Last Modified: नई दिल्ली ,
गुरुवार, 18 मार्च 2010 (14:13 IST)
अमिताभ ने वी के मूर्ति को सराहा
बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन मानते हैं कि पुरानी फिल्मों के कुछ दृश्यों को भुला पाना असंभव है और इन यादगार पलों को कैमरे में कैद करने के लिए कभी कभी पूरा दिन लग जाता था लेकिन वी के मूर्ति जैसे तकनीशियन इस काम को पूरे समर्पण के साथ करते थे। आज काम के प्रति ऐसे समर्पण का अभाव है।
अमिताभ ने अपने ब्लॉग में लिखा है ‘गुरूदत्त की फिल्म ‘कागज के फूल’ का वह दृश्य भला कौन भूल सकता है जब वहीदा रहमान गाती हैं ‘वक्त ने किया..।’
‘प्यासा’ फिल्म का एक यादगार दृश्य है जब थिएटर में ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए’ गा रहे गुरुदत्त को बालकनी से वहीदा देखती हैं और क्लोजअप में उनकी पीड़ा नजर आती है।
‘साहब बीवी और गुलाम’ में मीना कुमारी रात को घर से जा रहे पति रहमान को रोकने के लिए ‘ना जाओ सैंयाँ..’ गाती हैं। इन यादगार दृश्यों को कैमरे में मूर्ति ने कैद किया था।’
मूर्ति को इस साल फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया है।
मूर्ति की और उनके काम की सराहना करते हुए अमिताभ ने लिखा है ‘कुछ साल पहले आईआईएफए अवार्ड समारोह में मैं पिछली सीट पर मूर्ति के पास बैठा था। जैसे ही जीवनपर्यन्त उपलब्धि पुरस्कार के लिए उनके नाम की घोषणा की गई, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने उन्हें बधाई दी। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ‘एक तकनीशियन’ को सम्मानित किया जा रहा है। यह उनकी विनम्रता थी।’
अमिताभ के अनुसार, उन्होंने दो फिल्में ‘नास्तिक’ और ‘राम बलराम’ मूर्ति के साथ की हैं। ‘लेकिन मैं मानता हूँ कि उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम एक अन्य महान फिल्मकार गुरुदत्त की फिल्मों का छायांकन है।
इस जोड़ी की मेहनत ‘कागज के फूल’, ‘प्यासा’, ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘चौदहवीं का चाँद’ में साफ नजर आती है। पूरा समर्पण, पूरी लगन और पूरा काम ही मूर्ति का लक्ष्य रहा है।’ (भाषा)