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Last Modified: मंगलवार, 29 सितम्बर 2015 (17:59 IST)

सावधान...ये है मौत का हाईवे!

सावधान...ये है मौत का हाईवे! - highway No. 44 of death
- श्रीराम कारी (लेखक और स्तंभकार) 
 
भारत का एक प्रमुख हाईवे अजीबो-गरीब वजह से बदनाम है। उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 44 को बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय आदिवासी ग्रामीणों की मौत का जिम्मेदार माना जाता है।
दक्षिण भारत में इसके दोनों तरफ कई आदिवासी गांव बसे हुए हैं। ऐसा ही एक गांव है पेड्डाकुंता। यह गांव तेलंगाना राज्य के महबूबनगर जिले में पड़ता है। छोटे से गांव पेड्डाकुंता को आसानी से ढूंढ़ा जा सकता है क्योंकि इस गांव की पहचान 'हाईवे विधवाओं के गांव' के रूप में है।
 
35 झोपड़ियों वाले इस गांव में सिर्फ एक मर्द हैं। 37 आदमी मर चुके हैं और तीन गांव छोड़कर जा चुके हैं।
 
त्रासदी : विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर चार मिनट पर एक सड़क दुर्घटना होती है। लेकिन इस आंकड़े के आधार पर भी हम पेड्डाकुंता गांव की त्रासदी को तार्किक नहीं ठहरा सकते।
65 साल के मोहम्मद दस्तगीर गांव जाने वाले रास्ते पर पान सिगरेट की दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया, 'वहां कोई मर्द अब नहीं बचा है। गांव के सारे दफ्तर और एमआरओ ऑफिस हाईवे के दूसरे पार हैं। किसी भी सरकारी काम के लिए हाईवे पार कर के दूसरी तरफ जाना होता है और कई लोग लौटकर नहीं आ पाते हैं।'
 
वह कहते हैं, 'सबसे अचंभित करने वाली मौत कुछ महीने पहले हुई जब बगल के गांव का एक आदमी अधिक संख्या में होने वाली इन मौतों के सिलसिले में याचिका लेकर सरकारी दफ्तर पहुंचा था और लौटते वक्त उसकी मौत हो गई।'
किस्मत : 44 साल की कोरा साकिनी तीन साल पहले हाईवे पर हुई दुर्घटना में अपना बेटा खो चुकी हैं। कुछ महीने पहले उनके पति की मौत भी उसी जगह हुई जहां उनका बेटा मरा था। यह जगह उस रास्ते पर है जो गांव को हाईवे से जोड़ती है।
 
कोरा साकिनी कहती हैं, 'वे हमें आधा किलो चावल खाने के लिए देते हैं। मेरे पास पैसे नहीं हैं, कोई काम नहीं, कोई परिवार वाला नहीं है, और कुछ भी जीने के लिए नहीं है। भगवान ने हमें श्राप दे दिया है। कोई मर्द हमारे गांव में ज्यादा दिन तक नहीं जिंदा रहता है।'
 
वह कहती हैं, 'हाईवे से सिर्फ गाड़ी नहीं हमारी किस्मत गुजरती है। हम अपनी मौत का इंतजार करने के लिए अभिशप्त हैं। राजनेता और सरकारी अधिकारी आते हैं खासकर आप पत्रकारों के लिखने के बाद, लेकिन हमें एक रुपया भी आज तक नहीं मिला।'
जमीन : जब करीब एक दशक पहले हाईवे बना था तो एक सर्विस लेन बनने का प्रस्ताव भी पारित हुआ था। यह पैदल यात्रियों को हाईवे के दूसरी ओर जाने के लिए सुरक्षित रास्ता देता। थरिया कोरा अकेले मर्द हैं जो वहां जिंदा बचे हैं। उनकी पत्नी की मौत हो गई है और वह अपने पांच साल के बच्चे की देखभाल अकेले करते हैं।
 
उन्होंने बीबीसी से कहा, 'हाईवे बनने से समृद्धि नहीं केवल मौत आई। बाद में बगल में एक फैक्ट्री लगी। हमसे पानी, स्वास्थ्य केंद्र और नौकरियों का वादा किया गया लेकिन कुछ नहीं हुआ। फैक्ट्री के लिए वह हमसे कभी जमीन नहीं खरीद पाएंगे। वह कभी हाईवे नहीं बना पाएंगे। एक बार जब हम सब मर जाएंगे तब वह हमारी जमीन ले सकते हैं।'
 
सात साल की अंचन गांव के पांच बच्चों में से अकेली है जो नजदीक के स्कूल में पढ़ने जाती है। उसकी मां ने कहा, 'जब उसे देर हो जाती है तो हम डर जाते हैं। हमने बहुत दुख झेला है। हमारे पास खुश होने के लिए कुछ नहीं बचा।'
बुरी नजर : ऐसे हालात में गांव की कई औरतें कभी पैसे तो कभी अनाज और कभी सब्ज़ियों के लिए वेश्यावृति करने को मजबूर हैं। कोरा पन्नी बिना किसी शिकन के अपनी आपबीती सुनाती हैं, 'हम क्या कर सकते हैं? गांव के लगभग सभी मर्दों के मरने के बाद हम असहाय हो चुके हैं। दूसरे गांव के मर्द हमारे लिए यहां आते हैं।'
 
नेनावथ रूक्या अपने पति, तीन बेटों और दामाद को हाईवे की दुर्घटना में खो चुकी हैं। बगल के गांव के मर्दों की बुरी नजर से वो अपनी बहू को बचा नहीं पाई तो उन्होंने उसे उसके मां-बाप के घर भेज दिया।
 
उनका कहना है, 'हम अपने सभी बच्चों को सरकारी होस्टल में भेजना चाहते हैं ताकि वह जिंदा रह सकें।'