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Last Modified: मंगलवार, 17 नवंबर 2015 (10:54 IST)

भारत के परमाणु कार्यक्रम के 5 मिथक

भारत के परमाणु कार्यक्रम के 5 मिथक - Indian nuclear program
भारत के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी चुनिंदा नौकरशाहों, वैज्ञानिकों और सुरक्षा से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के पास होती है। इस गोपनीयता से भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में कई तरह की भ्रांतियां भी हैं। क्या है भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में 5 मिथक।
1. भारत के पास भरोसेमंद परमाणु क्षमता है: 2003 में भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय ने परमाणु नीति की घोषणा की थी। इसमें कहा गया कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए न्यूनतम परमाणु क्षमता विकसित करेगा।
 
यह केवल एक दिखावा था, चीन और पाकिस्तान दोनों ही देशों के होते हुए भारत न्यूनतम सुरक्षा विकसित नहीं कर सकता। चीन के सामरिक महत्व के केन्द्र देश के सुदूर पूर्वी इलाके में है। चीन एक बड़ी परमाणु शक्ति वाला देश है।
 
इसका मतलब है कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत को जितनी परमाणु शक्ति की जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत चीन के विरूद्ध है। लोगों का मानना है कि पाकिस्तान के मुकाबले चीन के विरूद्ध भारत को बेहतर तैयारी की जरूरत है। यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान के प्रति भारत के लिए मुद्दा न्यूनतम जरूरतों का नहीं है।
2. ऐसा माना जाता है कि भारत की परमाणु शक्ति अलग-अलग टुकड़ों में अलग-अलग असैनिक एजेंसियों के पास है। लेकिन यह एक बड़ा मिथक है। भारत अपनी परमाणु शक्ति का एक हिस्सा हमेशा तैयार रखता है। 
 
इसे किसी भी समय जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल के लिहाज से तैयार रखा जाता है।
यह संभव है कि बाकी हिस्सा परमाणु ऊर्जा विभाग, डीआरडीओ और एसएफसी के पास हो। इसलिए माना जा सकता है कि शांति के माहौल में भारत की पूरी परमाणु शक्ति बिना तैयारी के नहीं होती है।
 
3. भारत की परमाणु नीति कहती है कि परमाणु हथियारों का पहला प्रयोग कभी भी भारत की तरफ से नहीं होगा। भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग अपने ऊपर परमाणु हमला होने के बाद ही करेगा। लेकिन इसमें कई विरोधाभास हैं।
अगर भारत या भारतीय सेना पर जैविक या रासायनिक हथियारों से कोई बड़ा हमला होता है तो भारत के पास यह विकल्प होगा कि वह परमाणु हथियारों से उसका जवाब दे।
 
4. यह भी एक मान्यता है कि भारत की परमाणु शक्ति का फैसला नेता करते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् और स्ट्रैटेजिक फोर्स कमांड बनने से इस मान्यता को और बल मिला है।
 
जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय डीआरडीओ जैसी संस्थाओं को बहुत महत्व नहीं देता है। जबकि डीआरडीओ ने कई बार भारत में तकनीकी विकास का महिमामंडन किया है।
 
इसने भारत के प्रति चीन और पाकिस्तान के रवैए को भी प्रभावित किया है और उन्हें ज्यादा नई तकनीक की ओर देखना पड़ा है। ऐसे में कई बार भारत के नेताओं के पास डीआरडीओ के प्रस्तावों को मंजूर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
5.माना जाता है कि भारत का परमाणु कार्यक्रम सुरक्षित है और यह मीडिया की नजरों से भी बचा हुआ है। लेकिन खबरों के मुताबिक मुंबई हमलों के अभियुक्त डेविड हेडली ने भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर का मुआयना किया था। इससे भारत के परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। 
 
2012 की एक रिपोर्ट के बताती है कि 2 साल में बार्क की सुरक्षा को 25 बार तोड़ा गया। यह समुद्र और जमीन दोनों तरफ से हुआ। इसलिए इस संबंध में पुख्ता कदम उठाने की जरूरत बताई गई।