शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By तरूण हिंगोरानी

चलो बुलावा आया है.....

चलो बुलावा आया है..... -
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जय माता दी... जय माता दी... के जयकारे के साथ सिर पर माँ के नाम की चूनर बाँधे, हाथ में सहारे के लिए लकड़ी थामे लोगों के जत्थे-के-जत्थे माँ के दरबार में हाजिरी लगाने को आतुर नजर आते हैं। यह भव्य नजारा है, माँ वैष्‍णो देवी की कठिन चढ़ाई का....

कथा के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले कटरा गाँव में 'श्रीधर' नाम के एक विद्वान पंडित रहा करते थे। एक दिन माता ने उन्हें सपने में आकर कहा कि 'हे ब्राह्मण, तुम मेरे नाम से भंडारा करो और वह भी संपूर्ण गाँव के साथ। उसमें बाल भैरवनाथ एवं उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ को भी अवश्य आमंत्रित करना। जब पं. श्रीधर महाराज ने पूरे गाँव को आमंत्रित किया तो पूरे गाँव ने उनका उपहास उड़ाया कि एक निर्धन ब्राह्मण जो खुद दूसरों पर आश्रित है, वह पूरे गाँव को क्या खिलाएगा।

भंडारे वाले दिन पूरे गाँववासी ब्राह्मण के घर पहुँच गए। देवी की कृपा से सुदामा की कुटिया कृष्ण के महल में बदल गई। माँ खुद बालिकाओं के रूप में वहाँ आईं और प्रसादी बनाने लगीं। मेहमानों की आवाभगत में कोई कमी नहीं रही। सभी का भोजन चल ही रहा था कि बाबा भैरवनाथ अपने शिष्यों के साथ पधारे। ब्राह्मण माता का प्रसाद बाबा को देने लगा। भैरवनाथ क्रोधित हुए और कहने लगे कि मुझे माँस और मदिरा चाहिए। ये पूरी-हलवा और चना मैं नहीं खाता हूँ। तब ब्राह्मण ने कहा, यहाँ माँस-मदिरा निषेध है। भैरवनाथ ने गुस्से में पूछा यह प्रसाद किसने बनाया है। ब्राह्मण ने बालिकाओं की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह प्रसाद 'माता' ने बनाया है।

गुस्से में बाबा भैरवनाथ माता को पकड़ने के लिए उनके पीछे-पीछे भागे। भागते-भागते माता पर्वत त्रिकूट पर जाने लगीं। इस समय माँ के साथ हनुमानजी भी थे। हनुमानजी को प्यास लगी तो माता ने अपने धनुष से एक बाण पहाड़ में मारातब वहाँ से एक जल की धारा निकली, जिसे बाणगंगा कहते हैं।

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भागते-भागते एक जगह रूककर माता ने बाबा भैरवनाथ को देखा। इस जगह माँ के पाँव के निशान अब तक बाकी हैं। इस स्थान को चरण-पादुका कहते हैं। आधे रास्ते में माता को एक गुफा दिखाई दी। उस गुफा में प्रवेश कर माँ तपस्या करने लगीं। गुफा के द्वार के ऊपर हनुमान जी माता की रक्षा के लिए बैठ गए। बाबा भैरवनाथ उस गुफा में प्रवेश नहीं कर पाए। नौ माह तक माता ने उस गुफा में रहकर तपस्या की। जैसे माँ के गर्भ में बच्चा नौ माह तक रहता है। इसलिए उस स्थान का नाम गर्भर्जुन या अर्धकुआँरी पड़ा।

