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Last Modified: शुक्रवार, 15 मई 2015 (10:26 IST)

पृथ्वी पर कहां से आया पानी?

पृथ्वी पर कहां से आया पानी? - earth_asteroids_bring_waters_planets
- मेलिसा होगनबूम (बीबीसी अर्थ)
 
हमारी आकाशगंगा में कई खत्म हो रहे तारे होते हैं जो क्षुद्र ग्रह के अवशेष होते हैं। ठोस पत्थर के गोले के तौर पर ये किसी तारे पर गिर कर खत्म हो जाते हैं। तारों के वायुमंडल पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक क्षुद्र ग्रह पत्थर के बने होते हैं, लेकिन इनमें काफी पानी भी मौजदू होता है।
इस नतीजे के आधार पर इस सवाल का उत्तर मिल सकता है कि पृथ्वी पर पानी कहां से आया?
 
'शुद्र ग्रहों में खासा पानी' : वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हमारी आकाशगंगा में कई क्षुद्र ग्रह ऐसे होते हैं जिनमें काफी ज्यादा पानी है। यही पानी ग्रहों पर पानी की आपूर्ति करता है जीवन के आगे बढ़ाता है।
 
ब्रिटेन की वॉरिक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रोबर्तो राडी कहते हैं, 'हमारे शोध से पता चला है कि जिस तरह के ज्यादा पानी वाले क्षुद्र ग्रह की बात हो रही है, वैसे शुद्र गृह हमारे सौर मंडल में काफी ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं।'
 
हालांकि शोधकर्ताओं के सामने सबसे बड़ा सवाल यही था कि पृथ्वी पर पानी कहां से आया?
 
काफी पहले पृथ्वी बहुत सूखा और बंजर इलाका रहा होगा। इसकी टक्कर किसी ज्यादा पानी वाले क्षुद्र ग्रह से हुई होगी और इसके बाद उस ग्रह का पानी पृथ्वी पर आया होगा। अपने इस शोध को विश्वसनीय बनाने के लिए राडी को ये दर्शाना था कि ज्यादा जल वाले क्षुद्र ग्रहों की मौजूदगी सामान्य बात है। इसके लिए उन्हें पुराने तारों के बारे में जानकारी की जरूरत पड़ी।
खत्म होने वाले तारों का अध्ययन : जब तारा अपने अंत की ओर बढ़ता है तो वह सफेद रंग के बौने तारे में बदलने लगता है। उसका आकार भले छोटा हो जाता है लेकिन उसके गुरुत्वाकर्षण बल में कोई कमी नहीं आती है।
 
वह अपने आस-पास से गुजरने वाले क्षुद्र ग्रह और कॉमेट्स को अपने वायुमंडल में खींचने की ताकत रखता है। इन टक्करों से पता चलता है कि ये पत्थर किस चीज के बने हैं। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन जैसे रासायनिक तत्व अलग-अलग ढंग से रोशनी को ग्रहण करते हैं।
 
राडी के शोध दल ने खत्म हो रहे तारों पर पड़ने वाली रोशनी के पैटर्न का अध्ययन किया है। कनेरी द्वीप समूह पर स्थित विलियम हर्शेल टेलीस्कोप की मदद से ये अध्ययन किया गया। राडी और उनके सहयोगियों ने 500 प्रकाश वर्ष दूर खत्म हो रहे तारों पर शोध किया। उन्होंने बिखरे हुए क्षुद्र ग्रहों के रासायनिक संतुलन को आंकने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि उनमें पत्थर के अलावा पानी की बहुतायत है।
 
रॉयल अस्ट्रॉनामिकल सोसायटी के मासिक नोटिस में इन शोधकर्ताओं ने लिखा है कि पर्याप्त जल की मौजूदगी वाले क्षुद्र ग्रह आकाशगंगा के दूसरे ग्रहों तक जल पहुंचा सकते हैं। राडी का निशकर्ष था, 'कई सारे क्षुद्र ग्रहों पर जल की मौजूदगी से हमारे उस विचार को बल मिलता है कि हमारे महासागरों में पानी शुद्र ग्रहों के साथ हुई टक्कर से आया होगा।'
 
और ग्रहों पर जीवन संभव : हाल कि सालों में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारे सोलर सिस्टम के बाहर कई ग्रहों का पता लगाया है। केपलर टेलीस्कोप ने अकेले 1000 से ज्यादा ग्रहों को ढूंढ निकाला है।
ऐसे बाहरी ग्रहों पर भी जीवन हो सकता है। अगर इनका आकार पृथ्वी के समान हो और ये अपने तारे के 'गोल्डीलॉक्स जोन' में हों, यानी पृथ्वी की ही तरह, जहां तापमान ना तो बहुत ज्यादा हो और ना ही बहुत कम, तो उन पर जीवन की संभावना हो सकती है।
 
शोध के सह लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरिक के प्रोफेसर बोरिस गैनसिक के मुताबिक जल वाले क्षुद्र ग्रहों ने संभवत: ऐसे ग्रहों तक भी पानी पहुंच होगा। हम ये जानते हैं कि जल के बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। हालांकि गैनसिक ये भी मानते हैं कि अगर किसी बाहरी ग्रह पर जीवन की मौजूदगी होगी भी तो उसका पता लगाना बेहद मुश्किल काम होगा।