शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By WD

चातुर्मास्य व्रत की महिमा

चातुर्मास्य में क्या करें

चातुर्मास्य व्रत की महिमा -
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श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन! आषाढ़ शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। चातुर्मास का व्रत इसी एकादशी से प्रारंभ होता है। युधिष्ठिर बोले कि हे कृष्ण! विष्णु के शयन का व्रत किस प्रकार करना चाहिए और चातुर्मास्य के व्रत भी कहिए।

श्रीकृष्ण बोलकि हे राजन! अब मैं आपको भगवान विष्णु के शयन व्रत और चातुर्मास्य व्रत की महिमा सुनाता हूँ। आप सावधान होकर सुनिए। जब सूर्य कर्क राशि में आता है तो भगवान को शयन कराते हैं और जब तुला राशि में आता है तब भगवान को जगाते हैं। अधिकमास के आने पर भी यह विधि इसी प्रकार चलती है। इसके सिवाय और महीने में न तो शयन कराना चाहिए न जगाना चाहिए।

आषाढ़ मास की एकादशी का विधिवत व्रत करना चाहिए। उस दिन विष्णु भगवान की चतुर्भुजी सोने की मूर्ति बनाकर चातुर्मास्य व्रत के नियम का संकल्प करना चाहिए। भगवान की मूर्ति को पीतांबर पहनाकर सुंदर श्वेत शैया पर शयन कराएँ और धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का षोडपोचार पूजन करें, पंचामृत से स्नान आदि कराकर इस प्रकार कहें- हे ऋषिकेश, माता लक्ष्मीजी सहित मैं आपकी पूजा करता हूँ। आप जब तक चातुर्मास शयन करें।
  जो मनुष्य चातुर्मास में पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु की परिक्रमा कर पूजा करते हैं उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। जो संध्या समय देवताओं-ब्राह्मणों को दीपदान करते हैं तथा विष्णु का हवन करते हैं वे विमान में बैठकर अप्सराओं से सेवित होते हैं।      


मेरे इस व्रत को निर्विघ्न संपूर्ण करें।इस प्रकार से विष्णु भगवान की स्तुति करके शुद्ध भाव से मनुष्यों को दातुन आदि नियमों का पालन करना चाहिए। विष्णु भगवान के व्रत को ग्रहण करने के पाँच काल वर्णन किए हैं। देवशयनी एकादशी से यह व्रत किया जाता है। एकादशी, द्वादशी, पूर्णमासी, अष्टमी और कर्क की संक्रांति से भी व्रत प्रारंभ किया जाता है।

कार्तिक शुक्ल द्वादशी को इसका समापन होता है। इस व्रत को करने वाले सूर्य जैसे दीप्तिमान होकर विमान पर बैठकर स्वर्ग को जाते हैं। इस व्रत में गुरु व शुक्र उदय-अस्त का कोई विचार अवश्य करें। यदि सूर्य धनु राशि के अंश में भी आ गया तो यह तिथि पूर्ण समझी जाती है। जो स्त्री या पुरुष पवित्र होकर शुद्धता से इस व्रत को करते हैं, वे सब पापों से छूट जाते हैं। बिना संक्रांति का मास (मलमास) देवता और पितृकर्मों में वर्जित है

अब इसका अलग-अलग फल प्रस्तुत है। जो मनुष्य प्रतिदिन मंदिर में झाड़ू देते हैं, जल से धोते हैं, गोबर से लीपते हैं, मंदिरों में रंग करते हैं, उनको सात जन्मों तक ब्राह्मण की योनि मिलती है। जो मनुष्य चातुर्मास में भगवान को दूध, दही, घी, शहद और मिश्री आदि से स्नान कराते हैं तथा ब्राह्मणों को भूमि़, स्वर्ण आदि दान देते हैं, वे वैभवशाली होकर अंत में स्वर्ग को जाते हैं।

विष्णु भगवान की सोने की मूर्ति बनाकर पूजा करने वाला इंद्रलोक में अक्षय सुख प्राप्त करता है। जो तुलसी से भगवान का पूजन करते हैं या सोने की तुलसी ब्राह्मणों को दान देते हैं वे सोने के विमान में बैठकर परमगति को प्राप्त होते है। जो मनुष्य भगवान का धूप, दीप और गूगल से पूजन करते हैं, उनको अनेक प्रकार की संपत्ति मिलती है और वे जन्म-जन्मांतर के लिए धनाढ्‍य हो जाते हैं।

