गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By ND

नई सहस्राब्दी में नारी की भूमिका

नई सहस्राब्दी में नारी की भूमिका -
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- महेन्द्रमोहन भट्

नई सहस्राब्दी में नारी की एक सर्वदा नई छवि उभर रही है। पिछली सदियों में जो बेड़ियों से जकड़ी थी, उसे तोड़कर आज वह अपनी नई पहचान बनाने में जुटी है।

आज नारी अबला नहीं रही, वह पुरुष से दुर्बल नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सक्षम और सबल है। इस संदर्भ में युगनायक, भविष्य-दृष्टा, राष्ट्र-निर्माता स्वामी विवेकानंद ने वर्षों पहले कहा था- 'किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है वहाँ की महिलाओं की स्थिति।

हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। हमें नारी शक्ति के उद्धारक नहीं, वरन उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए। भारतीय नारियाँ संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भाँति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है, उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। इसी आधार पर भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ सन्निहित हैं।'
  आज नारी अबला नहीं रही, वह पुरुष से दुर्बल नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सक्षम और सबल है। इस संदर्भ में स्वामी विवेकानंद ने वर्षों पहले कहा था- 'किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है वहाँ की महिलाओं की स्थिति।      


घर की घुटनभरी चहारदीवारी अब प्रायः टूट चुकी है। कल की साधारण-सी गृहिणी आज कुशल प्रबंधक बनकर अपने कार्यों, दायित्वों का निर्वहन कर रही है। उसकी इस भूमिका में नवीनता है, सृजनशीलता की आभा है। हालाँकि नारी में यह प्रतिभा जन्मजात थी, परंतु पुरुष प्रधान समाज की निरंकुश मानसिकता में वह दबी पड़ी गल रही थी। जैसे ही यह प्रतिरोध कुछ कम हुआ कि नारी प्रतिभा पुष्पित-पल्लवित होने लगी।

समस्त शास्त्री मानते हैं कि जब भी समाज, राष्ट्र एवं विश्व विकास के उत्तुंग शिखर पर स्थापित हुआ, उसके पीछे नारियों के त्याग, बलिदान एवं योगदान ही महत्वपूर्ण रहे हैं। विश्व के अधिकांश देशों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ रही है।

अमेरिका, कनाडा जैसे अत्यधिक विकसित देशों से लेकर यूगांडा, बांग्लादेश के समान अल्प विकासशील देशों में भी यह बदलाव दिखाई दे रहा है। जहाँ पुरुषों का एकाधिकार एवं वर्चस्व रहा है इस मिथक को तोड़कर महिलाएँ इस क्षेत्र में भी प्रवेश पा चुकी हैं। अंतरिक्ष उड़ान में भाग लेने वाली भारतीय महिलाएँ कल्पना चावला या सुनीता विलियम्स तथा अंटार्कटिका ज्वालामुखी की खोज, पर्वतारोहण, रॉफ्टिंग सेना तथा मैनेजमेंट जैसी जटिल एवं साहसपूर्ण क्षेत्रों में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। महिलाओं के लिए यह नूतन भविष्य की नवीन संभावनाएँ लेकर आ रहा है।

(डॉ. प्रणव पंड्या के विचारों से प्रेरित)