अफ्रीकी देश केन्या इन दिनों एक अलग ही संकट से जूझ रहा है। ये संकट है सरकारी कर्मचारियों की मौत के बाद भी उनका वेतन उठाया जा रहा है। बीबीसी के लिए केन्या के मीडिया और संचार प्रशिक्षक जोसेफ वारांगू इस संकट के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
केन्या में सरकार को ऐसे मृत कर्मचारियों के चलते हर महीने 10 लाख डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। केन्या के राष्ट्रपति उहूरु केन्याता ने तो इस संकट से निपटने के लिए हर सार्वजनिक दफ़्तर में बायोमीट्रिक तकनीक के इस्तेमाल की घोषणा की है।
पहचान : इसके अलावा ऐसे कर्मचारियों की पहचान के लिए सार्वजनिक सेवा में नौकरी करने वालों से उनके दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं।
दरअसल, केन्या में मृत कर्मचारियों के नाम पर लगातार तनख़्वाह उठाए जाने के मामले सामने आए हैं। सेवानिवृत्त और बर्ख़ास्त किए गए लोगों को भी लगातार तनख़्वाह मिलती रहती है। यहां तक कि केन्या की सेना से सात साल पहले रिटायर हो चुके सैनिक भी अपना वेतन बख़ूबी उठा रहे हैं।
ऐसे में, सवाल यह है कि सरकार इन सब पर रोक क्यों नहीं लगा पाती है। शायद इसकी बड़ी वजह यह है कि कर्मचारियों का रिकॉर्ड रखने की कोई तर्कसंगत व्यवस्था मौजूद नहीं है.
सफलता : केन्या अफ्रीका का अकेला देश नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है बल्कि दो महीने पहले घाना ने कहा था कि वहां 3,000 ऐसे कामगार पाए गए है जिनका कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन उनके वेतन पर 12 करोड़ डॉलर का खर्च आया है।
इस साल के शुरुआत में नाइजीरिया की सरकार ने घोषणा कि थी कि 45 हज़ार ऐसे कर्मचारियों का पता लगाया गया था और लगभग 74 करोड़ डॉलर उनकी तनख़्वाह ख़त्म कर बचाया गया था। केन्या में इस तरह कर्मचारियों को पकड़ने के लिए शुरू की गई अभियान का यह अभी दूसरा हफ्ता ही है। इसलिए इसकी सफलता पर बात करना जल्दबाज़ी होगी।