बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By WD

हरियाली से सरोबार केरल

हरियाली से सरोबार केरल -
- ज्योति जैन

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जब यह तय हो गया कि छुट्टियों के दस दिन बिताने के बाद केरल जाना है तो वहाँ के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी। केरल घूमकर आए सभी लोगों ने वहाँ की खूबसूरती की तारीफ ही की, विशेषकर अलप्पी व थेकड़ी की सुंदर हरियाली की।

सफर शुरू हुआ फ्लाइट से। मुंबई में प्रफुल्ल भाई (हमारे मित्र) ने कहा, जो हमें एयरपोर्ट तक छोड़ने आए थे, कि चूँकि पहली बार प्लेन में बैठ रहे हैं तो कम से कम 'टू विंडो' टिकट के काउंटर पर जाकर बोलना क्योंकि जब आप कोचिन उतरेंगे तो वह ऊपर से बेहद खूबसूरत दिखता है।

केरल में हमारा पहला पड़ाव मुन्नार था। वह एक हिल स्टेशन है, उसके बारे में इंदौर से केवल इतना ही पता था, लेकिन प्रफुल्ल भाई के मुँह से जब सुना कि मुझे आपसे ईर्ष्या हो रही है क्योंकि आप मुन्नार जा रहे हो और मैं यहाँ बॉम्बे में पड़ा हूँ। उन्होंने मुन्नार देखा हुआ था। तब लगा कि हम वाकई किसी खूबसूरत जगह जा रहे हैं। खैर... उनसे विदा लेकर प्रथम बार प्लेन में बैठे। बादलों के बीच प्लेन बिलकुल स्थिर लग रहा था। चारों ओर बस बादल ही बिखरे थे।
  जब यह तय हो गया कि छुट्टियों के दस दिन बिताने के बाद केरल जाना है तो वहाँ के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी। केरल घूमकर आए सभी लोगों ने वहाँ की खूबसूरती की तारीफ ही की, विशेषकर अलप्पी व थेकड़ी की सुंदर हरियाली की।      


एक घंटा पैंतीस मिनट जल्दी से बीत गए और जैसे ही घोषणा हुई कि हम कोचिन पहुँचने वाले हैं, मैंने खिड़की से नीचे की ओर देखा, ‍तो लगा कि हरा गलीचा बिछा है और कहीं-कहीं दो-चार छोटे पानी के धब्बे हैं। तभी ऐसा लगा हरी घास पर कोई चमकीला पतला-सा कीड़ा रेंग रहा है।
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वह ट्रैन थी जिसकी छत सूर्य के रिफ्लेक्शन से चमक रही थी। थोड़ा-सा नीचे आने पर छोटे-छोटे घर ऐसे लग रहे थे मानो बच्चों ने बिल्डिंग सेट से कुछ कॉलोनी बना दी हो और इन सबके बीच कुदरती खूबसूरती पलक ही नहीं झपकने दे रही थी।

इतनी हरियाली हमने पहले कभी नहीं देखी थी खैर..... कोचिन में प्लेन से उतरते ही क्वालिस के साथ ड्राइवर तैयार था और फिर शुरू हुआ मुन्नार का सफर। गाड़ी में से झाँकते हुए जिधर भी निगाहें जा रही थी। केवल और केवल हरी वसुंधरा ही नजर आ रही थी। तभी पहाड़ों पर चढ़ते-चढ़ते आसपास बादल नजर आने लगे एक बिलकुल अलग अनुभव होने जा रहा था। जैसे-जैसे मुन्नार करीब आने लगा पहले तो मोबाइल बंद हो गए। फिर पूरी घाटी को बादलों ने हौले से ढँक लिया मानो मलमल की हल्की चादर फैल गई हो। गाड़ी में से सड़क पर 6 फुट की दूरी पर भी कुछ नजर नहीं आ रहा था।