जो मनुष्य चातुर्मास में पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु की परिक्रमा कर पूजा करते हैं उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। जो संध्या समय देवताओं और ब्राह्मणों को दीपदान करते हैं तथा विष्णु भगवान का हवन करते हैं वे सुंदर विमान में बैठकर अप्सराओं से सेवित होते हैं। जो भगवान का चरणामृत लेते हैं वे सब कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। जो नित्य प्रति मंदिर में तीनों समय 108 बार गायत्री मंत्र का जप करते हैं, उनसे भी पाप सदैव दूर रहते हैं। गायत्री का ध्यान और जप करने वाले पर व्यास भगवान प्रसन्न रहते हैंइसके उद्यापन में शास्त्र की पुस्तक दान दी जाती है।

पुराण और धर्मशास्त्रों को पढ़ने व सुनने वाले तथा वस्त्र व स्वर्ण ब्राह्मणों को दान देने वाले दानी, धनी, कीर्तिवान होते हैं। जो मनुष्य विष्णु भगवान का स्मरण करते हैं अथवा उनकी सोने की प्रतिमा दान करते हैं साथ ही प्रार्थना करते हैं, वे धनवान, गुणवान होते हैं। जो नित्यकर्म के पश्चात प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देते हैं तथा व्रत की समाप्ति पर स्वर्ण, लाल वस्त्र, गोदान करते हैं, वे आरोग्यता पूर्ण आयु तथा कीर्ति, धन और बल पाते हैं।

चातुर्मास में जो मनुष्य गायत्री मंत्र द्वारा तिल से होम करते हैं और समाप्ति पर दान करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट होकर निरोगी होते हैं। सुपात्र संतान मिलती है। जो मनुष्य अंत में हवन करते हैं और समाप्त हो जाने पर घी का घूँट भरकर वस्त्र सहित दान करते हैं वे ऐश्वर्यशाली होकर ब्रह्मा के समान भोग भोगते हैं। जो मनुष्य चातुर्मास में व्रत में भगवान के शयन के उपरांत उनके मस्तक पर नित्य प्रति दूर्वा चढ़ाते हैं और अंत में स्वर्ण की दूर्वा का दान करते हैं वे भी वैकुंठ को जाते हैं।

चातुर्मास में भगवान शिव और विष्णु के मंदिरों में जाकर जागरण और शिव गान करना चाहिए। उत्तम ध्वनि वाला घंटा नाद करना चाहिए। इस प्रकार प्रार्थना करना चाहिए कि ‘हे भगवान! हे जगदीश! आप मेरे पापों को नष्ट करने वाले हो। आप मेरे समस्त प्रकार के पाप नष्ट कीजिए। आपको कोटिश: प्रणाम’ ऐसा मनुष्य निश्चय ही भगवान की कृपा का पा‍त्र बनता है।

चातुर्मास में ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान देने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए चाँदी या ताँबे का दान करना चाहिए। इससे पुत्र प्राप्ति होती है। शहदयुक्त ताँबे के पात्र में गुड़ रखकर शयन होने पर तिल, सोना और जूते का दान करने से शिवलोक मिलता है। इसी प्रकार गोपीचंदन का दान करने से मोक्ष मिलता है। सूर्य और गणेशजी का पूजन करने से उत्तम गति मिलती है।

चातुर्मास में एक समय भोजन करना चाहिए। भू‍खे को अवश्य भोजन कराएँ। भगवान के शयन के बाद भूमि पर शयन करना चाहिए और मैथुन से दूर रहना चाहिए। स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए श्रावण में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग करना चाहिए। चातुर्मास समाप्ति पर यथायोग्य भगवान का पूजन करके दान देना चाहिए। ध्यान देने योग्य बात यह ‍है कि दान सुपात्र को ही दिया जाना चाहिए। कुपात्र को दान देने से कोई फल नहीं मिलता उलटे नुकसान ही उठाना पड़ता है।