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Written By वार्ता
Last Modified: गोंडा (वार्ता) , रविवार, 16 दिसंबर 2007 (15:55 IST)

'स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ'

''स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ'' -
देश की आजादी के लिए हँसते-हँसते अपनी जान कुर्बान करने वाले स्वतंत्रता के मतवाले क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी देशप्रेम, फौलादी इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय के प्रतीक थे।

लाहिड़ी को काकोरी कांड में सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने और सरकारी खजाना लूटने के आरोप में 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जिला कारागार में फाँसी दे दी गई थी।

बंगाल के पावना जिले के मोहनापुर गाँव में 23 जून 1901 को जन्मे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को देशप्रेम और निर्भीकता की भावना विरासत में मिली थी। उनके जन्म के समय उनके पिता क्रांतिकारी क्षितीमोहन लाहिडी व भाई बंग-भंग आंदोलन में हिस्सा लेने के आरोप में जेल में सजा काट रहे थे।

दिल में राष्ट्रप्रेम की चिंगारी लेकर मात्र नौ वर्ष की आयु में ही वे बंगाल से अपने मामा के घर वाराणसी पहुँचे। राजेन्द्रनाथ इस धार्मिक नगरी में क्रांतिकारी सचिन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए।

राजेन्द्र की फौलादी दृढ़ता, देशप्रेम और आजादी के प्रति दीवानगी के गुणों को पहचानकर सचिन्द्रनाथ ने उन्हें अपने साथ रखकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशन आर्मी का वाराणसी का प्रभारी बना दिया। राजेन्द्रनाथ को बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में आमंत्रित किया जाने लगा।

क्रांतिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आंदोलन को गति देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राजेन्द्रनाथ ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई।

इस योजना को अंजाम देने के लिए राजेन्द्रनाथ ने नौ अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी से छूटी आठ डाउन ट्रेन पर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ और ठाकुर रोशन सिंह व 19 अन्य सहयोगियों की मदद से धावा बोल दिया।

बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने सभी 23 क्रांतिकारियों पर काकोरी षड्यंत्र कांड के नाम पर सशस्त्र युद्ध छेड़ने तथा खजाना लूटने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।

आजादी के इस दीवाने ने हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूमने से पहले वंदेमातरम की हुंकार भरते हुए कहा कि मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ। भारत माता के इस सपूत के बलिदान दिवस पर राष्ट्र उन्हें एक बार फिर याद कर रहा है।

राजेन्द्रनाथ दृढ़निश्चय, साहस और अगाध देशप्रेम की मिसाल थे और उनके सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।