मंगलवार, 19 मार्च 2024
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Written By WD

वटी व गोलियाँ

वटी व गोलियाँ -
दंतोदभेद गदान्तक रस : बच्चों के दांत निकलने के समय हरे, पीले दस्त होने, दूध गिरने, ज्यादा रोने-चिल्लाने, पेट में दर्द, अपच, ज्वर
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आदि की शिकायतों पर लाभकारी। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती सुबह-शाम।


दशांग लेप : सब प्रकार के शोथ (सूजन), दर्द, विसर्प, विस्फोट (फफोले), दुष्टब्रण आदि रोगों की प्रसिद्ध औषधि। मात्रा जल में पीसकर गरम कर लेप लगाना चाहिए।

दुग्धवटी (शोथ) : सूजन, मंदाग्नि, पांडू रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।

दुग्धवटी (संग्रहणी) : प्रवाहिका, संग्रहणी तथा अतिसार में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।

नवसार सत्व : मंदाग्नि, बदहजमी, भूख न लगना, शूल रोग, यकृत, प्लीहा, उदर रोग आदि पर। मात्रा 2 से 4 रत्ती।

नागार्जुनाभ्र रस : हृदय की दुर्बलता, घबराहट, अनिद्रा, धड़कन आदि रोगों में। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।

नाराच रस : तेज दस्तावर है। गुल्म, शूल रोग, अफरा, कब्जियत, प्लीहा, यकृत वृद्धि आदि रोगों पर यह दवा पेट साफ करती है। मात्रा 1 गोली शहद, अदरक अथवा गर्म जल से।

नित्यानंद रस : श्लीपद रोग (फीलपांव) की प्रसिद्ध औषधि। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।

नृपति वल्लभ रस : अग्निमांद्य, आमदोष, उदर शूल, अफरा, पतले, दस्त आदि अनके रोगों में उपयुक्त। मात्रा 2 से 4 गोली शहद।

प्रताप लंकेश्वर रस : प्रसव के बाद ज्वर, खांसी, अतिसार, वायु विकार, मंदाग्नि, सन्निपात, बवासीर आदि में। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद में।

प्रदरांतक रस : असाध्य प्रदर रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती अशोकारिष्ट या शहद से।

प्रवाल पंचामृत रस (मौक्तिकयुक्त) : उदर रोग, गुल्म, अम्लपित्त, यकृत, प्लीहा वृद्धि, मंदाग्नि, मूत्र विकार, मानसिक विकार, हृदय रोग, अजीर्ण, श्वास आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।

पीपल चौसठ प्रहरी : पुराने बुखार, श्वास, खांसी आदि में। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं स्वर्ण यसंत मालती व सितोपलादि चूर्ण के साथ।

पीयूषवल्ली रस : संग्रहणी, अतिसार तथा अन्य उदर रोगों में। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।

पुष्पांजन रस : व्रण (घाव), खुजली, छाजन व अन्य चर्म रोगों में। नारियल के तेल के साथ मिलाकर लगाना चाहिए।

पुष्पधन्वा रस : आयु व शक्ति वर्द्धक, धातु पौष्टिक, वीर्यवर्द्धक तथा बाजीकर। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद अथवा मक्खन में।

बहुमूत्रांतक रस : प्रमेह, मूत्ररोग, अधिक और बार-बार पेशाब का होना, मधुमेह, रक्त की कमी व दुर्बलता में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद से।

ब्राह्मी वटी : बुद्धि व स्मरण शक्ति वर्द्धक। दिमाग को ताकत देती है। दिमागी कमजोरी उत्पन्न रोगों पर लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद से।

बोलबद्ध रस : खूनी बवासीर, नकसीर, खाँसी या दस्त आदि किसी भी रोग में खून आने पर लाभकारी। मात्रा 1-1 गोली दिन में 2-3 बार।

बंगेश्वर रस : धातु, पौष्टिक, बल स्फूर्ति व कांतिदायक, शक्तिवर्द्धक व असंयमजनित रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह व सायं शहद व मक्खन से।