माता दूसरे रास्ते से निकलकर कटरा से 12 किलोमीटर ऊपर पहुँचीं। वहाँ बाबा भैरवनाथ के साथ उनका युद्ध हुआ और अंत में एक गुफा के द्वार पर माता ने अपनी तलवार से बाबा भैरवनाथ का सिर काट दिया। बाबा भैरवनाथ का धड़ उस गुफा के द्वार पर ही गिर पड़ा एवं बाबा का सिर हवा में उछलते हुए 1 1/2 किलोमीटर ऊपर एक छोटी-सी गुफा में विराजमान हुआ। वहाँ पर, जहाँ बाबा भैरवनाथ का शीश विराजित हुआ, उसे भैरवनाथ की गुफा कहते हैं और जहाँ पर बाबा भैरवनाथ का वध हुआ, उस गुफा में माता ने अपना वास बनाया। माता आज भी वहाँ पर तीन प्राकृतिक पिण्डियों के रूप में विराजित हैं

प्रथम पिण्डी को माता महालक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। द्वितीय पिण्डी को माँ कालका और तृतीय को माँ सरस्वती का स्वरूप माना गया है। तीनों पिण्डियों को मिलाकर माता वैष्णव देवी का मनोहर स्वरूप बनता है।

मानचित्र में स्थिति - माता वैष्णव देवी का स्थान त्रिकूट पर्वत पर है, इसलिए माता वैष्णव देवी को 'माँ त्रिकुटा भी कहा जाता है। यह पर्वत कटरा नामक गाँव, जो जम्मू जिले में आता है, में स्थित हैजम्मू से कटरा की दूरी 45 किलेमीटर है। नई दिल्ली से जम्मू की दूरी 576 किलोमीटर है। यह दूरी इंदौर से 1539 और मुंबई से 2100 किलोमीटर है।
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कैसे जाएँ- माता वैष्णव देवी भवन की चढ़ाई कटरा से 12 किलोमीटर है। कटरा तक आप दिल्ली या देश के किसी अन्य शहर से रेल, बस या हवाई मार्ग से पहुँच सकते हैं। यूँ तो अधिकांश भक्त पैदल ही चढ़ाई करना पसंद करते हैं, लेकिन अशक्त लोगों के लिए डोली (पालकी) से लेकर हेलीकॉफ्टर तक की सुविधा उपलब्ध है।

कब जाएँ - हर साल भारतवर्ष एवं विश्व से लगभग 70 लाख श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। यहाँ पर माता के दर्शन के लिए 365 दिन, 24 घंटे कतार लगातार लगी रहती है। लेकिन यदि आप एकांत में दर्शन करना चाहें तो 20 जनवरी से लेकर फरवरी अंत तक यहाँ भीड़ नहीं रहती है। लेकिन ध्यान रखें, इस समय यहाँ का मौसम बेहद ठंडा होता है। वहीं दिसंबर से जनवरी और नवरात्र के दिनों में यहाँ पैर रखने की जगह भी नहीं मिलती। ठंड के मौसम में बर्फबारी ज्यादा होने के कारण कभी-कभी यहाँ का श्राइन बोर्ड एक-दो दिनों के लिए पट बंद कर देता है।

बजटः- माँ के दरवाजे पर गरीब-अमीर का कोई भेद नहीं है। बस यदि आप चढ़ाई में अक्षम हैं तो डोली या हेलीकॉफ्टर का खर्चा उठाना होगा। रही भोजन-कंबल की बात तो रास्ते में इतने भंडारे मिलेंगे कि आप खाते-खाते थक जाएँगे, लेकिन खिलाने वालों की कमी न होगी

टिप्स - वैष्णो देवी की चढ़ाई करते समय बुजुर्गों का खास ख्याल रखें। अपने साथ सारी जरूरी दवाइयाँ अवश्य रखें।

पालकी वालों से थोड़ा मोलभाव करना पड़ सकता है। साथ ही यदि कोई बीमार या अशक्त व्यक्ति आपके साथ है तो उन्हें धीरे चलने की हिदायत अवश्य दे दें।

लंबी चढ़ाई में होने वाली थकान से बचने के लिए माँ के दरबार में जाने से कुछ दिन पहले से ही पैदल चलना शुरू कर दें
बाकी माँ के नाम का जयकारा लगाइए। आपको कोई तकलीफ नहीं होगी।