गाड़ी‍ की खुली खिड़की से बादल हौले से चेहरे को छू रहे थे और कुछ पलों को ऐसा लगा मानो एक बार फिर प्लेन में बैठ गए हो। गहरी घाटी में बादल, सामने बादल, बगल में बादल सिर्फ बादल ही बादल और दस ही मिनट में मानो धुँध छँट गई और फिर प्रकृति अपनी हरी चुनर ओढ़े ‍िखलखिला रही थी। धरती को इतना खूबसूरत मैंने पहली बार देखा। कुछ दृश्य ‍तो कमरे में कैद कर लाई लेकिन आँखों में सारे दृश्य ऐसे कैद हुए वे जो भूलाएँ नहीं भूलेंगे।
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चार घंटे के सफर में प्रकृति की हर छटा देख ली। हर रंग देखा सड़क के ‍दोनों और पाव कि.मी. का टुकड़ा भी ऐसा नहीं था जहाँ हरियाली न हो। ढ़ेर सारे सुंदर फूल वहाँ क‍ी धरती की खुशहाली की कहानी झूम-झूम कर कह रहे थे। चारों ओर हरी-हरी घाटियाँ (जहाँ चाय के बगीचे अधिक थे) कभी हरी-भरी नजर आती तो कभी एक ही पल में बादलों से ढँक जाती चूँकि हम जून के आखिर में वहाँ थे- अत: कभी-कभी फुरफुरी बारिश भी होने लगी कुल मिलाकर प्रकृति से यही संदेश आ रहा था कि यहाँ कि वसुधा समृद्ध है, क्योंकि यहाँ हरियाली है।

रिसॉर्ट पहुँचने पर भी कमरे की खिड़की खोलते ही ऐसा लगा मानो सामने कोई बड़ा-सा वॉलपेपर लगा है, जिसमें हल्के व गहरे रंगों की पर्वत माला है जिस पर घने वृक्ष है, बीच में बहती नदी/झील रंगबिरंगे बिखरे ढेरों फूल है बिलकुल जीवंत बड़ा-सा वॉल पेपर। और सुबह का वॉलपेपर ! इस बार सफेद बादल अठखेली कर रहे थे। सारी हरियाली ओस से धुल गई थी। फूलों पर शबनम की बूँदे थी और एक बात जो शाम के धुँधलके में नहीं देखी वो थी रिसॉर्ट एक पर्वत पर था और बाकी तीनों तरफ पर्वतों का कव्हर था। बीच में नीचे गहरी हरी घाटी।

एक बार फिर कुदरत ने अपना नया नवेला रंग दिखाया। हर पहर में अलग छटा। पूरी हरी घाटी में कहीं-कहीं सफेद पट्टियाँ-सी नजर आती थी, ये पहाड़ी झरने थे जो कही भी, किसी भी सड़क के किनारे भरपूर जोश के साथ गिरकर दूध की धारा का आभास दे रहे थे। लेकिन यहीं पानी नीचे गिरकर काँच की मानिद साफ था।

इस विहंगम दृश्‍य को देख आँखें सुखद आश्चर्य से भरी थी, लेकिन अभी प्रकृति ने आगे अपनी सुंदरता से और भी हैरान करना था। जब मुन्नार में तीन दिन बिताने के बाद थेकड़ी (पेरियार) और थेकड से अलप्पी की ओर रवाना हुवे तो ये सुखद आश्चर्य सामने आया। मुन्नार व थेकड़ी में जहाँ पहाड़ी सुंदरता थी वहीं अलप्पी में पानी और हरियाली में मंत्र मुग्ध किया वहीं 'बेक वाटर' में लेक पैलेस रिसॉर्ट की बोट तैयार खड़ी थी। सामान सहित हम उसमें सवार हो गए। थोड़ी सँकरी केनल आगे जाकर विशाल झील में बदल गई और उसी झील के लेक पेलेस रिसॉर्ट में हमारा अगले ‍दो दिन निवास था। बेक वाटर में बोट से घूमते-घूमते महसूस हो रहा था कि हम फिल्मों में देखे गए वेनिस शहर में पहुँच गए है। शायद इसीलिए इसे एशिया का वेनिस कहा जाता है।

इस वेनिस समेत पूरा केरल समृद्ध और संपन्न है इस सत्य प्रमाणित करती आँखों देख‍ी वसुधा के अलावा दो बातों ने मेरा ध्यान खींचा वे थी एक तो वहाँ कोई भिक्षुक नजर नहीं आया, दूसरे वहाँ के लोग भोले, निश्छल, संतुष्‍ट व प्रसन्न लगे।

तो दोबारा केरल जाने की इच्छा के साथ इस पूर्ण साक्षर राज्य को हमने कहा पोइचवरम (फिर मिलेंगे)।