मंगलवार, 19 मार्च 2024
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Written By WD

गुणकारी रतिवल्लभ पाक व चूर्ण

गुणकारी रतिवल्लभ पाक व चूर्ण -
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आयुर्वेद में एक से बढ़ कर एक उत्तम गुणकारी योग मौजूद हैं, जिनका सेवन शीतकाल के दिनों में करके शरीर को पुष्ट, सबल और चुस्त-दुरुस्त रखा जा सकता है, ऐसा ही एक श्रेष्ठ पौष्टिक योग है 'रतिवल्लभ पाक'।

आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में रसायन और वाजीकरण योगों का यथासमय सेवन करना उपयोगी बताया गया है। इनको स्वस्थ और व्याधिरहित सामान्य अवस्था में भी सेवन किया जा सकता है, क्योंकि रसायन गुण वाले पदार्थ, योग आदि शक्ति देने वाले, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले और वृद्धावस्था के लक्षणों को दूर रखने वाले होते हैं। रसायन योग शरीर के बल की क्षतिपूर्ति करने वाले होते हैं और वाजीकरण योग यौन शक्ति और क्षमता बढ़ाने वाले तथा नपुंसकता दूर करने वाले होते हैं।

यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि आयुर्वेदिक योग बहुगुण (अनेक गुण और प्रभाव करने वाले) तथा बहुकल्प (काढ़ा, चूर्ण, वटी या आसव आदि अनेक रूप वाले) होते हैं, इसलिए ये मूल व्याधि को दूर करने के साथ ही अन्य रोगों को दूर करने के साथ ही अन्य रोगों को दूर करने और शरीर में बल की वृद्धि करने वाले होते हैं। यहाँ एक उत्तम गुणकारी, रसायन और वाजीकारक योग 'रतिवल्लभ पाक' का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है जो स्त्री-पुरुष दोनों के ही लिए सेवन योग्य और समान रूप से उपयोगी है।
यह बहुउद्देशीय पाक कई प्रकार के लाभ करता है। विवाहित पुरुषों के लिए यह बलवीर्यवर्द्धक, यौनशक्ति दायक, स्तम्भनशक्ति बढ़ाकर शीघ्रपतन की स्थिति समाप्त करने वाला और पुष्टिकारक योग है। मधुमेह को छोड़कर अन्य प्रमेहों और वातजन्य विकारों को नष्ट करने वाला है।


घटक द्रव्य : बबूल का गोंद 500 ग्राम, सौंठ 100 ग्राम, पीपल और पीपलामूल 50-50 ग्राम, लौंग, जायफल, जावित्री, मोचरस, शुद्ध शिलाजीत पाँचों 25-25 ग्राम, काली मिर्च, दालचीनी, तेजपान, नागकेसर, इलायची, प्रवाल भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, वंग भस्म सब 10-10 ग्राम। केशर 5 ग्राम, घी 250 ग्राम शक्कर 2 किलो और मेवा आवश्यक मात्रा में।

निर्माण विधि : गोंद को साफ करके खूब बारीक कूट-पीस लें और छानकर कढा़ई में घी गर्म कर तलकर निकाल लें। सौंठ, पीपल व पीपलामूल को बारीक पीस छानकर रख लें। केसर व भस्मों को अलग रखकर शेष लौंग आदि द्रव्यों को एक साथ कूट-पीसकर बारीक करके छान लें और अलग रख दें। बादाम, पिस्ता, किशमिश, खोपरे का बूरा सब बारीक कटे हुए तैयार कर लें। केशर को पत्थर के साफ खरल में गुलाब जल के साथ अच्छा घोट लें। चारों भस्मों को साफ की हुई खरल में डालकर घुटाई करके मिला लें।

