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Last Modified: शनिवार, 3 दिसंबर 2016 (15:25 IST)

ऐसे पड़ रही है किसानों पर नोटबंदी की मार

ऐसे पड़ रही है किसानों पर नोटबंदी की मार - currency ban : Farmers
पांच सौ और हजार रुपए के पुराने नोट बंद किए जाने से नकदी की कमी तो सबको सता रही है लेकिन किसान, मजदूर और ग्रामीण इलाकों के लोगों के सामने कई तरह की समस्याएं खड़ी हो गई हैं। फ़सलें तैयार हैं लेकिन कहीं किसान मंडी खाली पड़ी हैं, कहीं किसान अपनी फसल बेच भी रहे हैं तो बदले में नकद रकम नहीं मिल रही।
कहीं-कहीं तो नोटबंदी की मार फ़सलों की कीमत पर भी पड़ रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में नोटबंदी के बाद किसानों की हालत क्या है हमने ये जानने की कोशिश की। लखनऊ में समीरात्मज मिश्र गल्ला मंडी में पहुंचे तो छत्तीसगढ़ में आलोक पुतुल ने किसानों और तरकारी सब्जी बेचने वालों की परेशानी की छानबीन की। वहीं संतरों के लिए मशहूर नागपुर में किसानों की समस्याओं का जायजा लिया संजय तिवारी ने।
 
उत्तरप्रदेश : सीतापुर रोड स्थित लखनऊ की सबसे पुरानी गल्ला मंडी में दिन में 12 बजे के आस-पास बिल्कुल सन्नाटा-सा पसरा हुआ है। ये समय धान की खरीद का होता है, लेकिन इक्का-दुक्का आढ़तियों के यहां ही धान की खरीद हो रही है, बाक़ी आढ़ती आराम से बैठकर किसानों की बाट जोह रहे हैं। यह स्थिति आठ नवंबर से पहले नहीं थी। आठ नवंबर को अचानक नोटबंदी की घोषणा से ये स्थिति पैदा हो गई कि आढ़ती उन्हें नगद रुपया नहीं दे पा रहे हैं और बिना नगदी के किसानों का काम नहीं चल पा रहा है।
 
लखनऊ के माल ब्लॉक से आए किसान ओम प्रकाश तिवारी कहते हैं, 'आढ़ती हमें चेक दे रहे हैं। चेक लेने में कोई दिक्कत भी नहीं है, लेकिन चेक जमा करने के बाद बैंकों से पैसा ही नहीं मिल रहा है। गांव में ग्रामीण बैंकों में लंबी लंबी लाइनें लग रही हैं और लाइन में लगने के बावजूद दो हज़ार रुपये से ज़्यादा मिल नहीं रहे हैं।'
 
ये शिकायत सिर्फ ओम प्रकाश तिवारी की ही नहीं है बल्कि ऐसे और भी कई किसान हैं। इस मंडी में न सिर्फ़ लखनऊ के बल्कि आस-पास के जिलों जैसे बाराबंकी, उन्नाव और सीतापुर जिलों के भी तमाम किसान अपना अनाज लेकर आते हैं।
 
मंडी में धान का भाव पता करने आए एक अन्य किसान महमूद कहते हैं कि इस बार धान की फ़सल काफ़ी अच्छी हुई है, बावजूद इसके किसानों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। वो कहते हैं कि किसानों की विवशता देखकर कुछ आढ़ती नगदी का लालच देकर किसानों से बहुत कम दाम पर भी धान ख़रीद रहे हैं। किसानों के गल्ला मंडी में न पहुंचने से सिर्फ़ किसान ही नहीं, बल्कि मंडी में काम करने वाले तमाम मज़दूर भी हलकान हैं।
करीब साठ-पैंसठ साल के एक बुज़ुर्ग दुर्गाचरण पल्लेदारी का काम करते हैं। उनका कहना है, 'पहले 250-300 रुपये एक दिन में कमा लेते थे लेकिन नोटबंदी के बाद तो सौ-पचास के भी लाले पड़ गए हैं।' ये वो लोग हैं जिनके पूरे परिवार की आजीविका भी इसी के सहारे चलती है। गल्ला मंडी में ही एक आढ़ती शिव प्रकाश गुप्ता कहते हैं कि किसानों को हम चेक से भुगतान कर रहे हैं लेकिन निकासी की सीमा तय की गई है और वो बहुत कम है।
 
