गुरुवार विशेष : इन मंत्रों से दूर होगा गुरु का दोष
गुरु के अनिष्टकारी प्रभाव से बचाएंगे निम्न मंत्र
* कैसे करें गुरु को प्रसन्न
* वैभव, लक्ष्मी और सम्मान दिलाते हैं गुरु
देवगुरु बृहस्पति (गुरु) धनु और मीन राशियों का स्वामी ग्रह है। सामान्यत: गुरु शुभ फल देता है किंतु पापी ग्रह यदि उसके साथ विराजमान हो जाए अथवा गुरु अपनी नीच राशि में स्थित हो तो यही गुरु जातक के लिए अनिष्टकारी हो जाता है अर्थात् अशुभ फल देने लगता है जिससे जातक आर्थिक, मानसिक, शारीरिक एवं पारिवारिक रूप से परेशान हो जाता है। यदि गुरु के अनिष्टकारी प्रभाव से आप परेशान हैं तो बृहस्पति का मूल मंत्र और शांति पाठ आपके लिए कल्याणकारी हो सकता है।
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बृहस्पति का मूल मंत्र
।। ॐ बृं बृहस्पतये नम:।।
बृहस्पति (गुरु) शांति पाठ
गुरु ज्ञान, प्रतिभा, वैभव, लक्ष्मी और सम्मान के प्रदाता हैं। ग्रह रूप में इनकी प्रतिकूल दृष्टि होने पर मनुष्य धन-संपत्ति आदि से हीन होकर बहुत दुख भोगता है। इनकी आराधना एवं पूजा से सभी प्रकार का सुख एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
विनियोग मंत्र
ॐ अस्य बृहस्पति नम: (शिरसि)ॐ अनुष्टुप छन्दसे नम: (मुखे)ॐ सुराचार्यो देवतायै नम: (हृदि)ॐ बृं बीजाय नम: (गुहये)ॐ शक्तये नम: (पादयो:)ॐ विनियोगाय नम: (सर्वांगे)
करन्यास मंत्र
ॐ ब्रां- अंगुष्ठाभ्यां नम:।ॐ ब्रीं- तर्जनीभ्यां नम:।ॐ ब्रूं- मध्यमाभ्यां नम:।ॐ ब्रैं- अनामिकाभ्यां नम:।ॐ ब्रौं- कनिष्ठिकाभ्यां नम:।ॐ ब्र:- करतल कर पृष्ठाभ्यां नम:।
करन्यास के बाद नीचे लिखे मंत्रों का उच्चारण करते हुए हृदयादिन्यास करें:-
ॐ ब्रां- हृदयाय नम:।ॐ ब्रीं- शिरसे स्वाहा।ॐ ब्रूं- शिखायैवषट्।ॐ ब्रैं कवचाय् हुम।ॐ ब्रौं- नेत्रत्रयाय वौषट्।ॐ ब्र:- अस्त्राय फट्।
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गुरु का ध्यान मंत्र