बंगेश्वर रस वृहत्‌ (स्वर्णयुक्त) : नई पुरानी सभी तरह की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। परम पौष्टिक और ओजवर्द्धक है। मात्रा 1/2 रत्ती सुबह व शाम मक्खन या शहद के साथ।

मधुमालिनी वसंत : बलवर्द्धक, पुष्टिकारक, धातुपोषक, जीर्ण ज्वर तथा धातुविकार व प्रदर नाशक, गर्भवती स्त्रियों को विशेष लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह व शाम दूध अथवा शहद से।

मन्मथ रस : बलवर्द्धक, वीर्यवर्द्धक, बाजीकार। मात्रा 2 से 4 रत्ती दूध से।

मरिचादि वटी : सब प्रकार के खाँसी पर फायदा करती है। विशेषकर जब कफ चिपकने वाला होने से जल्दी न निकले। मात्रा 6 से 8 गोली तक दिन भर मुँह में डालकर चूसना चाहिए।

महावात विध्वंस रस : अनेक प्रकार के वातरोग, अंगों की आवश्यकता, आमवात आदि रोगों पर लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

महाशंख वटी : अजीर्ण, पेट दर्द, अफरा, आमदोष, संग्रहणी, अतिसार, मंदाग्नि गुल्म आदि में। मात्रा 1 से 2 गोली पानी से।

महालक्ष्मी विलास रस (स्वर्णयुक्त) : फेफड़े की दुर्बलता, बार-बार होने वाला जुकाम, नजला, कास, श्वास आदि में लाभकारी तथा बलवर्द्धक। मात्रा 1 से 2 रत्ती दूध अथवा शहद से।

मुक्ता पंचामृत : पुराना बुखार, कास, श्वास, फेफड़े की कमजोरी, राजयक्षमा आदि में लाभदायक तथा बलवर्द्धक। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद या मक्खन में।

मृगांक रस (स्वर्णयुक्त) : पुरानी खांसी, बुखार, कफयुक्त खाँसी, रक्त मिश्रित खाँसी, रक्त पित्त आदि रोगों में लाभकारी पुष्टिकारक, रक्त व ओजवर्द्धक। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।

मृत्युंजय रस (महा) : कफ प्रधान बुखारों पर, खाँसी, ग्रंथिक, सन्निपात, मलेरिया आदि रोगों पर लाभकारी। इसके प्रयोग से मल-मूत्रावरोध दूर होता है और पसीना आकर बुखार उतर जाता है। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

मृत्युंजय रस (स्वर्णयुक्त) : सब तरह के बुखार, श्वास, खाँसी, मलेरिया, सन्निपात आदि पर लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम शहद व अदरक से।

योगेन्द्र रस (स्वर्णयुक्त) : पुराने और जटिल वात विकार, शरीर में वायु की विकृति होने से अनिद्रा और बेचैनी, अंगों की अशक्तता, प्रमेह, बहुमूत्र, इंद्रिय दौर्बल्य, स्नायु दौर्बल्य आदि पर। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती दिन में 2-3 बार।

रजः प्रवर्तिनी वटी : स्त्रियों का मासिक धर्म साफ न होना, कष्ट होना तथा रुका हुआ मासिक धर्म इससे खुल जाता है। हाथ, पैर की जलन, कमर और पेडू का दर्द आदि कष्टों को दूर करती है। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म पानी से।

रस राजरस (स्वर्णयुक्त) : सब प्रकार के वात रोग, अंगों की अशक्तता, अपतंत्रक, अक्षेपक, कानों में आवाज होना, सिर में चक्कर आना आदि कठिन वात रोगों में। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद से।

रस माणिक्य : सब प्रकार के रक्त एवं चर्मरोग, कुष्ट, वातरक्त, भगंदर, उपदंश आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद या मक्खन से।

रस पीपरी : बाल रोगों की प्रसिद्ध दवा, ज्वर, खाँसी, सर्दी, जुकाम, उल्टी, पतले दस्त तथा दाँत उठने की तकलीफ को दूर करती है। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती सुबह-शाम।