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Last Modified: बुधवार, 4 मार्च 2015 (11:17 IST)

पांच मुद्दे जिन पर मचा है 'आप' में घमासान

पांच मुद्दे जिन पर मचा है 'आप' में घमासान - aam aadmi party
- जुबैर अहमद (दिल्ली)
 
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पार्टी के तीन साल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना साबित हो सकती है। अटकलें हैं कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को 'आप' के राजनीतिक मामलों की समिति से निकाला जा सकता है।
सोमवार को जब एक प्रेस कांफ्रेंस में 'आप' के नेता संजय सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'किसी को पार्टी में शामिल करने का फैसला या निकालने का निर्णय पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में होता है और चार तारीख को इस बैठक के बाद आपको पता चल जाएगा कि क्या होगा।'
 
योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के रिश्ते 'आप' संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ पिछले साल से नाजुक हैं। इन नेताओं के बीच मतभेद कई मुद्दों पर हैं जिनमें कुछ नए हैं और कुछ पुराने। ऐसे पांच मुद्दों पर एक नजर।
 
व्यक्ति केंद्रित होने का खतरा : योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण कथित तौर पर अरविंद केजरीवाल को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक पद पर नहीं बने देखना चाहते हैं।
 
उनका तर्क है कि दूसरी पार्टियों की तरह 'आप' को 'व्यक्ति केंद्रित' नहीं होने देना चाहिए। एक ही व्यक्ति के हाथ में ढेर सारे अधिकार देने से पार्टी की 'अलग पहचान' पर धब्बा लग सकता है।
 
संजय सिंह ने आरोप लगाया कि कुछ लोग अरविंद केजरीवाल को संयोजक पद से हटाने की साजिश कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि ऐसी कोशिशें कौन कर रहा है।
पिछले साल आम चुनाव में हार के बाद भी इस मुद्दे पर केजरीवाल और यादव के बीच ठन गई थी। तब यादव ने एक चिट्ठी में केजरीवाल के इर्द गिर्द सारे अधिकार केंद्रित होने पर ऐतराज जताया था।
 
उस समय केजरीवाल ने इसे स्वीकार करते हुए साथ मिलकर काम करने का एलान किया था। लेकिन अब वही मुद्दा एक बार फिर सामने आया है।
 
पार्टी के विस्तार पर मतभेद : पार्टी के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव पार्टी का दूसरे राज्यों में विस्तार चाहते हैं। उन्होंने चार राज्यों में पार्टी के विस्तार की बातें कही थीं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर इसे खारिज कर दिया था।
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद एक भाषण में उन्होंने कहा था, 'हमारे कुछ नेता विस्तार की बात कर रहे हैं। मैं कहता हूं ये सब गलत है। हम केवल दिल्ली में काम करेंगे।'
 
पार्टी के कुछ नेताओं के अनुसार, आम चुनाव से पहले भी केजरीवाल केवल 50 से 60 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन योगेंद्र यादव के सुझाव के आगे वो झुक गए और इसका भयानक नतीजा सबके सामने है।
 
इस मुद्दे पर पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति के अधिकतर सदस्य केजरीवाल के साथ हैं।
 
टिकट पर टकराव : ये आरोप है कि हालिया दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कुछ ऐसे लोगों को टिकट दिए हैं जिनकी कथित रूप से आपराधिक पृष्ठभूमि थी। पार्टी ने साफ किया था कि सबका बैकग्राउंड कई बार जांचने के बाद टिकट बांटे गए थे।
 
उस समय भी यादव और प्रशांत भूषण ने कथित तौर पर इस पर ऐतराज जताया था और भूषण ने तो कुछ उम्मीदवारों को अपना सहयोग देने से भी इंकार कर दिया था। इसके बाद पार्टी ने दो उम्मीदवारों को बदल दिया था। आज ये मुद्दा पार्टी में चर्चा का विषय नहीं है, लेकिन प्रशांत भूषण इसे भी पार्टी फोरम में उठा रहे हैं।
 
आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता : प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव पार्टी के बुनियादी आदर्श पर क़ायम रहने के पक्ष में हैं। वो पार्टी के अंदरूनी मामलों में आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता की कसौटी पर खरा देखने के हक में हैं।
 
बताया जाता है कि उनकी शिकायत है कि कई मामलों में पार्टी के फैसले पार्टी के इन सिद्धांतों को अलग रख कर किए जाते हैं। लेकिन केजरीवाल के करीबी नेताओं के अनुसार, केजरीवाल सबकी बातें सुनते हैं और सर्वसहमति से फैसले किए जाते हैं।
 
हां, कुछ मामलों में केजरीवाल को संयोजक के नाते किसी अहम मुद्दे पर आखिरी फैसला लेने का अधिकार है।
 
अहम का टकराव : पार्टी के एक नेता आशुतोष मौजूदा घटनाक्रम को विचारों का टकराव मानते हैं। उन्होंने सोमवार को ट्वीट कर कहा, 'आप में मंथन का वक्त। ये दो तरह के विचारों के बीच मतभेद है। एक तरफ हैं कट्टर वामपंथी विचारधारा जो कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करती है तो दूसरी ओर विकास में यकीन करने वाली विचारधारा।'
 
लेकिन विचारधारा में मतभेद के इलावा ये अहम का टकराव भी है। केजरीवाल पार्टी के स्टार हैं, लेकिन यादव इसकी रूह हैं। पार्टी को आगे बढ़ाने में दोनों का हाथ है।
 
केजरीवाल पार्टी का चेहरा हैं और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जीत ने उन्हें पार्टी के अंदर और बाहर और भी मजबूत किया है। वहीं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पार्टी में अकेले पड़ चुके हैं। बुधवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी ये साफ दिख सकता है।