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Written By भाषा

2जी घोटाला, कनिमोझी को जमानत

2जी घोटाला, कनिमोझी को जमानत -
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के फैसले की तर्ज पर सोमवार को 2जी स्पेक्ट्रम मामले में कनिमोझी सहित पांच आरोपियों को भारी राहत देते हुए जमानत दे दी। उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह इसी मामले के पांच आरोपियों को जमानत देने का आदेश दिया था।

अदालत ने पांचों की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले से बाहर नहीं जा सकते जिसने आपराधिक विश्वासघात के आरोपियों को जमानत दे दी, जिसमें अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

अदालत ने अपने 39 पन्ने के आदेश में कहा कि कनिमोझी और अन्य चार आरोपी जमानत हासिल करने की बेहतर स्थिति में हैं और ‘समानता’ के लाभ के हकदार हैं।

उच्चतम न्यायालय के पिछले सप्ताह के आदेश में कहा गया था, 'जमानत नियम है, जेल अपवाद है'। उच्च न्यायालय ने इसी को आधार मानते हुए कनिमोझी को उन्हीं पांच कार्पोरेट अधिकारियों के बराबर रखा, जिन्हें गत गुरुवार को जमानत दी गई थी।

न्यायमूर्ति वीके शाली ने कहा कि उच्च न्यायालय मौजूदा आरोपियों की जमानत पर विचार करते समय उच्चतम न्यायालय के आदेश की अनदेखी नहीं कर सकता। जमानत मांगने वालों को इस आदेश का लाभ न देने का कोई आधार नहीं है क्योंकि न्यायालय ने यह कहकर इसकी गुंजाइश खत्म कर दी है कि इन पर साजिश रचने और आपराधिक विश्वासघात का आरोप है, जिसके लिए अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

हालांकि द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि की पुत्री कनिमोझी और चारों अन्य आरोपियों को अभी एक और रात जेल में गुजारनी होगी क्योंकि उन्हें जमानत पर रिहा किए जाने के आदेश प्रक्रियागत विलंब के कारण सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ओपी सैनी द्वारा जारी नहीं किए जा सके।

उच्च न्यायालय ने कलैंगनर टीवी के एमडी शरद कुमार, फिल्म निर्माता करीम मोरानी और कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों राजीव अग्रवाल और आसिफ बलवा को भी इसी आधार पर जमानत दे दी।

टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में अपनी कथित भूमिका के लिए द्रमुक सांसद कनिमोझी पिछले छह माह से ज्यादा अरसे से तिहाड़ जेल में बंद थीं।

न्यायमूर्ति वीके शाली ने कहा कि मैं पांच व्यक्तियों को जमानत प्रदान करता हूं। शर्तें उच्चतम न्यायालय की ओर से लगाई गई शर्तों के अनुरूप होंगी। बहरहाल, अदालत ने यह कहते हुए छठे आरोपी एवं पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा कि उनकी याचिका का सीबीआई ने विरोध किया है और वह इस पर अपना फैसला बाद में सुनाएगी।

न्यायमूर्ति शाली ने बेहुरा के वकील अमन लेखी से कहा कि आप (बेहुरा) सीबीआई की दलीलों पर अपना लिखित जवाब दाखिल करें। इससे पहले, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल मोहन परासरन ने आज ही कहा था कि जांच एजेंसी बेहुरा को छोड़कर पांच व्यक्तियों को जमानत देने की विरोधी नहीं है। उच्चतम न्यायालय इस मामले में पांच अन्य सह-आरोपियों को पहले ही लाभ दे चुका है और इन पांच लोगों को भी उसी के समान जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

बहरहाल, परासरन ने बेहुरा की जमानत याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि लोक सेवकों की जमानत याचिकाओं की सख्ती से जांच की जानी चाहिए क्योंकि वह सार्वजनिक संपत्ति के न्यासी हैं। उच्चतम न्यायालय ने पांच उद्योगपतियों को इस शर्त पर जमानत प्रदान की थी कि वे अपने पासपोर्ट सरेंडर करेंगे और अदालत की अनुमति के बगैर विदेश नहीं जाएंगे।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरोपियों को हर सुनवाई पर विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष पेश होना होगा और अगर किसी कार्यवाही में उन्हें पेश नहीं होना है तो उसके लिए उन्हें पूर्व अनुमति लेनी होगी। (भाषा)