शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By गायत्री शर्मा

सँवारें अधूरे बचपन को

आपका सहयोग बदलेगा हजारों जिंदगी

सँवारें अधूरे बचपन को -
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बच्चे ईश्वर की वह सुंदर कृति है, जो मासू‍मियत और सच्चाई की माटी से निर्मित है। बालमन की कोमल भावनाएँ वह कुछ कर जाती है, जो शायद हम जैसे युवा और बुद्धिमान व्यक्ति शायद ही कर पाएँ।

बच्चों के प्रेरणास्रोत चाचा नेहरू का भी सपना था कि बच्चों के रूप में एक ऐसी भावी पौध विकसित की जाए, जो इस देश को नित नई ऊँचाइयों पर ले जाए। हाल ही में प्रदर्शित फिल्म 'तारे जमीन पर' की लोकप्रियता से ही स्पष्ट है कि बच्चे क्या कुछ कर सकते हैं। बस जरूरत है उन्हें सही दिशा-निर्देशन देने की।

* प्यार का अहसास बदल दे जिंदगी
बच्चों को हमारे प्यार व स्नेह की जरूरत होती है। इससे आप बच्चों का दिल आसानी से जीत सकते हैं। आपका प्यार भटकाव की राह पर चल रहे एक बच्चे के लिए नवजीवन की शुरुआत की प्रेरणा बन सकता है।

बच्चा अपना हो या पराया, आपका प्यार उसे बदल सकता है। आज इस देश के हजारों बच्चे अपना पेट पालने की खातिर सड़कों पर अखबार, चाय व फूल बेचते हैं। महज दो रुपए की खातिर आपकी कार साफ करने वाला बच्चा भी तो आप ही के बच्चे की उम्र का है तो फिर उसे दुत्कार और अपने बच्चों को प्यार क्यों?

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आप चाहें तो ये सड़कों पर भटकते बच्चे भी आपके बच्चों की तरह पढ़-लिखकर संस्कारवान बन सकते हैं। आपकी प्रेरणा व सहयोग इनकी सपनीली जिंदगी में हकीकत के रंग भर सकते हैं। इन्हें भी जादू की झप्पी दें और अपनेपन का एक ऐसा अहसास दें, जो उनकी जिंदगी बदल दे।

* इन्हें पढ़ाएँ संस्कारों का पाठ
बच्चे मान-अपमान, ऊँच-नीच कुछ नहीं समझते। इन्हें तो जो सिखाया जाता है ये उसी का अनुसरण करते हैं। बालमन इतना कोमल होता है कि आप उसमें जैसे संस्कार डालेंगे आप वैसा ही पाएँगे। आजकल के बच्चे माँ-बाप का सम्मान नहीं करते यह कहना सरासर बच्चों पर इल्जाम लगाना है। उनके माँ-बाप जैसा अपने बड़े-बुजुर्गों के साथ करते हैं या अपने बच्चों को जैसे परिवेश में पालते हैं बच्चे वही इस समाज को लौटाते हैं।

यदि आप बच्चों को बचपन से ही संस्कारों व नैतिक शिक्षा व संस्कारों का पाठ पढ़ाएँगे तो निश्चित ही आपके बच्चे भविष्य में एक जिम्मेदार नागरिक बनकर अपने परिवार व देश का नाम रोशन करेंगे।

* बच्चों को सिखाना पड़ता है
आजकल आए दिन हम सुनते हैं कि 9-10 साल के बच्चे ने गुस्से में आकर अपने ही सहपाठी को मौत के घाट उतार दिया या किसी कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार जैसा घृणित कृत्य किया। इनमें बच्चों का कोई कसूर नहीं है। कसूर तो उन लोगों का है जो बच्चों को लालच देकर अपराधों की अँधेरी गलियों में भटकने के लिए धकेल देते हैं।

बच्चे एक अच्छा जरिया होते हैं अपराधों को अंजाम देने का। इन पर किसी को आसानी से शक भी नहीं होता है और इनकी आँखों में भविष्य में बड़ा आदमी बनने के सपने भी होते हैं शायद इसीलिए कुछ असामाजिक तत्व बच्चों को अपना हथियार बनाते हैं। कानून के सख्त निर्देशों
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के बाद भी आज विश्व के 0.6 मिलियन बच्चे किसी न किसी अवैध कारोबार में लिप्त हैं वहीं लगभग 1.8 मिलियन बच्चे देह व्यापार या अश्लील चित्रण में हैं।

क्यों एक ही परिवार में पले दो बच्चों में से एक बच्चा बड़ा होकर आई.पी.एस. ऑफिसर बनता है तो दूसरा अंडरवर्ल्ड का डॉन? दोनों में अंतर केवल परवरिश और परिवेश का है। आपको ह‍ी अपने बच्चों को सही-गलत का ज्ञान देना होगा। इसी के साथ ही इस बात का भी ख्‍याल रखना होगा कि आपके बच्चे ‍किसके साथ उठते-बैठते व खेलते हैं।

चलो आप और हम करें एक ऐसी ही पहल, जिससे इस देश के नौनिहालों की ‍जिंदगी सँवरें। हमारी सोच और हमारा प्रयास इस देश की तस्वीर बदल सकता है तो क्यों न आप और हम फुटपाथ पर सड़कों की धूल में, ड्रग के नशे में और कचरे के ढेर में अपने भविष्य को ढूँढते इन बच्चों को एक नई दिशा दिखाएँ तथा इनका हाथ थामें।