इनकी तैयारी करके शकर की एक तार की चाशनी बनाकर, तले हुए गोंद और सोंठ आदि तीनों का चूर्ण मिलाकर चाशनी में डाल दें और आंच मन्दी कर दें। अब भस्में डालकर हिलाते चलाते रहें। चाशनी थोड़ी गाढ़ी और जमने लायक हो जाए, तब नीचे उतार कर थोड़ी ठण्डी करके लौंग आदि सब द्रव्यों का चूर्ण डालकर हिलाते चलाते रहें और केशर डालकर अच्छी तरह मिलाएं। अब थाली में घी का हाथ लगाकर इसे फैलाकर डाल दें और कटे हुए मेवे फैलाकर डाल दें। जब पाक जम जाए, तब बर्फी काटकर कांच की बर्नी में भर लें।

मात्रा और सेवन विधि : अपनी पाचन शक्ति के अनुसार 25 ग्राम से 50 ग्राम वजन में, सुबह खाली पेट खूब चबा-चबाकर खाएं और ऊपर से मीठा कुनकुना दूध पिएं।
लाभ : यह बहुउद्देशीय पाक कई प्रकार के लाभ करता है। विवाहित पुरुषों के लिए यह बलवीर्यवर्द्धक, यौनशक्ति दायक, स्तम्भनशक्ति बढ़ाकर शीघ्रपतन की स्थिति समाप्त करने वाला और पुष्टिकारक योग है। मधुमेह को छोड़कर अन्य प्रमेहों और वातजन्य विकारों को नष्ट करने वाला है। महिलाओं के प्रदर रोग, प्रसूति रोग (सुआ रोग) और शरीर की दुर्बलता को दूर करने वाला है।

प्रसूता स्त्री के लिए तो यह अमृत समान है, क्योंकि यह प्रसव होने के बाद आई कमजोरी को दूर कर स्त्री के शरीर को सबल बनाकर उसके स्वास्थ और सौन्दर्य की खूब वृद्धि करता है। यह बना बनाया बाजार में नहीं मिलता, इसलिए घर पर ही बनाकर तैयार करना होगा। पूरे शीतकाल में सेवन करें और इसके गुणों का लाभ उठा कर मौज करें।

रतिवल्लभ चूर्ण
अनुचित ढंग से आहार-विहार और कामुक चिंतन करने, अप्राकृतिक ढंग से यौन क्रीड़ा करने और सहवास में अति करने का दुष्परिणाम यह होता है कि युवक ठीक से जवान होने से पहले ही बूढ़ों जैसी निर्बलता और असमर्थता का अनुभव करने लगते हैं। ऐसे पीड़ित पुरुषों के लिए एक अति उपयोगी और लाभकारी योग 'रति वल्लभ चूर्ण' का परिचय प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य- सकाकुल मिश्री 80 ग्राम, बहमन सफेद, बहमन लाल, सालम पंजा, सफेद मूसली, काली मूसली और गोखरू- ये 6 द्रव्य 40-40 ग्राम, छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल- चारों द्रवय 20-20 ग्राम।

निर्माण विधि- सब द्रव्यों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें और तीन बार छानकर बर्नी में भर लें।

मात्रा और सेवन विधि- एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच पिसी मिश्री मिलाकर, मिश्री मिले दूध के साथ सुबह खाली पेट व रात को सोते समय कम से कम दो मास तक लें।

उपयोग- यह एक सरल और अपेक्षाकृत सस्ता नुस्खा होते हुए भी बहुत यौन शक्तिवर्द्धक, उत्तेजक और बल पुष्टिदायक योग है। इसके नियमित 2-3 मास तक सुबह शाम सेवन करने से वीर्य गाढ़ा और पुष्ट होता है, जिससे शीघ्रपतन और नपुंसकता की शिकायत दूर होती है। शरीर व चेहरा पुष्ट व तेजस्वी होता है।

यह उष्ण प्रकृति का और अत्यन्त कामोत्तेजक योग है, इसलिए गर्म प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। जो युवक गलत ढंग से यौन क्रीड़ा द्वारा वीर्यनाश करके नपुंसकता के शिकार हो चुके हों उन्हें इस नुस्खे का सेवन 2-3 मास तक अवश्य करना चाहिए।