पड़ताल कर रही है बीबीसी हिंदी की विशेष सीरीज। इसी कड़ी में चर्चा इंटरनेट और फोन से नई पीढ़ी के चिपके रहने की वजहों की।
 
इंटरनेट और टीवी : हास्यपूर्ण वीडियो बनाने वाले 'द वायरल फीवर' के साथ जुड़े विश्वपति सरकार और अमित का कहना है, 'टीवी पर आने वाले सास बहू के धारावाहिकों में नई पीढ़ी के लिए कुछ नहीं है। टीवी के सामने बैठने का वक्त भी नहीं है। अब वह जमाना भी नहीं रहा कि पूरा परिवार एक साथ बैठे और टीवी देखे। नई पीढ़ी की दुनिया अब मोबाइल और लैपटॉप में है।'
 
वो बताते हैं, 'पहली बात तो यह की नई पीढ़ी के लिए टीवी पर ज्यादा कुछ नहीं है। वे सास बहू और रियालिटी शोज से बोर हो चुके हैं। दूसरा, अब युवा अपना ज्यादा वक्त इंटरनेट और मोबाइल फोन पर बिताते हैं। तीसरा कारण यह है कि इंटरनेट पर ये नए शोज अच्छे हैं।'
 
बस इन्हीं वजह से 'पेचकस पिक्चर्स' और 'द वायरल फीवर' ला रहे हैं इंटरनेट पर सिटकॉम यानी नई पीढ़ी के लिए धारावाहिक।
 
'परमानेंट रूम मेट्स' के बाद 'द वायरल फीवर' के ऑनलाइन सिटकॉम का नाम है 'पि़चर्स' और 'पेचकस पिक्चर्स' के धारावाहिक का नाम है 'बेक्ड'। 'परमानेंट रूम मेट्स' के एक एपिसोड को 16,95,252 हिट्स मिले थे।
व्यक्तिगत मनोरंजन : नई पीढ़ी अक्सर अपना वक्त मोबाइल और लैपटॉप पर बिताती है। विदेश में अक्सर ऐसे सीरियल बने हैं जो टीवी पर नहीं, इंटरनेट पर आते हैं। इसकी शुरुआत हुई अमेरिका के 1992 में 'साउथ पार्क' के साथ। यह चलन अब भारत में भी शुरू हो चुका है।
 
'पेचकस पिक्चर्स' के विश्वजय मुखर्जी और आकाश मेहता बताते हैं, 'लोग ऐसे धारावाहिक पसंद करेंगे। ये 20-25 के हैं, पर काफी दिलचस्प होते हैं। इनमें ड्रामा, कॉमेडी और रोमांस सब कुछ है। ये हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में हैं।
 
वो बताते हैं, 'इनमें ऐसे हालात और कहानियां हैं, जिनसे आजकल की युवा पीढ़ी जुड़ सके। इनके 10-20 एपिसोड होते हैं। ये कॉलेज के बच्चों की या उन लोगों की कहानियां हैं जो नई नौकरी या नया स्टार्ट अप कर रहे हैं।'
 
आंकड़ें कुछ और कहते हैं : टेक एक्सपर्ट आशुतोष सिन्हा कहते हैं, 'ये सब कुछ सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित है। इंटरनेट की स्पीड अभी उतनी नहीं है कि आप इसे आराम से देख सकें। ऊपर से चाहे एक शो को बहुत हिट्स मिले, जरूरी नहीं कि उतना पैसा भी आए।'
 
इंटरनेट पर शोध करने वाली 'आईएएमएआई' के मुताबिक, साल 2013 तक भारत में चार करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे। 'फेसबुक' और 'लिंक्डइन' जैसी कंपनियों के लिए यह सबसे बड़े बाजारों में से एक है, लेकिन भारत की एक अरब की जनसंख्या के मुकाबले कम है।
 
इसका जवाब देते हुए 'द वायरल फीवर' के विश्वपति सरकार और अमित गुलानी कहते हैं, 'अच्छा समान बिकता है। हम अपने साथ एक स्पॉन्सर यानी एक निर्माता लाते हैं या किसी एक ब्रांड के साथ मिलकर शो के अंदर ही उसका प्रचार भी करते हैं।'