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Written By ND

तिब्बत का बौद्ध शोटोन महोत्सव शुरू

तिब्बत का बौद्ध शोटोन महोत्सव शुरू -
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जन्माष्टमी की तरह भगवान गौतम बुद्ध के लगभग 500 साल पुराने विशाल थंगकास (पेंटिंग) को प्रणाम करते हजारों लोग मंगलवार को द्रेपंग मठ के पास उमड़ पड़े। अवसर है तिब्बत का पारंपरिक धार्मिक शोटोन महोत्सव।

तिब्बती में 'शो' का अर्थ है- खट्टा दही और 'टोन' का अर्थ है 'भव्य भोज' (बेंक्वेट)। तिब्बत में लगभग 5 दिन चलने वाला यह महोत्सव मंगलवार से धूमधाम से शुरू हुआ। एक तरफ चीन के नेता और अधिकारी तथा दूसरी तरफ हजारों बच्चे, युवक, युवतियाँ और वृद्ध श्रद्धा भाव से मनोहारी पर्वत श्रृंखला की गोद में सुबह से शाम तक उमड़ते रहे।

यह गलतफहमी दूर होती है कि तिब्बत के आधुनिक रूप, आर्थिक विकास तथा चीनी शासन में परंपरा और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के रास्ते बदल गए हैं। सत्रहवीं शताब्दी में यह केवल धार्मिक उत्सव था, जो अब सामाजिक-सांस्कृतिक मेले की तरह उल्लास का उत्सव बन गया है। बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा कभी इसी समर पैलेस में रहते थे। अब यहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध लामा पूजा-अर्चना करते दिखाई देते हैं।

महोत्सव के अवसर पर ल्हासा के ही पोटाला पैलेस के सामने भव्य पांडाल और बेहद सुंदर फूलों से झाँकी सजाई गई है। मथुरा वृंदावन की दही-मटकी कार्यक्रम की धूमधाम की तरह लोग इस मेले में पहुँचकर दही के अलावा तरह-तरह के व्यंजन (माँसाहारी) खाते और बीयर पीते, नाचते-गाते दिखाई दे रहे हैं। दिन में ही ऑपेरा की तरह नृत्य-संगीत की धूम देखने को मिलती है।

शोटोन महोत्सव को देखने के लिए दुनिया भर से सैकड़ों पर्यटक पहुँचे हैं। यहाँ अँगरेजी दूर रही, मूल चीनी भाषा भी नहीं चलती। तिब्बती भाषा का बोलबाला है। लेकिन तिब्बत की राजधानी ल्हासा अब न्यूयार्क-सिंगापुर की तरह आधुनिक लगता है। ल्हासा शहर से थोड़ा आगे बढ़ने पर ईंट-मिट्टी के मकानों वाले गाँव भी दिखते हैं, लेकिन लोग हँसमुख और अपनी मस्ती में मिलते हैं।