शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. assam election Bangali Muslim
Written By
Last Modified: शनिवार, 9 अप्रैल 2016 (13:24 IST)

'जब 7 घंटे में हज़ारों मुसलमान मार दिए गए थे'

'जब 7 घंटे में हज़ारों मुसलमान मार दिए गए थे' - assam election Bangali Muslim
-शकील अख़्तर
असम इन दिनों चुनावी रंग में रंगा हुआ है। 15 साल से कांग्रेस राज्य में लगातार सत्ता में रही है जबकि इस बार भारतीय जनता पार्टी ने परिवर्तन का नारा दिया है।
 
यह राज्य सुंदर पहाड़ों, उपजाऊ भूमि, नदियों और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है।
लेकिन यहां सबसे बड़ी ख़ासियत रंगारंग नस्लों की आबादी है। इसमें आहोम भी हैं, बोडो भी हैं, करबी भी हैं और खासी भी।
यहां बड़ी संख्या में बंगाली भी हैं और बिहारी भी। अलग-अलग पीढ़ियों के लोग अलग-अलग परिस्थितियों में राज्य में बसते चले गए। समय के साथ वे इसी राज्य के हो गए। उनमें से बहुत से जातीय समूहों ने अपनी परंपराओं और संस्कृति के साथ-साथ असम की संस्कृति और बोलचाल को भी अपना लिया।
 
असम भी पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह एक पिछड़ा राज्य है। दिल्ली की केंद्र सरकार ने आज़ादी के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों के साथ भेदभाव बरता जिसके चलते विकास और विनिर्माण में देश के अन्य राज्यों के मुक़ाबले वे काफी पीछे रह गए।
 
जो संसाधन थे वह बढ़ती आबादी के लिए कम पड़ने लगे। नई पीढ़ी राजनीतिक इच्छाओं और आकांक्षाओं के साथ परवान चढ़ रही थी। ऐसे में ग़रीबी और पिछड़ेपन ने कई आदिवासी समूहों को अपना हक़ हासिल करने के लिए सशस्त्र आंदोलन की ओर धकेल दिया।
 
समस्याओं का राजनीतिक हल न निकलने के कारण ग़रीबी के शिकार ये समूह एक दूसरे के ख़िलाफ़ आपस में ही संघर्षरत हो गए।
 
ऐसा ही एक आंदोलन 1980 के दशक में बांग्ला भाषियों के ख़िलाफ़ चला था। असम में लाखों बंगाली दशकों से बसे हैं। वे पूरे राज्य में फैले हुए हैं और उनका मूल पेशा कृषि है। असम की सीमा बांग्लादेश से मिली हुई है और वहां से भी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठ के ज़रिए लोग असम आते रहे हैं।
 
अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ चले आंदोलन के दौरान फ़रवरी 1983 में हजारों आदिवासियों ने नेली क्षेत्र के बांग्लाभाषी मुसलमानों के दर्जनों गांव को घेर लिया और सात घंटे के अंदर दो हज़ार से अधिक बंगाली मुसलमानों को मार दिया गया।
 
गैर आधिकारिक तौर पर यह संख्या तीन हज़ार से अधिक बताई जाती है। नेली के उस नरसंहार में राज्य की पुलिस और सरकारी मशीनरी के भी शामिल होने का आरोप लगा था।
 
हमलावर आदिवासी बंगाली मुसलमानों से नाराज़ थे क्योंकि उन्होंने चुनाव के बहिष्कार का नारा दिया था और बंगालियों ने चुनाव में वोट डाला था। यह स्वतंत्र भारत का तब तक का सबसे बड़ा नरसंहार था। सरकारी तौर पर मृतकों के परिजनों को मुआवजे के तौर पर पांच-पांच हज़ार रुपए दिए गए थे।
 
नेली नरसंहार के लिए शुरू में कई सौ रिपोर्ट दर्ज की गई थी। कुछ लोग गिरफ़्तार भी हुए लेकिन देश के सबसे जघन्य नरसंहार के अपराधियों को सजा तो एक तरफ उनके ख़िलाफ़ मुकदमा तक नहीं चला।
 
बंगाली विरोधी आंदोलन के बाद जो सरकार सत्ता में आई उसने एक समझौते के तहत नेली नरसंहार के सारे मामले वापस ले लिए। नेली के बाद भी असम में कई और नरसंहार हुए। सरकार ने आदिवासी चिंताओं के निराकरण और टकराव पर काबू पाने के लिए उनके प्रभुत्व वाले इलाक़ों में अलग आदिवासी स्वतंत्र कौंसिलें बनाई। लेकिन राज्य में अवैध बांग्लादेशी होने के शक़ और शुबहे में बंगाली नागरिकों का जीवन बहुत कठिन होता जा रहा है।
 
कांग्रेस ने नागरिकता के सवाल पर कभी कोई निर्णायक पक्ष नहीं लिया और न ही अवैध आप्रवासियों की पहचान निर्धारित करने के लिए कोई व्यापक क़दम उठाया।
 
राज्य में बंगाली मुसलमान शिक्षा और अर्थव्यवस्था में बहुत पिछड़े हैं और राजनीति में भी उनका प्रतिनिधित्व नहीं है। असम की बंगाली आबादी अनिश्चितता के माहौल में रह रही है।
 
भारत में गुजरात दंगों, मुंबई के दंगों और सिख विरोधी दंगों की हमेशा चर्चा होती है लेकिन 1984 के सिख दंगों से महज एक साल पहले हुए नेली नरसंहार के बारे में देश के लोग जानते भी नहीं।