मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

शिव का शिवयोग

धारणा, ध्यान और समाधि

शिव का शिवयोग -
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भगवान शंकर भोलेनाथ का शिवयोग तांत्रिकों के लिए ही नहीं सभी के लिए सि‍द्ध और लाभदायक हो सकता है। इसमें व्यक्ति योग के कठिन आसन, क्रिया और मुद्राओं से बच जाता है। शिव योग को तंत्र या वामयोग भी कहते हैं। शिवयोग में धारणा, ध्यान और समाधि अर्थात योग के अंतिम तीन अंग का ही प्रचलन अधिक रहा है।

शिव कहते हैं 'मनुष्य पशु है'- इस पशुता को समझना ही योग और तंत्र का प्रारम्भ है। योग में मोक्ष या परमात्मा प्राप्ति के तीन मार्ग हैं- जागरण, अभ्यास और समर्पण। तंत्रयोग है समर्पण का मार्ग। शिव का अर्थ है अनंत तथा योग का मतलब है जुड़ना। अनंत से जुड़ने को ही शिव योग कहते हैं।

शिव का दर्शन : शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वह सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में ज‍ीयो, वर्तमान में जीयो अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है। योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के '‍विज्ञान भैरव तंत्र' और 'शिव संहिता' में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। वाम योग की एक शाखा हठयोग भी है।

भगवान शिव कहते हैं- 'वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:' अर्थात वाम मार्ग अत्यन्त गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है।-मेरुतंत्र