उनकी मांग है कि सरकार निकासी की सीमा बढ़ाए तभी स्थिति सुधरेगी। गुप्ता बताते हैं कि गल्ला किसानों के घर पर ही रखा है, वो यहां तक लाएंगे जरूर लेकिन ये तभी संभव होगा जबकि उनके पास नगदी होगी। एक युवा आढ़ती सुरेंद्र कहते हैं कि वैसे तो कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन गन्ना मंडी में अनाज की आवक पचास फीसदी से ज्यादा कम हुई है।
 
छत्तीसगढ़ : धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में किसान परेशान हैं। सरकार ने इस साल समर्थन मूल्य पर 70 लाख मेट्रीक टन धान खरीदना का लक्ष्य रखा है। धान की खरीद भी 15 नवंबर से शुरु हो गई है लेकिन लाखों किसानों को एक ढेला भी नहीं मिला है।
 
शुरुआती दौर में तो नये नोटों की कमी के कारण सहकारी बैंकों को भुगतान के लिए सरकार ने पैसे ही नहीं दिए। अब जबकि सरकार का दावा है कि सहकारी बैंकों को कुछ रकम आवंटित कर दी गई है, तब भी मामला फाइलों में उलझा हुआ है। आरंग के किसान समधलाल साहू ने मंडी में 9 क्विंटल धान बेचा लेकिन उन्हें आज तक एक रुपये का भी भुगतान नहीं हुआ है।
 
समधलाल कहते हैं, 'नोटबंदी के कारण सबसे ज्यादा हम किसान परेशान हैं। घर की जरूरतों से लेकर उधारी तक सब कुछ चुकाने के लिए हम धान के पैसे पर ही निर्भर हैं। लेकिन लगता नहीं है कि आने वाले महीनों में भी पैसे मिल पायेंगे। अब आप अनुमान लगाएं कि हमारी हालत क्या होगी।'
 
गांव-कस्बा और शहर में घूम घूम कर सब्जी बेचने वाले तूता गांव के पंचराम मुश्किल में हैं। अपनी उगाई हुई सब्ज़ी तक तो ठीक है लेकिन उन्हें दूसरे बड़े व्यापारियों से भी सब्जी खरीदनी पड़ती है। नोटबंदी के चक्कर में उनकी पूरी बचत नगदी सब्ज़ी खरीदने में चली गई। लेकिन इसके उलट अपने छोटे-छोटे ग्राहकों को उन्हें उधार में सब्जियां बेचनी पड़ रही हैं।
 
पंचराम कहते हैं, 'पिछले महीने भर से हर गली मुहल्ले में पांच सौ-हज़ार रुपये का उधार देते आ रहा हूं और ये आंकड़ा अब बढ़ता ही जा रहा है। ग्राहकों को हरी सब्जियां बेच रहे हैं लेकिन हम सूखते जा रहे हैं।'
 
महाराष्ट्र : नागपुर में भी किसानों का यही हाल है। संतरे की खेती करने वाले पुरुषोत्तम दाखरे को आढ़तिये से 16 हजार रुपए का चेक मिला है लेकिन फिक्र इस बात की है कि पैसा बैंक अकाउंट में होते हुए भी हाथ में नहीं है। नागपुर शहर के क़रीब स्थित कलमना मार्केट यार्ड देश की बड़ी मंडियों में से एक है। यहां के संतरे देश भर में मशहूर हैं। लेकिन इस बार फसल कम हुई है।
 
पुरषोत्तम बताते हैं कि हर साल इस समय तक 200 मेटाडोर संतरे आ जाते हैं लेकिन इस बार 60 से 80 मेटाडोर संतरे ही आएं हैं। यानी आधे से भी कम। कम संतरे आने के कारण दाम बढ़ने चाहिए लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। पुरुषोत्तम को उम्मीद थी 30 से 35 रुपए किलो जरूर मिलेंगे लेकिन संतरे का दाम 20 रुपए किलो से ज्यादा नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि नोटबंदी के चलते व्यापारियों को नगद पैसा नहीं दे पा रहे हैं जिसका असर किसानों पर पड़ रहा है।
 
गणपत बावने कहने को बड़े किसान हैं और उन्हें 44 हजार का बिल मिला है, उन्होंने आढ़तिये से नगद मांगे तो उन्होंने मना कर दिया। चेक उन्होंने लिया नहीं, अब हाथ में बिल है लेकिन नगद का इंतजार है, बैंक से पैसे निकालने में वक़्त लगेगा। नए नोट नहीं मिल रहे लेकिन मज़दूरों को नए नोट चाहिए।
 
(बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए लखनऊ से समीरात्मज मिश्र, रायपुर से आलोक पुतुल और नागपुर से संजय तिवारी)