शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. अन्य त्योहार
Written By WD

विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती

विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती -
- नीलिमा उपाध्या
ND

साहित्य संगीत कला विहीनः
साक्षात पशुः पुच्छविषाण हीनः

अर्थात हम अपने जीवन को पशुता से ऊपर उठाकर विद्या संपन्न, गुण संपन्न बनाएँ, बसंत पंचमी इसी प्रेरणा का त्योहार है। बसंत पंचमी शिक्षा, साक्षरता, विद्या और विनय का पर्व है। यह कला, विविध गुण, विद्या, साधना को बढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहित करने का पर्व है। मनुष्यों मेंसांसारिक, व्यक्तिगत जीवन का सौष्ठव, सौंदर्य, मधुरता उसकी सुव्यवस्था यह सब विद्या, शिक्षा तथा गुणों के ऊपर ही निर्भर करते हैं। अशिक्षित, गुणहीन, बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशु तुल्य माना गया है।

ND
बसंत पंचमी भगवती सरस्वती के जन्मदिन का पर्व है। इस दिन देवी सरस्वती की प्रतिमा का पूजन-अर्चन करना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को शिरोधार्य किया जाए, अपनी आज की ज्ञान सीमा जितनी है उसे और अधिक बढ़ाने का प्रयास किया जाए। माँ सरस्वती के पूजन-वंदन के साथ ज्ञान के विस्तार की प्रेरणा ग्रहण की जाए। स्वाध्याय (नियमित पठन-पाठन) हमारे दैनिक जीवन का अंग बन जाएँ, ज्ञान की गरिमा को हम समझने लग जाएँ और उसके लिए मन में तीव्र उत्कंठा जागे तो समझना चाहिए कि सरस्वती पूजन की प्रक्रिया ने अंतःकरण में प्रवेश पा लिया।

भगवती सरस्वती के हाथ में वीणा है, उनका वाहन मयूर है, मयूर अर्थात मधुर भाषी। हमें सरस्वती का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए मयूर समान बनना चाहिए। मीठा, नम्र, विनीत, सज्जनता, शिष्टता और आत्मीयता युक्त संभाषण हर किसी से करना चाहिए। हर किसी के सम्मान की रक्षा कर उसेगौरवान्वित करें। प्रकृति ने भोर को कलात्मक एवं सुंदर बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि परिष्कृत बनानी चाहिए।
  माँ सरस्वती के जन्मदिन के अवसर पर प्रकृति खिलखिला पड़ती है। हँसी और मुस्कान के फूल खिल पड़ते हैं। उल्लास और उत्साह के प्रतीक नवीन पल्लव प्रत्येक वृक्ष पर दिखाई देते हैं। मनुष्य में भी ज्ञान का, शिक्षा का प्रवेश होता है- सरस्वती का अनुग्रह बरसता है।      


हम प्रेमी बनें, सौंदर्य, स्वच्छता, सज्जनता एवं शालीनतायुक्त आकर्षण अपने व्यवहार में नियोजित रखें, तभी माँ सरस्वती हमें अपना प्रिय पात्र मानेंगी। हाथ में वीणा अर्थातहम कलाप्रेमी बनें, कला पारखी बनें, कला के पुजारी बनें, माता की तरह उसका सात्विक पोषण करें।

माँ सरस्वती के जन्मदिन के अवसर पर प्रकृति खिलखिला पड़ती है। हँसी और मुस्कान के फूल खिल पड़ते हैं। उल्लास और उत्साह के प्रतीक नवीन पल्लव प्रत्येक वृक्ष पर दिखाई देते हैं। मनुष्य में भी ज्ञान का, शिक्षा का प्रवेश होता है- सरस्वती का अनुग्रह बरसता है तो स्वभाव एवं दृष्टिकोण में बसंत ही बिखरा दिखता है। आशा और उत्साह से भरे रहना, उमंगें उठने देना, उज्ज्वल भविष्य के सपने सँजोना, अपने व्यक्तित्व को फूल जैसा निर्मल, निर्दोष, आकर्षक एवं सुगंधित बनाना ऐसी ही अनेक प्रेरणाएँ बसंत ऋतु के आगमन पर नवीन पुष्पों को देखकर प्राप्त की जा सकती हैं।

कोयल की तरह मस्ती से कूकना, भौंरों की तरह गूँजना, गुनगुनाना यही जीवन की कला जानने वाले के चिह्न हैं। हर जड़-चेतन में बसंत ऋतु में एक उमंग-सी दिखाई देती है। सरस्वती का अभिनंदन प्रकृति बसंत अवतरण के रूप में करती है। हम जीवन में बसंत जैसे उल्लास और कलात्मक प्रवृत्ति का विकास करके सच्चे अर्थों में सरस्वती का पूजन कर सकते हैं।