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Last Modified: बुधवार, 26 नवंबर 2014 (12:12 IST)

अरब देशों में भी शरिया कानून का विरोध?

अरब देशों में भी शरिया कानून का विरोध? - arab_sharia_law_twitte
बीबीसी ट्रेंडिंग: क्या है लोकप्रिय और क्यों

अरब देशों के सोशल मीडिया में आजकल इस्लामी शरिया कानून हटाने की मांग पर बहस हो रही है। ट्विटर पर एक अरबी हैशटैग जिसका अर्थ है ' हम शरिया क्यों नहीं चाहते', 24 घंटे में पांच हजार से भी ज्यादा बार प्रयोग हुआ। यह हैशटैग खासतौर पर सऊदी अरब और मिस्र में प्रयोग हो रहा है।


बहस इस बात पर हो रही है कि अरब देशों के लिए इस्लामी शरिया कानून बेहतर है या आधुनिक न्याय व्यवस्था। स्विटजरलैंड में रहने वाली मिस्र की डॉक्टर अलिया गैड ने इस हैशटैग को शुरू किया। उन्होंने बीबीसी ट्रेंडिंग से कहा, 'मैं धर्म के खिलाफ नहीं हूं।'

राजनीतिक इस्लाम : डॉक्टर गैड धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल के खिलाफ हैं। राजनीतिक इस्लामी अक्सर मांग करते रहे हैं कि मुस्लिम देशों में न्याय व्यवस्था इस्लामी शरिया कानून के अनुसार होनी चाहिए।

डॉक्टर गैड कहती हैं कि वह नौजवानों के चरमपंथी विचारों के अपनाने के चलन से परेशान हैं। वो कहती हैं, 'इस्लामिक स्टेट का भौगोलिक विस्तार होने के साथ-साथ मानसिक विस्तार भी हो रहा है।'

इस हैशटैग के तहत एक व्यक्ति ने ट्वीट किया, 'इससे न्याय और समानता आई हो इसका एक भी उदाहरण नहीं मिलता।' हालांकि इस हैशटैग का प्रयोग करने वालों में ज्यादातर लोग शरिया कानून की बहुत ज्यादा तीखे स्वर में आलोचना करने से परहेज कर रहे थे।

शरिया की अलग-अलग व्याख्या : एक अन्य व्यक्ति ने ट्वीट किया, 'आईएस, सोमालिया और अफगानिस्तान में ये लागू हुआ और हम देख सकते हैं कि इसका क्या नतीजा हुआ।'

कई लोगों ने अलग-अलग देशों में शरिया की भिन्न-भिन्न व्याख्या पर भी सवाल उठाया। मिस्र के एक व्यक्ति ने लिखा, 'मुस्लिम ब्रदरहुड के लिए शरिया का एक मतलब है, सलाफियों के लिए दूसरा, आईएस, बोको हराम और अल-कायदा के लिए तीसरा।'

इस्लाम का विरोध! : कुछ लोगों को यह हैशटैग इस्लाम विरोधी भी लगा। एक व्यक्ति ने डॉ. गैड पर टिप्पणी की, 'आप शरिया नहीं चाहती क्योंकि आप समलैंगिकता, शराब और व्याभिचार चाहती हैं।'

डॉक्टर गैड के अनुसार उन्होंने यह हैशटैग इसलिए शुरू किया क्योंकि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य समझती हैं। वो कहती हैं, 'अगर मैं मिस्र में रह रही होती तो मुझमें इसकी आधी हिम्मत भी नहीं होती जितनी कि आज है।'

(मायी नोमान की रिपोर्ट पर आधारित)