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Written By ND

देवत्व प्रबोधन एकादशी

देवत्व प्रबोधन एकादशी -
- प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

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कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात दीपावली से ग्यारहवीं (चाँद) तिथि में देवोत्थान उत्सव अर्थात देवत्व प्रबोधन एकादशी मनाई जाती है। मान्यता है कि देव प्रबोधन मंत्रों से दिव्य तत्वों की जागृति होती है।

देव प्रबोधन मंत्र इस प्रकार है-
ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
(अर्थात- ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि से वंदनीय, हे जगन्निवास, देवताओं के स्वामी आप मंत्र के प्रभाव से सुखपूर्वक उठें।)

हम देवोत्थान हेतु इस प्रकार स्तुति करते हैं-
उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्‌।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव॥

वास्तव में देव प्रबोधन एकादशी भगवान विष्णु की आराधना का अभिनव अवसर है। देव प्रबोधन एकादशी के प्रातःकाल (ब्रह्ममुहूर्त) में नगर-नगर में भगवान नाम स्मरण, रामधुन (श्रीराम जय राम, जय-जय राम) कीर्तन गाजे-बाजे के साथ बालक, युवा, वृद्ध नर-नारी शामिल होकर नगर परिक्रमा करते हैं तथा आतिशबाजी के साथ देवोत्थान उत्सव मनाते हैं। ऐसा करते समय नारी (गृहलक्ष्मी) को हाथ में कलश के ऊपर दीप प्रज्वलित कर चलना चाहिए। इससे अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है। पुराणों में इस तिथि को संपन्न पूजन कार्य को अत्यधिक फलदायी माना गया है।

इस दिन व्रत करने, भगवत भजन करने एवं संध्या के समय ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर मध्य में चौकी पर भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित करने एवं दीप प्रज्वलित करके गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि के साथ पूजन कार्य श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।

भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार हमारे देश में सदैव दिव्य शक्ति को जाग्रत किया जाता है। इससे संपूर्ण विश्व में शांति, समृद्धि, मानवीय मूल्यों, धर्म, सत्य, न्याय, सत्कर्म, अच्छाई व सचाई का दीपक जलता रहता है। आज विश्व में हिंसा, अनाचार, अराजकता, अव्यवस्था व अशांति का परिवेश है। ऐसे में देव-आराधना का महत्व द्विगुणित हो जाता है।

देवोत्थान एकादशी को कहीं-कहीं डिठवन भी कहा जाता है। मान्यता है कि चार माह के शयनोपरांत इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में जागे थे। इसीलिए उनके शयनकाल में मांगलिक कार्य संपन्ना नहीं किए जाते हैं। हरि-जागरण के उपरांत ही शुभ-मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। व्रती स्त्रियाँ इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आँगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करती हैं। तेज धूप में विष्णुजी के चरणों को ढँक दिया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद पूजा कर कहानी सुनाई जाती है।

वस्तुतः देवोत्थान एकादशी को दीपपर्व का समापन दिवस भी माना जाता है। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी का पुण्य स्मरण करना भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
भो दीप! त्वं ब्रह्मरूप अंधकार निवारक।
इमां मया कृतां पूजां ग्रह्यंस्तेजयः प्रर्वधाय॥
ॐ दीपेभ्योनमः॥
शुभंभवतु कल्याण्मारोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्‌।
आत्मतत्व प्रबोधाय दीपज्योर्तिनमोऽस्तुते॥