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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014 (11:26 IST)

न जाट, न मराठा! तो कैसे जीती बीजेपी?

न जाट, न मराठा! तो कैसे जीती बीजेपी? - bjp_success_strategy
- प्रोफेसर संजय कुमार सीएसडीएस

विधानसभा चुनावों से पहले ये कहा जा रहा था कि बीजेपी हरियाणा जैसे राज्यों में किस तरह से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। उस हरियाणा में जहां हर चौथा वोटर एक जाट है और पार्टी के पास एक भी जाट नेता नहीं है। जाट समुदाय हरियाणा की आबादी का 25 फीसदी है।


यही सवाल महाराष्ट्र को लेकर भी था जहां राजनीतिक पार्टियों की कामयाबी की चाभी मराठा मतदाताओं के पास रहती है। लेकिन नतीजों पर गौर करें तो 90 विधानसभा सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने 47 सीटें जीती हैं और 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 122 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

संजय कुमार का आकलन :
हरियाणा में तो पार्टी का सांगठनिक ढांचा भी बेहद कमजोर था और महाराष्ट्र में वो एक जूनियर पार्टनर की हैसियत से गठबंधन की साझीदार थी। बीजेपी न तो हरियाणा में कोई जाट चेहरा पेश कर पाई और न ही महाराष्ट्र में कोई मराठा नेता। दोनों राज्यों में यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।

लेकिन इस जीत के बाद पार्टी ने बड़ी चतुराई से इस कमजोरी को अपनी ताकत के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। बीजेपी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसकी जीत जातीयता की राजनीति से ऊपर उठकर है और उसे ये जनादेश परिवर्तन और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मिला है। जो अन्य राजनीतिक पार्टियां चुनावी फायदे के लिए अक्सर करती हैं। लेकिन हकीकत कुछ और है।

ध्रुवीकरण : बीजेपी को पहले इस बात का अंदाजा लग गया था कि वह हरियाणा में जाट मतदाताओं और महाराष्ट्र में मराठा वोटरों को अपनी रिझा पाने के लिहाज से कमजोर है। इसलिए पार्टी ने इन समुदायों के वोटरों को रिझाने की बजाय दूसरे मतदाताओं को अपनी तरफ करने की कोशिश की।

जो बात बीजेपी के पक्ष में सबसे ज्यादा रही, वो यह थी कि उसके खिलाफ लड़ रहा विपक्ष बंटा हुआ था और यही वजह थी कि महज एक तिहाई वोट पाने के बाद भी हरियाणा में पार्टी को बहुमत मिल गया और 29 फीसदी वोट पाकर वो महाराष्ट्र में सत्ता के करीब पहुंच गई। बीजेपी ने सारा जोर हरियाणा में गैर जाट मतदाताओं और महाराष्ट्र में गैर मराठा मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ने में लगाया।

रणनीति से फायदा : हरियाणा में जाट बहुल आबादी ज्यादातर राज्य के पश्चिमी इलाकों में है। बीजेपी ने इस इलाके में दूसरी जातियों के मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। मतदाताओं को ये इशारा भी दिया गया कि हरियाणा को पहली बार गैर जाट मुख्यमंत्री मिल सकता है। सीएसडीएस के चुनाव बाद के सर्वेक्षण से ऐसे संकेत भी मिले कि पार्टी को इस रणनीति से फायदा हुआ है।

हरियाणा में जाट मतदाता आईएनएलडी (44 फीसदी), कांग्रेस (24 फीसदी) और बीजेपी (केवल 17 फीसदी) के बीच बंट गए जबकि ब्राह्मण, पंजाबी खत्री और दूसरी अगड़ी जातियां बीजेपी के लिए लामबंद हो गईं।

ब्राह्मण मतदाताओं का 47 फीसदी, पंजाबी-खत्री वर्ग का 63 फीसदी और दूसरी अगड़ी जातियों के 49 फीसदी वोट बीजेपी के पक्ष में गिरे।

मतदाताओं का भरोसा : यादवों (41 फीसदी), गुज्जर (37 फीसदी) और अन्य पिछड़ी जातियों (40 फीसदी) ने भी कमल के निशान पर बटन दबाया।

पार्टी को सिख मतदाताओं (36 फीसदी) का भी समर्थन मिला है। उसे शिरोमणि अकाली दल की साझादीर होने का फायदा मिलता हुआ दिखता है, हालांकि अकाली दल का बादल परिवार राज्य में चुनाव के दौरान चौटाला परिवार के साथ दिखा।

हालांकि 2009 के चुनाव की तुलना में बीजेपी पर दलित मतदाताओं का भरोसा बढ़ा है लेकिन पार्टी उन्हें पूरी तरह से अपने पक्ष में मोड़ पाने में कामयाब नहीं हो पाई है। दलितों के वोट कांग्रेस, बीजेपी और इनलोद तीनों राजनीतिक पार्टियों को गए हैं। इसलिए गैर जाट मतदाताओं को रिझाने की बीजेपी की रणनीति राज्य के तीनों क्षेत्रों में कारगर रही लेकिन जाट बहुल पश्चिमी हरियाणा में ये दांव चल नहीं पाया।

बेहतर परिस्थितियां : हालांकि महाराष्ट्र की ओर देखें तो बीजेपी नेता विनोद तावडे और एकनाथ खडसे मराठा समुदाय से आते हैं लेकिन उनका कद दिग्गज मराठा नेता शरद पवार से मेल नहीं खाता।

किसी कद्दावर मराठा चेहरे की गैरमौजदूगी में बीजेपी को अपना सारा जोर गैर मराठा मतदाताओं को अपनी ओर मोड़ने में लगाना पड़ा और उसे इसमें कामयाबी भी मिली। महाराष्ट्र में बीजेपी पर अगड़ी जातियों ने पूरा भरोसा जताया है।

सर्वेक्षणों से ये पता चलता है कि अगड़ी जातियों के 52 फीसदी मतदाताओं और खेतीहर पिछड़ी जातियों के 42 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया है। अन्य पिछड़ा वर्ग की निचली जातियों के भी 34 फीसदी मत बीजेपी को मिले हैं।

चौंकोने मुकाबले वाले इस राज्य में अपने प्रतिद्वंदियों पर बढ़त बनाने के लिहाज से बीजेपी के लिए इससे बेहतर परिस्थितियां और नहीं हो सकती थी।