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Written By ND

प्यार के लिए विवश करना प्रेम नहीं

Romance tips love tips praisarise for love is not love | प्यार के लिए विवश करना प्रेम नहीं
मानसी

NDND
हेलो दोस्तो! प्यार की दीवानगी के हमने सैकड़ों किस्से सुने हैं। कोई अपने आशिक की एक झलक पाने को रेगिस्तान में मीलों नंगे पाँव चलता रहा। किसी ने कँपकँपाती सर्दी में उफनती नदी घड़े के सहारे पार की तो किसी ने महबूब को तोहफा देने के लिए अपने खूबसूरत बाल काट कर बेच डाले। पागल प्रेमियों के किस्सों से दुनिया भरी पड़ी है। इन दीवानों में एक बात समान थी, वह यह कि ये जोड़े एक-दूसरे के प्रति बेहद समर्पित थे। दोनों की चाहत एक जैसी थी। जरूरत पड़ने पर दोनों एक-दूसरे के लिए जान देने को तैयार रहते थे। समाज के बड़े से बड़े गम और जुल्मोसितम वे हँसते-हँसते गले लगाने को तैयार रहते थे मानो उन्हें पता था कि अपने महबूब की मुहब्बत की तुलना में इनकी कोई विसात नहीं है।

इनकी गहरी भावना, जो पागलपन की हद तक नजर आती है, के प्रति सम्मान की भावना पैदा होती है। उनकी कुर्बानी के जज्बे के सामने सिर झुकाने को जी करता है। उनका नाम लेकर आज भी प्रेमी प्यार की कसमें खाते हैं। कोई उनका मजाक नहीं बनाता। व्यवस्था से बिल्कुल भिन्न नजर आकर भी कोई उन्हें हास्यास्पद नहीं मानता क्योंकि उनकी सारी कोशिशें अपने साथी को खुश रखने के लिए थी। उनकी तकलीफ अपने सिर लेने के लिए थी। एक को यदि समाज की चाबुक पड़े तो अपनी पीठ आगे कर देने के लिए थी। इसलिए वे अमर हैं और इज्जत के हकदार हैं। बेशक वे सच्चे प्रेमी थे।

पर जो लोग प्यार के नाम पर किसी को तकलीफ पहुँचाते हैं, उन्हें क्या कहा जाना चाहिए? किसी के इनकार के बावजूद उसका पीछा करना कहाँ तक उचित है? उसे प्यार करने के लिए मजबूर करने को प्रेम करना नहीं कहा जा सकता है। एसएमएस, मोबाइल, ईमेल की सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल कर किसी को प्यार के पैगाम भेजते जाना क्या सच्ची मोहब्बत की निशानी है? जिसके प्रति प्यार का दावा करें, क्या उसे मुश्किल में डाला जा सकता है?

किसी को अपनी धड़कन, अपनी जिंदगी का खिताब देने वाला, क्या उसे तंग करके उसका जीना हराम कर सकता है। उसके सैकड़ों बार मना करने पर भी यह कहना कि एक दिन उसे मेरी मोहब्बत का अहसास हो जाएगा, कहाँ तक सही है? इस जबरदस्ती का जवाब जब कोई हवालात की हवा खिलाकर देता है तो वह यह कह कर पीछा नहीं छोड़ता कि वह अभी नादान है। सच तो यह है कि नादान वह व्यक्ति नहीं है जो ऐसी सिरफिरी हरकतें कर रहा है। कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता है। यह तो किसी के जीवन में डाका डालने के समान है।

इसे एकतरफा प्रेम भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह सनकीपन है। प्रेम में किसी को चोट नहीं पहुँचाई जाती है। जमाने से मिले जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की जाती है। दुखों को कम करने के रास्ते निकाले जाते हैं। खुशी व आराम पहुँचाने के लिए त्याग व बलिदान दिया जाता है। अपने साथी को सुकून पहुँचाने के लिए अपनी कराह को छुपाया जाता है। पर कुछ लोग अपनी इच्छा को दूसरों पर थोपना ही प्रेम समझते हैं। जब दो व्यक्ति एक-दूसरे को प्रेम करते हैं तो बुनियादी तौर पर एक-दूसरे की इज्जत भी करते हैं। जिन गुणों के कारण किसी व्यक्ति के प्रति आप खिंचते चले जाते हैं, उसके प्रति एक प्रकार का आदर होता है। जितना अधिक आदर होता है उतना ही प्रेम भी गहरा होता जाता है।

चाहे वह गुण सहयोग का हो, स्पेस देने का हो, ख्याल रखने का हो, साथ होने का अहसास कराने का हो, त्याग या समर्पण का हो या आत्मविश्वास दिलाने आदि का हो। प्रेम करने वाले इन गुणों के कारण ही अपने साथी के बारे में फख्र महसूस करते हैं। अपने गुणों को वे और भी निखारने की कोशिश करते हैं ताकि वे साथी की नजर में ऊंचा स्थान पाएँ। किसी हरकत से जब प्रेमी अपने साथी की नजर से गिरते हैं तो उसी अनुपात में प्रेम की डिग्री में भी गिरावट आ जाती है।

  भावना के स्तर पर भी हम शान से जीना सीखते हैं। एक सुलझे आत्मनिर्भर व्यक्ति से हर कोई जुड़ना चाहता है क्योंकि इसमें सहजता और परिपक्वता का अहसास होता है। समाज के उतार-चढ़ाव को समझने और उससे पार उतरने में एक-दूसरे से मदद मिलती है।      
पर अफसोस की बात यह है कि आजकल प्रेम का दावा करने वाले सामने वाले की किसी बात का आदर नहीं करते हैं। प्रेम करना सामान खरीदने जैसा होता जा रहा है। बिना साझा संवाद एवं समझदारी के क्या दो व्यक्ति आपस में प्रेम की भावना का आदान-प्रदान कर सकते हैं? अभिभावकों द्वारा तय की गई शादी तक में दो व्यक्ति एक-दूसरे को मानसिक रूप से स्वीकार करने, समझने और समर्पित होने की इच्छा एवं सहमति लेकर आगे बढ़ते हैं। पर एकतरफा प्यार के जुनून में किसी भी प्रकार की सहमति कहाँ नजर आती है?

एकतरफा प्रेम में आप सामने वाले के वजूद को तो नकारते ही हैं, साथ ही अपने वजूद की भी खिल्ली उड़वाते हैं। किसी भी प्रेमी को सबसे पहले अपना आदर करना चाहिए। अपने आपको सम्मानित ढंग से समाज परिवार, दोस्त और प्रेमी के समक्ष पेश करना आपका कर्तव्य है। अपनी नजर में गिरकर क्या कोई अन्य की नजरों में उठ सकता है? कतई नहीं। जितना अधिक हम अपनी नजर में सम्मानित महसूस करते हैं, उतना ही अधिक हमारा आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। हमारी खुद्दारी बढ़ती है।

भावना के स्तर पर भी हम शान से जीना सीखते हैं। एक सुलझे आत्मनिर्भर व्यक्ति से हर कोई जुड़ना चाहता है क्योंकि इसमें सहजता और परिपक्वता का अहसास होता है। समाज के उतार-चढ़ाव को समझने और उससे पार उतरने में एक-दूसरे से मदद मिलती है। वैसे लोगों की एक-दो कमियों को भुलाकर भी लोग प्यार कर बैठते हैं। इकबाल का शेर है - 'खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है।' तो दोस्तो, अपने वजूद, अपने खुदी को बुलंद रखें, उसका सम्मान करें। प्यार व जमाना आपके पीछे होगा।